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रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के मूल सिद्धांत (सेमेस्टर -5)

आंतरिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

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यूनिट-1: रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के मूल सिद्धांत

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- रिमोट सेंसिंग की परिभाषा दीजिए और इसके कार्य करने के सिद्धांतों को विस्तारपूर्वक समझाइए। रिमोट सेंसिंग का उपयोग किन क्षेत्रों में किया जाता है, इसके उदाहरणों के साथ वर्णन कीजिए।

उत्तर:-  रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing) वह तकनीक है जिसके माध्यम से हम पृथ्वी की सतह या उसके वातावरण की जानकारी प्राप्त करते हैं, बिना उसके सीधे संपर्क में आए। यह तकनीक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का उपयोग करती है, जो उपग्रहों, विमानों या ड्रोन के माध्यम से पृथ्वी की सतह से परावर्तित होकर वापस आती हैं। इसके द्वारा प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करके विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं, जैसे कि वनस्पति का स्तर, भूमि की उपयोगिता, जल संसाधनों की स्थिति, पर्यावरणीय परिवर्तन आदि।

रिमोट सेंसिंग के कार्य करने के सिद्धांत

रिमोट सेंसिंग के कार्य करने के कुछ बुनियादी सिद्धांत होते हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है। ये सिद्धांत इस प्रकार हैं:

1. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण (EMR)

रिमोट सेंसिंग की मूल अवधारणा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण पर आधारित है। पृथ्वी की सतह और उसके तत्व सूर्य से आने वाले विकिरण को अवशोषित, परावर्तित और विकिरणित करते हैं। उपग्रहों और सेंसरों के माध्यम से इन विकिरणों को मापा और विश्लेषित किया जाता है।

·       स्रोत: सूर्य मुख्य स्रोत है जो विभिन्न प्रकार की विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्सर्जन करता है। इसके अलावा, स्वयं पृथ्वी भी कुछ मात्रा में विकिरण उत्सर्जित करती है।

·       तरंगदैर्घ्य: प्रत्येक वस्तु विशिष्ट तरंगदैर्घ्य पर विकिरण परावर्तित या अवशोषित करती है, जिससे उस वस्तु की पहचान करना संभव होता है।

2. परावर्तन (Reflection)

रिमोट सेंसिंग में परावर्तन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह से टकराती हैं, तो वे परावर्तित होकर सेंसर तक पहुँचती हैं। इन परावर्तित किरणों का विश्लेषण करके सतह की विशेषताएं जानी जाती हैं। उदाहरण के लिए, हरे पेड़ अधिक हरे रंग के परावर्तन को दर्शाते हैं जबकि जल कम परावर्तन करता है।

3. सेंसर और प्लेटफॉर्म (Sensors and Platforms)

सेंसर उन उपकरणों को कहा जाता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण का पता लगाते हैं और उसे मापते हैं। ये सेंसर उपग्रह, ड्रोन या विमान पर लगाए जा सकते हैं।

·       सक्रिय सेंसर (Active Sensors): ये सेंसर स्वयं विकिरण उत्सर्जित करते हैं और उस विकिरण का विश्लेषण करते हैं जो पृथ्वी से परावर्तित होकर वापस आती है। रडार और LiDAR इसके उदाहरण हैं।

·       निष्क्रिय सेंसर (Passive Sensors): ये सेंसर सूर्य से आने वाले विकिरण को मापते हैं और इसका विश्लेषण करते हैं। अधिकांश उपग्रह निष्क्रिय सेंसर का उपयोग करते हैं।

4. स्थानिक, स्पेक्ट्रल और रेडियोमेट्रिक संकल्प (Spatial, Spectral, and Radiometric Resolution)

·       स्थानिक संकल्प (Spatial Resolution): यह दर्शाता है कि सेंसर कितना सूक्ष्म विवरण कैप्चर कर सकता है। उच्च स्थानिक संकल्प का मतलब है कि छोटे से छोटे तत्व भी स्पष्ट दिखाई देंगे।

·       स्पेक्ट्रल संकल्प (Spectral Resolution): यह दर्शाता है कि सेंसर कितने बैंड (रंगों) को कैप्चर कर सकता है। अधिक स्पेक्ट्रल बैंड होने का मतलब है कि वस्तुओं की अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

·       रेडियोमेट्रिक संकल्प (Radiometric Resolution): यह सेंसर की विकिरण की तीव्रता को मापने की क्षमता को दर्शाता है।

5. प्रसंस्करण और विश्लेषण (Data Processing and Analysis)

रिमोट सेंसिंग द्वारा एकत्रित डेटा का उपयोग करने के लिए उसे प्रोसेस और विश्लेषित करना आवश्यक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की छवि प्रसंस्करण तकनीकें शामिल होती हैं, जैसे छवि सुधार (Image Enhancement), छवि वर्गीकरण (Image Classification), और वस्त्रिकृत विश्लेषण (Multispectral Analysis)।

रिमोट सेंसिंग के उपयोग

रिमोट सेंसिंग का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इसके कुछ प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं:

1. कृषि (Agriculture)

·       फसल की निगरानी (Crop Monitoring): रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके फसलों की स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक फसल की वृद्धि, नमी की मात्रा और पोषक तत्वों की आवश्यकता की जानकारी प्रदान करती है।

·       जल उपयोगिता (Water Management): इस तकनीक से सिंचाई के लिए जल की सही मात्रा और आवश्यकता का निर्धारण किया जा सकता है।

उदाहरण: भारत में, नासा के MODIS उपग्रह का उपयोग धान और गेहूं की फसलों की निगरानी के लिए किया जाता है।

2. वन प्रबंधन (Forest Management)

·       वन क्षेत्रों की निगरानी (Forest Cover Monitoring): रिमोट सेंसिंग की मदद से वन क्षेत्रों का आकलन किया जाता है, जिससे वनों की कटाई और पुनःवन रोपण की जानकारी प्राप्त होती है।

·       वन्यजीव संरक्षण (Wildlife Conservation): वन्यजीवों की स्थिति और उनके आवास क्षेत्रों की निगरानी भी इस तकनीक से की जाती है।

उदाहरण: रिमोट सेंसिंग का उपयोग अमेजन वर्षावनों में हो रही अवैध वनों की कटाई का पता लगाने के लिए किया गया है।

3. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

·       ग्लेशियर पिघलना (Glacier Melting): रिमोट सेंसिंग तकनीक से ग्लेशियरों के पिघलने की गति का मापन किया जा सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की दिशा और गति का आकलन होता है।

·       कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर (CO2 Levels): उपग्रह डेटा का उपयोग वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर की निगरानी के लिए किया जाता है।

उदाहरण: ग्लोबल वार्मिंग की निगरानी के लिए यूरोपीय स्पेस एजेंसी के सेंटिनल-5P उपग्रह का उपयोग किया जाता है।

4. शहरी विकास (Urban Development)

·       शहरों की योजना (Urban Planning): रिमोट सेंसिंग का उपयोग शहरों की संरचना, यातायात के पैटर्न, और आवासीय विकास की निगरानी में किया जाता है।

·       अवैध निर्माण (Illegal Construction): यह तकनीक अवैध निर्माण का पता लगाने और उसे नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

उदाहरण: स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में रिमोट सेंसिंग का उपयोग सड़कों, परिवहन और जल आपूर्ति नेटवर्क की योजना बनाने में किया जा रहा है।

5. भूविज्ञान और खनन (Geology and Mining)

·       खनिज संसाधनों की पहचान (Mineral Exploration): रिमोट सेंसिंग का उपयोग पृथ्वी की सतह के नीचे छिपे खनिज संसाधनों की पहचान करने के लिए किया जाता है।

·       भूस्खलन का पूर्वानुमान (Landslide Prediction): यह तकनीक भूस्खलन की घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए भी उपयोगी है।

उदाहरण: भारत में, इसरो के CARTOSAT उपग्रह का उपयोग विभिन्न भूगर्भीय सर्वेक्षणों में किया जाता है।

6. सैन्य और रक्षा (Military and Defense)

·       सीमाओं की निगरानी (Border Surveillance): रिमोट सेंसिंग का उपयोग सीमाओं की निगरानी के लिए किया जाता है ताकि किसी भी अवैध गतिविधि का पता लगाया जा सके।

·       रणनीतिक योजना (Strategic Planning): यह तकनीक रक्षा योजनाओं को बनाने में सहायक है, क्योंकि यह विस्तृत नक्शे और डेटा प्रदान करती है।

उदाहरण: भारत के कारगिल युद्ध के दौरान, रिमोट सेंसिंग का उपयोग दुश्मनों की स्थिति का पता लगाने में किया गया था।

7. प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी (Disaster Management)

·       बाढ़ की भविष्यवाणी (Flood Prediction): रिमोट सेंसिंग की मदद से बाढ़ की संभावना का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

·       भूकंप के प्रभाव का विश्लेषण (Earthquake Impact Analysis): भूकंप के बाद प्रभावित क्षेत्रों की त्वरित निगरानी के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

उदाहरण: सुनामी के दौरान तटवर्ती क्षेत्रों में होने वाले नुकसान का आकलन रिमोट सेंसिंग द्वारा किया गया था।

निष्कर्ष

रिमोट सेंसिंग एक आधुनिक और प्रभावशाली तकनीक है, जो हमारी पृथ्वी और इसके पर्यावरण की समझ को गहरा बनाती है। इसके द्वारा प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कृषि, वन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, शहरी विकास, भूविज्ञान, सैन्य और प्राकृतिक आपदाओं जैसी अनेक क्षेत्रों में किया जा सकता है। आधुनिक युग में, यह तकनीक न केवल अनुसंधानकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए बल्कि नीति निर्धारकों और शहरी योजनाकारों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

रिमोट सेंसिंग ने हमारे पर्यावरण की समझ और प्रबंधन में एक नए युग की शुरुआत की है। इसके अनुप्रयोगों की व्यापकता और इसकी निरंतर प्रगति भविष्य में और भी अधिक संभावनाएं प्रस्तुत करती हैं।

 

प्रश्न 2:- रिमोट सेंसिंग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग में क्या अंतर है? इनके उपयोग के उदाहरण भी दीजिए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदन) एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से धरती की सतह और उसके वातावरण से जुड़ी सूचनाओं को दूरस्थ स्थानों से इकट्ठा किया जाता है। यह तकनीक वैज्ञानिक, तकनीकी, पर्यावरणीय और अनेक अन्य क्षेत्रों में उपयोग की जाती है। इसके जरिए उपग्रहों और हवाई जहाजों से धरती की सतह के चित्र या डेटा एकत्रित किए जाते हैं, जिससे उन क्षेत्रों का अध्ययन किया जा सकता है जहाँ पर सीधे जाना कठिन होता है।

2. रिमोट सेंसिंग के प्रकार

रिमोट सेंसिंग को मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: पैसिव रिमोट सेंसिंग और एक्टिव रिमोट सेंसिंग।

2.1 पैसिव रिमोट सेंसिंग (Passive Remote Sensing)

पैसिव रिमोट सेंसिंग वह तकनीक है जिसमें उपग्रह या सेंसर प्राकृतिक रूप से उपलब्ध विकिरण (जैसे सूर्य की रोशनी) का उपयोग करके डेटा एकत्र करता है। यह विकिरण वस्तुओं से परावर्तित होकर सेंसर तक पहुँचता है और सेंसर इसे रिकॉर्ड करता है। इसका मुख्य लाभ यह है कि इसमें बाहरी ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह सूर्य से मिलने वाले प्रकाश का उपयोग करता है।

विशेषताएँ:

·       केवल सूर्य के प्रकाश या अन्य प्राकृतिक विकिरण का उपयोग।

·       दिन में ही कार्य करता है, जब सूर्य की रोशनी उपलब्ध होती है।

·       रिफ्लेक्टिव (परावर्तित) और एमिसिव (उत्सर्जित) ऊर्जा का उपयोग करता है।

उदाहरण:

·       लैंडसैट उपग्रह (Landsat Satellite): यह पैसिव रिमोट सेंसिंग का एक प्रमुख उदाहरण है जो विभिन्न प्रकार के भौगोलिक और पर्यावरणीय डेटा एकत्र करता है।

·       हवाई फोटोग्राफी: सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके हवाई जहाज से तस्वीरें ली जाती हैं, जो भी पैसिव रिमोट सेंसिंग के अंतर्गत आता है।

2.2 एक्टिव रिमोट सेंसिंग (Active Remote Sensing)

एक्टिव रिमोट सेंसिंग में एक सेंसर स्वयं से ऊर्जा उत्पन्न करता है और इसे धरती की सतह पर भेजता है। जब यह ऊर्जा किसी वस्तु से टकराकर परावर्तित होती है, तो सेंसर उसे एकत्र करता है और उस डेटा का विश्लेषण करता है।

विशेषताएँ:

·       सेंसर स्वयं ऊर्जा उत्पन्न करता है और उसे धरती की सतह पर भेजता है।

·       दिन और रात दोनों में कार्य कर सकता है।

·       किसी भी मौसम में कार्य करने में सक्षम।

उदाहरण:

·       राडार (RADAR): यह माइक्रोवेव सिग्नल्स भेजता है जो वस्तुओं से टकराकर वापस लौटते हैं और सेंसर उन्हें रिकॉर्ड करता है।

·       लिडार (LiDAR): यह लेजर बीम्स का उपयोग करता है जो धरती की सतह से टकराकर सेंसर द्वारा एकत्र की जाती हैं।

3. एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग के बीच अंतर

पहलू

पैसिव रिमोट सेंसिंग

एक्टिव रिमोट सेंसिंग

ऊर्जा स्रोत

प्राकृतिक स्रोत (जैसे सूर्य)

कृत्रिम स्रोत (सेंसर द्वारा उत्पन्न)

संचालन का समय

केवल दिन में (जब सूर्य की रोशनी उपलब्ध होती है)

दिन और रात दोनों में

मौसम पर निर्भरता

बादल होने पर कार्य में कठिनाई होती है

किसी भी मौसम में कार्य कर सकता है

तकनीकी उदाहरण

लैंडसैट, मॉडिस (MODIS), हवाई फोटोग्राफी

राडार, लिडार

ऊर्जा की दिशा परावर्तित और उत्सर्जित ऊर्जा का उपयोग करता है            सक्रिय रूप से भेजी गई ऊर्जा और उसकी प्रतिक्रिया पर आधारित

4. एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग के उपयोग के उदाहरण

4.1 पैसिव रिमोट सेंसिंग के उपयोग

पैसिव रिमोट सेंसिंग का मुख्य उपयोग विभिन्न प्रकार की भौगोलिक और पर्यावरणीय जानकारी एकत्र करने में होता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ प्रकाश की उपस्थिति होती है।

·       वृक्षावरण मानचित्रण (Vegetation Mapping): उपग्रहों के जरिए विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का विश्लेषण किया जाता है। पैसिव रिमोट सेंसिंग तकनीक के तहत नीर-इन्फ्रारेड (Near-Infrared) बैंड का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के पौधों और पेड़ों के वितरण का अध्ययन किया जाता है।

·       जल संसाधन प्रबंधन (Water Resource Management): पैसिव रिमोट सेंसिंग से जल निकायों के स्तर, जल की गुणवत्ता, और नदियों व झीलों की स्थिति की निगरानी की जा सकती है।

·       शहरी विस्तार की निगरानी (Urban Expansion Monitoring): शहरी क्षेत्रों के विस्तार, निर्माण कार्य, और भूमि उपयोग में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए पैसिव रिमोट सेंसिंग का उपयोग होता है। लैंडसैट जैसे उपग्रह इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

4.2 एक्टिव रिमोट सेंसिंग के उपयोग

एक्टिव रिमोट सेंसिंग का उपयोग उन क्षेत्रों में होता है जहाँ प्रतिकूल मौसम स्थितियाँ होती हैं, या जहाँ अधिक सटीक और विस्तृत डेटा की आवश्यकता होती है।

·       वायुमंडलीय निगरानी (Atmospheric Monitoring): लिडार का उपयोग वायुमंडल में प्रदूषण के स्तर और विभिन्न गैसों की उपस्थिति की निगरानी के लिए किया जाता है। यह पवन दिशा और गति का भी मापन कर सकता है।

·       टोपोग्राफी और भौगोलिक सर्वेक्षण (Topography and Geographic Surveying): लिडार का उपयोग पहाड़ी क्षेत्रों की टोपोग्राफी तैयार करने, वन क्षेत्रों की संरचना जानने, और वन्यजीव आवासों के अध्ययन के लिए किया जाता है।

·       मौसम पूर्वानुमान और तूफान निगरानी (Weather Forecasting and Storm Monitoring): राडार का उपयोग बारिश की तीव्रता, तूफानों की दिशा और गति, और अन्य मौसम संबंधी घटनाओं की निगरानी में किया जाता है। यह एक्टिव रिमोट सेंसिंग का एक शानदार उदाहरण है।

5. रिमोट सेंसिंग के अन्य प्रकार

5.1 मल्टीस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग (Multispectral Remote Sensing)

मल्टीस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग एक प्रकार की पैसिव रिमोट सेंसिंग है जिसमें सेंसर विभिन्न प्रकार के स्पेक्ट्रल बैंड्स (जैसे नीला, हरा, लाल, नीर-इन्फ्रारेड) का उपयोग करता है। इसके द्वारा उपग्रहों से विभिन्न रंगों में डेटा एकत्रित कर वस्तुओं की पहचान की जाती है।

·       उपयोग: कृषि निगरानी, वनों की स्थिति का विश्लेषण, जल की गुणवत्ता का आकलन।

5.2 हाइपरस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग (Hyperspectral Remote Sensing)

हाइपरस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग में सेंसर बहुत ही छोटे-छोटे स्पेक्ट्रल बैंड्स का उपयोग करके बहुत ही सटीक और विस्तृत डेटा एकत्र करता है।

·       उपयोग: खनिज पहचान, पर्यावरण निगरानी, वनस्पति और मिट्टी के प्रकार की पहचान।

6. निष्कर्ष

रिमोट सेंसिंग एक अत्यंत महत्वपूर्ण तकनीक है जो आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में बहुत अधिक उपयोगी है। पैसिव और एक्टिव रिमोट सेंसिंग, दोनों के अपने-अपने उपयोग हैं और ये एक-दूसरे के पूरक भी हैं। पैसिव रिमोट सेंसिंग प्राकृतिक विकिरण पर निर्भर करता है जबकि एक्टिव रिमोट सेंसिंग कृत्रिम रूप से उत्पन्न विकिरण का उपयोग करता है।

दोनों तकनीकें कृषि, वन, शहरी विकास, मौसम विज्ञान, और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी जैसे क्षेत्रों में बहुत अधिक उपयोगी हैं। यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में रिमोट सेंसिंग की मांग और उपयोगिता और भी बढ़ेगी, क्योंकि यह हमें धरती की सतह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है जो अन्यथा उपलब्ध नहीं हो सकती।

 

प्रश्न 3:- रिमोट सेंसिंग के विकास का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अध्ययन कीजिए। इसके प्रारंभिक उपयोग से लेकर आधुनिक समय तक के महत्वपूर्ण बदलावों और तकनीकी सुधारों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग के विकास का ऐतिहासिक दृष्टिकोण

रिमोट सेंसिंग, जिसे हिंदी में दूरसंवेदी भी कहा जाता है, एक ऐसी तकनीक है जो बिना प्रत्यक्ष संपर्क के किसी वस्तु या क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह विज्ञान कई वर्षों के विकास का परिणाम है और इसके विकास के साथ कई महत्वपूर्ण तकनीकी सुधार हुए हैं। इस लेख में हम रिमोट सेंसिंग के ऐतिहासिक विकास की चर्चा करेंगे, जिसमें इसके प्रारंभिक उपयोग, प्रगति और आधुनिक समय में आए बदलाव शामिल हैं।

प्रारंभिक दौर: फोटोग्राफी का जन्म और प्रारंभिक रिमोट सेंसिंग (1800-1940)

रिमोट सेंसिंग का इतिहास 19वीं शताब्दी में आरंभ होता है, जब फोटोग्राफी का आविष्कार हुआ। 1800 के दशक की शुरुआत में, फ्रांस में जोसेफ नाइसफोर नीप्स ने पहली बार फोटोग्राफी का सफल परीक्षण किया। इसके बाद 1858 में, फ्रांसीसी वैज्ञानिक गैस्पर फेलिक्स टर्नाचॉन (जिसे नादार के नाम से भी जाना जाता है) ने पहली बार एक हॉट एयर बैलून से पेरिस शहर की तस्वीर ली। इसे प्रारंभिक रूप में रिमोट सेंसिंग का उपयोग कहा जा सकता है।

इस समय का एक अन्य महत्वपूर्ण विकास 1903 में विल्बर और ऑरविल राइट भाइयों द्वारा विमान के सफल परीक्षण के रूप में हुआ। इसके बाद, विमान के जरिए फोटोग्राफी करना संभव हो गया और इसका उपयोग प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैन्य निगरानी के लिए किया गया। इस दौरान रिमोट सेंसिंग का मुख्य रूप से उपयोग सैन्य उद्देश्य के लिए होता था, जैसे कि दुश्मन की स्थिति का पता लगाना और युद्ध के मैदान का मानचित्रण करना।

द्वितीय विश्व युद्ध और एरियल फोटोग्राफी (1940-1950)

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रिमोट सेंसिंग का महत्व और भी बढ़ गया। इस समय विमानन प्रौद्योगिकी में तेजी से विकास हुआ और एरियल फोटोग्राफी का उपयोग व्यापक रूप से किया जाने लगा। युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों, ट्रूप मूवमेंट और रक्षा प्रतिष्ठानों की निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग एक प्रमुख साधन बन गया। इसके साथ ही इंफ्रारेड फोटोग्राफी और मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग जैसी नई तकनीकों का विकास भी हुआ, जो बाद में रिमोट सेंसिंग के उन्नत रूपों के लिए आधार बनी।

अंतरिक्ष युग का उदय और उपग्रह रिमोट सेंसिंग की शुरुआत (1950-1970)

1950 के दशक के अंत और 1960 के दशक की शुरुआत में, अंतरिक्ष युग की शुरुआत हुई जब 1957 में सोवियत संघ ने पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक-1 लॉन्च किया। यह रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में एक नया युग था। 1960 के दशक में अमेरिका ने भी अपना पहला मौसम उपग्रह TIROS-1 (Television Infrared Observation Satellite) लॉन्च किया, जिसने पृथ्वी की सतह और बादलों की तस्वीरें लीं। यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम था, जिससे पृथ्वी की मौसम संबंधी निगरानी करना संभव हो सका।

इस युग में पृथ्वी के संसाधनों का अध्ययन करने के लिए नए उपग्रहों का विकास किया गया, जिसमें LANDSAT कार्यक्रम एक प्रमुख था। 1972 में लॉन्च किया गया LANDSAT-1 दुनिया का पहला पृथ्वी संसाधन उपग्रह था, जिसने कृषि, भूगोल, जंगल, पानी और खनिज संसाधनों की निगरानी करने की क्षमता प्रदान की। इस उपग्रह ने दुनिया भर में रिमोट सेंसिंग के उपयोग को एक नई दिशा दी और इसके बाद कई अन्य उपग्रह भी लॉन्च किए गए।

मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग का विकास (1970-1990)

1970 और 1980 के दशक में रिमोट सेंसिंग तकनीकों में कई महत्वपूर्ण सुधार हुए। सबसे महत्वपूर्ण विकास था मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग का उदय। इन तकनीकों में उपग्रह विभिन्न स्पेक्ट्रल बैंड्स में डेटा एकत्र कर सकते थे, जिससे विभिन्न प्रकार की सतहों और पदार्थों की पहचान और विश्लेषण करना संभव हुआ।

मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग में कुछ खास स्पेक्ट्रल बैंड्स में डेटा एकत्र किया जाता है, जबकि हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग में बहुत ही संकरे बैंड्स में डेटा एकत्र किया जाता है, जिससे अधिक सूक्ष्म और विस्तृत जानकारी मिलती है। इसने वैज्ञानिकों को कृषि, वन संसाधन, जल प्रबंधन, पर्यावरण निगरानी और यहां तक कि खनिज संसाधनों की खोज में मदद की।

इसके अलावा, 1986 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने ERS-1 (European Remote Sensing Satellite) लॉन्च किया, जो रडार रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह उपग्रह मौसम के अवरोधों के बावजूद डेटा एकत्र करने में सक्षम था, जिससे दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों की निगरानी करना आसान हो गया।

डिजिटल रिमोट सेंसिंग और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का उपयोग (1990-2000)

1990 के दशक में डिजिटल तकनीक का उदय हुआ और इससे रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में भी क्रांति आई। पहले जो फोटोग्राफ्स मैनुअली प्रोसेस की जाती थीं, अब उन्हें डिजिटल फॉर्म में बदलकर कंप्यूटरों के जरिए अधिक सटीकता से विश्लेषण किया जाने लगा। इसके साथ ही GIS (Geographic Information Systems) का भी तेजी से विकास हुआ, जो स्थानिक डेटा को व्यवस्थित और विश्लेषण करने के लिए प्रयोग में लाया गया।

इस दौर में उपग्रहों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई और डेटा प्राप्त करने की आवृत्ति में सुधार हुआ। इसके अलावा, उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी ने भी रिमोट सेंसिंग की क्षमता को बढ़ाया, जिससे सटीकता और विश्लेषण की गुणवत्ता में सुधार हुआ। उपग्रह जैसे कि IKONOS और QuickBird ने 1 मीटर से भी कम के रिज़ॉल्यूशन की इमेजरी प्रदान की, जो उच्च गुणवत्ता वाले मानचित्र बनाने में सहायक थी।

आधुनिक युग: सेंसर, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग (2000-वर्तमान)

21वीं सदी के शुरुआती वर्षों से अब तक रिमोट सेंसिंग में कई बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। उपग्रहों के साथ-साथ, ड्रोन (UAVs – Unmanned Aerial Vehicles) का भी विकास हुआ है, जो बहुत ही उच्च-रिज़ॉल्यूशन की इमेजरी प्रदान करते हैं। ड्रोन का उपयोग न केवल कृषि और पर्यावरणीय अध्ययन में हो रहा है, बल्कि आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन, वन्यजीव संरक्षण, और अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रहा है।

इसके अलावा, सेंसर तकनीकों में भी कई सुधार हुए हैं, जिसमें इंफ्रारेड, थर्मल, मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर का उपयोग शामिल है। थर्मल इमेजरी का उपयोग विशेष रूप से पर्यावरणीय निगरानी, मौसम विज्ञान और सैन्य अनुप्रयोगों में किया जा रहा है। आधुनिक उपग्रह जैसे Sentinel-1 और Sentinel-2, जो यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किए गए हैं, लगातार उच्च गुणवत्ता वाली इमेजरी प्रदान कर रहे हैं।

आधुनिक रिमोट सेंसिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का भी व्यापक उपयोग हो रहा है। ये तकनीकें डेटा प्रोसेसिंग को स्वचालित और सटीक बनाती हैं, जिससे बड़ी मात्रा में डेटा को जल्दी और प्रभावी रूप से विश्लेषित किया जा सकता है। AI आधारित एल्गोरिदम का उपयोग फसल स्वास्थ्य निगरानी, भूमि उपयोग परिवर्तन की पहचान, और जल संसाधनों की प्रबंधन में किया जा रहा है।

निष्कर्ष

रिमोट सेंसिंग के विकास का ऐतिहासिक दृष्टिकोण बताता है कि यह तकनीक कैसे 19वीं शताब्दी की शुरुआत से लेकर आज तक निरंतर विकसित होती रही है। फोटोग्राफी के आविष्कार से लेकर उपग्रह और ड्रोन तक, तकनीकी सुधारों और नवाचारों ने इसे एक बहुमुखी और व्यापक विज्ञान बना दिया है। रिमोट सेंसिंग ने न केवल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को पृथ्वी के बारे में अधिक जानकारी प्रदान की है, बल्कि इसने हमारे दैनिक जीवन को भी बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे कि मौसम पूर्वानुमान, कृषि सुधार, और पर्यावरण संरक्षण।

आधुनिक समय में, इस तकनीक का विकास निरंतर जारी है, और AI, ML, और उन्नत सेंसर तकनीकों के साथ यह और भी परिष्कृत हो रही है। भविष्य में, हम रिमोट सेंसिंग के और भी अधिक उन्नत रूप देख सकते हैं, जो पृथ्वी के संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और संरक्षण के लिए नए अवसर प्रदान करेंगे।

 

प्रश्न 4:- रिमोट सेंसिंग का क्षेत्र (स्कोप) किन-किन विषयों और उद्योगों में विस्तारित है? कृषि, पर्यावरण, मौसम विज्ञान और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing) एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से किसी वस्तु या क्षेत्र की जानकारी उस वस्तु या क्षेत्र के साथ सीधे संपर्क में आए बिना प्राप्त की जाती है। यह तकनीक विभिन्न सेंसरों और उपग्रहों की सहायता से कार्य करती है जो पृथ्वी की सतह से प्राप्त संकेतों का विश्लेषण करते हैं और उन पर आधारित डेटा इकट्ठा करते हैं। यह डेटा विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रदान करता है, जैसे भूमि उपयोग, वनस्पति कवरेज, जल संसाधन, मौसम के पैटर्न, और बहुत कुछ।

रिमोट सेंसिंग की यह विशेषता इसे विभिन्न विषयों और उद्योगों में उपयोगी बनाती है। इसके उपयोग का दायरा व्यापक है और यह कृषि, पर्यावरण, मौसम विज्ञान, शहरी नियोजन, आपदा प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन, खनन, और रक्षा जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, यह तकनीक भूविज्ञान, समुद्री विज्ञान, और प्राकृतिक संसाधनों की खोज में भी उपयोगी है। इस उत्तर में हम इन सभी विषयों और उद्योगों में रिमोट सेंसिंग के महत्व और उसके उपयोगों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कृषि में रिमोट सेंसिंग का महत्व

1. कृषि निगरानी और योजना

कृषि क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग का उपयोग फसलों की निगरानी, फसल की उत्पादकता का आकलन, और कृषि योजना के लिए किया जाता है। उपग्रह इमेजरी का उपयोग कर किसानों को यह जानकारी मिल सकती है कि कौन सी फसलें कहाँ उगाई जा रही हैं, और किस क्षेत्र में किस प्रकार की मिट्टी है। इससे किसानों को फसलों की बुवाई, सिंचाई, और खाद उपयोग की योजना बनाने में मदद मिलती है।

2. फसल की स्थिति और स्वास्थ्य का विश्लेषण

रिमोट सेंसिंग के माध्यम से विभिन्न प्रकार की इमेजिंग तकनीकों, जैसे कि नजदीकी अवरक्त (Near-Infrared) और थर्मल इमेजिंग का उपयोग किया जाता है, जिससे फसल की सेहत और विकास की जानकारी मिलती है। यह तकनीक किसानों को फसलों के रोग, पानी की कमी, और पोषक तत्वों की कमी जैसी समस्याओं का पता लगाने और समय पर उपचार करने में मदद करती है।

3. जल संसाधन प्रबंधन

कृषि में जल का कुशल प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से मिट्टी की नमी, जलवायु पैटर्न, और सिंचाई की जरूरतों का विश्लेषण कर पानी का उपयोग कुशलता से किया जा सकता है। इससे किसानों को पानी की बर्बादी को रोकने और बेहतर सिंचाई प्रणाली स्थापित करने में सहायता मिलती है।

पर्यावरण में रिमोट सेंसिंग का महत्व

1. वनों और वन्यजीवों की निगरानी

पर्यावरण की दृष्टि से रिमोट सेंसिंग का उपयोग वनों और वन्यजीवों की निगरानी के लिए किया जाता है। उपग्रह इमेजरी के माध्यम से वनों की कटाई, वन क्षेत्र में परिवर्तन, और वन्यजीवों के आवास पर नज़र रखी जा सकती है। यह जानकारी पर्यावरण संरक्षण एजेंसियों के लिए महत्वपूर्ण है जो वन्यजीवों के संरक्षण और वनों की सुरक्षा के लिए नीतियां बनाती हैं।

2. जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का आकलन

रिमोट सेंसिंग का उपयोग जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के अध्ययन में भी किया जाता है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा, धुएं के बादल, और अन्य वायुमंडलीय प्रदूषकों का पता लगाया जा सकता है। इससे वैज्ञानिकों को पर्यावरण पर बढ़ते प्रदूषण के प्रभावों का आकलन करने में मदद मिलती है, और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी भी की जा सकती है।

3. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण

प्राकृतिक संसाधनों, जैसे जल, वनस्पति, और खनिजों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए भी रिमोट सेंसिंग का उपयोग होता है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि कौन से क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण सूख रहे हैं, और कहां पर नए जल स्रोतों की खोज की जा सकती है। इस प्रकार, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उनके कुशल उपयोग के लिए रिमोट सेंसिंग एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

मौसम विज्ञान में रिमोट सेंसिंग का महत्व

1. मौसम की भविष्यवाणी

मौसम विज्ञान में रिमोट सेंसिंग का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग मौसम की भविष्यवाणी में होता है। उपग्रहों के माध्यम से तापमान, वायु दाब, वायुगतिकी, और नमी के पैटर्न की जानकारी प्राप्त की जाती है। इससे वैज्ञानिक विभिन्न प्रकार के मौसम की स्थितियों, जैसे बारिश, तूफान, बाढ़, और सूखे की भविष्यवाणी कर सकते हैं।

2. प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी

रिमोट सेंसिंग तकनीक प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी के लिए भी उपयोगी है। तूफानों, बाढ़, और सूखे जैसी आपदाओं के शुरुआती संकेतों का पता लगाने में रिमोट सेंसिंग सहायक होता है। इससे सरकार और अन्य एजेंसियों को आपदाओं से निपटने की योजना बनाने और प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को पहले से सचेत करने में मदद मिलती है।

3. जलवायु अध्ययन और अनुसंधान

मौसम विज्ञान के अध्ययन में रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग जलवायु अध्ययन के लिए भी होता है। यह विभिन्न मौसम की स्थितियों का लंबे समय तक विश्लेषण कर मौसम और जलवायु में हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद करता है। इसके माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग और उसके प्रभावों पर भी अध्ययन किया जाता है।

शहरी नियोजन में रिमोट सेंसिंग का महत्व

1. भूमि उपयोग और शहरी विकास की योजना

शहरी नियोजन में रिमोट सेंसिंग का उपयोग शहरी क्षेत्रों के विकास और भूमि उपयोग की योजना बनाने के लिए किया जाता है। उपग्रह इमेजरी के माध्यम से शहरी क्षेत्रों की विस्तार, निर्माण, और आवासीय इलाकों की जानकारी प्राप्त की जाती है। इससे शहरी नियोजकों को यह समझने में मदद मिलती है कि शहर किस दिशा में फैल रहा है और उसके लिए किस प्रकार की योजना बनानी चाहिए।

2. ट्रैफिक और परिवहन प्रणाली की योजना

शहरों में ट्रैफिक और परिवहन प्रणाली की योजना बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से सड़क नेटवर्क, ट्रैफिक जाम की स्थिति, और सार्वजनिक परिवहन की जानकारी का विश्लेषण किया जा सकता है। इससे ट्रैफिक की समस्याओं को सुलझाने और बेहतर परिवहन प्रणाली विकसित करने में सहायता मिलती है।

3. पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन

शहरीकरण के कारण पर्यावरण पर प्रभाव भी देखा जाता है, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, और हरियाली की कमी। रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से इन सभी समस्याओं का अध्ययन किया जा सकता है और पर्यावरण के संरक्षण के लिए उपाय किए जा सकते हैं। यह तकनीक शहरी क्षेत्रों में हरित पट्टियों की पहचान करने, शहरी ताप द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island) की निगरानी करने, और वायु गुणवत्ता का आकलन करने में सहायक है।

अन्य क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग का उपयोग

1. खनन और भूविज्ञान

खनन उद्योग में रिमोट सेंसिंग का उपयोग खनिजों की खोज, भौगोलिक सर्वेक्षण, और खदान की योजना बनाने के लिए किया जाता है। यह भूवैज्ञानिक संरचनाओं का अध्ययन करने और भूगर्भीय संसाधनों की पहचान करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है। इससे खनन कंपनियों को नए खनिज संसाधनों की खोज और उनकी खदानों की योजना बनाने में सहायता मिलती है।

2. आपदा प्रबंधन और राहत कार्य

प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, और तूफानों के दौरान रिमोट सेंसिंग का उपयोग आपदा की स्थिति का मूल्यांकन करने, प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने, और राहत कार्यों की योजना बनाने के लिए किया जाता है। यह तकनीक आपदा के तुरंत बाद की स्थिति का जायजा लेने और राहत सामग्री को सही स्थानों पर पहुँचाने में मदद करती है।

3. सैन्य और रक्षा

रिमोट सेंसिंग का उपयोग सैन्य और रक्षा क्षेत्रों में भी होता है। यह तकनीक दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी, सीमाओं की सुरक्षा, और सामरिक योजना बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से सैनिकों को वास्तविक समय की जानकारी मिलती है, जिससे वे अपनी सुरक्षा रणनीतियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकते हैं।

निष्कर्ष

रिमोट सेंसिंग एक बहुमुखी और व्यापक उपयोग वाली तकनीक है जिसका प्रभाव कृषि, पर्यावरण, मौसम विज्ञान, शहरी नियोजन, खनन, आपदा प्रबंधन, और रक्षा सहित कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इसके माध्यम से प्राप्त जानकारी से न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा मिलता है बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास में भी योगदान होता है।

इस तकनीक का उपयोग न केवल मौजूदा समस्याओं का समाधान ढूंढने में सहायक है बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयारी करने में मदद करता है। इसका दायरा निरंतर बढ़ रहा है और यह आधुनिक समाज के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो रहा है।

 

प्रश्न 5:- रिमोट सेंसिंग के विकास में उपग्रह प्रौद्योगिकी की भूमिका क्या है? उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग के महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों का उदाहरण देकर वर्णन कीजिए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग एक ऐसी तकनीक है जो दूरस्थ स्थानों से डेटा एकत्रित करने और उनकी छवि प्राप्त करने के लिए विद्युतचुंबकीय तरंगों का उपयोग करती है। उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास ने रिमोट सेंसिंग को एक नई दिशा और व्यापकता प्रदान की है, जिससे पृथ्वी की सतह की निगरानी और विश्लेषण अधिक सटीकता और प्रभावी तरीके से की जा सकती है। उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग ने कृषि, मौसम विज्ञान, पर्यावरण निगरानी, आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन, और जल संसाधन प्रबंधन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस लेख में, हम उपग्रह प्रौद्योगिकी की भूमिका और उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग के महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों का विस्तार से वर्णन करेंगे।

उपग्रह प्रौद्योगिकी की भूमिका:

उपग्रह प्रौद्योगिकी ने रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। प्रारंभिक दौर में, रिमोट सेंसिंग के लिए हवाई फोटोग्राफी का उपयोग किया जाता था, लेकिन इस तकनीक की कुछ सीमाएँ थीं, जैसे कि डेटा एकत्र करने की उच्च लागत और सीमित कवरेज। उपग्रहों के विकास के साथ, रिमोट सेंसिंग तकनीक अधिक उन्नत और प्रभावी बन गई। उपग्रह प्रौद्योगिकी के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

1.        विस्तृत क्षेत्र की निगरानी: उपग्रह एक बार में बड़ी भूमि सतह को कवर कर सकते हैं, जिससे एक ही समय में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से डेटा प्राप्त करना संभव होता है। उदाहरण के लिए, NOAA और मेटोसैट उपग्रहों का उपयोग वैश्विक स्तर पर मौसम की निगरानी के लिए किया जाता है।

2.      बार-बार डेटा एकत्रित करने की क्षमता: उपग्रहों के माध्यम से पृथ्वी के एक ही क्षेत्र की नियमित अंतराल पर छवियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। इससे मौसम परिवर्तन, पर्यावरणीय स्थितियों और आपदा प्रबंधन के लिए डेटा उपलब्ध कराना संभव होता है।

3.      उच्च सटीकता और रिजोल्यूशन: उपग्रहों में लगे सेंसर उच्च रिजोल्यूशन की छवियाँ प्रदान कर सकते हैं, जिससे सतह की विशेषताओं की गहराई से जाँच की जा सकती है। उदाहरण के लिए, लैंडसैट उपग्रह श्रृंखला उच्च-रिजोल्यूशन की छवियाँ प्रदान करती है, जिसका उपयोग कृषि और पर्यावरण निगरानी में किया जाता है।

4.      बहु-स्पेक्ट्रल और हाइपर-स्पेक्ट्रल इमेजिंग: उपग्रह सेंसर बहु-स्पेक्ट्रल (मल्टीस्पेक्ट्रल) और हाइपर-स्पेक्ट्रल इमेजिंग तकनीक का उपयोग करते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की सतह सामग्री की पहचान की जा सकती है। यह मिट्टी की विशेषताओं, जल की गुणवत्ता, वनस्पति और अन्य पर्यावरणीय कारकों की गहराई से अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है।

5.      दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों की निगरानी: उपग्रह प्रौद्योगिकी उन स्थानों से भी डेटा एकत्रित कर सकती है, जहाँ पहुँच पाना मुश्किल होता है, जैसे कि समुद्र के गहरे हिस्से, पर्वतीय क्षेत्र, और जंगल। इससे पर्यावरणीय निगरानी और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में सुविधा होती है।

उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग के महत्वपूर्ण अनुप्रयोग:

उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग विविध क्षेत्रों में किया जाता है। इसके प्रमुख अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:

1. कृषि निगरानी:

उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का कृषि क्षेत्र में व्यापक उपयोग होता है। फसल की वृद्धि, जल की आवश्यकता, मिट्टी की स्थिति, और फसल स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, नासा के MODIS सेंसर का उपयोग फसल की वृद्धि और उपज का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। किसानों को यह जानकारी मिलती है कि किस समय पानी देना है और किस क्षेत्र में उर्वरक की आवश्यकता है, जिससे उनकी उत्पादकता में सुधार होता है।

2. मौसम और जलवायु निगरानी:

उपग्रहों के माध्यम से पृथ्वी के वायुमंडल, महासागरों, और भूमि की सतह से डेटा एकत्रित किया जाता है, जिससे मौसम की भविष्यवाणी करना संभव होता है। उपग्रहों की मदद से तूफान, बाढ़, सूखा, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए भी उपग्रह डेटा का उपयोग किया जाता है। NOAA और GOES उपग्रहों का उदाहरण दिया जा सकता है, जो मौसम निगरानी और आपदा पूर्वानुमान में उपयोगी हैं।

3. वन निगरानी और पर्यावरण संरक्षण:

उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग वनों की निगरानी और पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है। वनों की कटाई, वनाग्नि, और वन्यजीवों के आवास की निगरानी के लिए उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया जाता है। उदाहरण के लिए, FAO (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन) वनाच्छादन की स्थिति पर निगरानी रखने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग करता है, जिससे वनों की कटाई पर रोक लगाने में सहायता मिलती है।

4. शहरी नियोजन और भूमि उपयोग:

उपग्रह डेटा का उपयोग शहरी क्षेत्रों के विस्तार, भूमि उपयोग, और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि शहरीकरण और भूमि उपयोग टिकाऊ तरीके से हो। उदाहरण के लिए, Google Earth जैसे उपग्रह आधारित उपकरण शहरी विकास योजनाकारों को बेहतर निर्णय लेने में मदद करते हैं। शहरी क्षेत्रों की सड़कों, इमारतों, और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर की निगरानी की जा सकती है।

5. प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन:

उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग जल संसाधनों, खनिज संसाधनों, और ऊर्जा संसाधनों की निगरानी के लिए किया जाता है। जल निकायों की गुणवत्ता, जलस्तर की स्थिति, और जलाशयों की क्षमता को मापने के लिए उपग्रह आधारित डेटा का उपयोग होता है। इसके अलावा, खनिज संसाधनों की खोज और ऊर्जा क्षेत्रों की पहचान के लिए भी उपग्रह तकनीक का सहारा लिया जाता है। उदाहरण के लिए, ESA के सेंटिनल-2 उपग्रह का उपयोग जल संसाधनों की स्थिति पर निगरानी रखने के लिए किया जाता है।

6.  सागर और महासागर निगरानी:

समुद्र और महासागर विज्ञान में भी उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग होता है। समुद्री सतह के तापमान, समुद्री धाराओं, प्रदूषण स्तर, और जैव विविधता का अध्ययन उपग्रहों के माध्यम से किया जाता है। यह डेटा मछली पकड़ने, शिपिंग नेविगेशन, और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, NASA का Aqua उपग्रह समुद्र के तापमान और जल की गुणवत्ता की निगरानी करता है।

7. आपदा प्रबंधन और राहत कार्य:

आपदाओं के दौरान उपग्रह डेटा का उपयोग महत्वपूर्ण होता है। बाढ़, भूकंप, तूफान, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय उपग्रह छवियों के माध्यम से वास्तविक समय की जानकारी प्राप्त की जाती है, जिससे राहत कार्यों को समन्वित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ISRO के RISAT उपग्रहों का उपयोग बाढ़ निगरानी और राहत कार्यों के लिए किया जाता है।

उपसंहार:

रिमोट सेंसिंग और उपग्रह प्रौद्योगिकी ने हमें पृथ्वी और इसके पर्यावरण को समझने और उस पर निगरानी रखने के लिए असीम संभावनाएं प्रदान की हैं। उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का महत्व न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान में बल्कि विभिन्न सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में भी है। यह तकनीक न केवल हमारी पृथ्वी की सतह के हर छोटे से छोटे हिस्से की जानकारी प्रदान करती है, बल्कि भविष्य में आने वाली चुनौतियों के समाधान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उपग्रह प्रौद्योगिकी ने रिमोट सेंसिंग को एक नई ऊँचाई दी है और यह भविष्य में और भी उन्नत और सटीक होती जाएगी।

निष्कर्ष:

उपग्रह प्रौद्योगिकी ने रिमोट सेंसिंग के उपयोग को न केवल सरल और सुलभ बनाया है, बल्कि इसकी प्रभावशीलता और सटीकता को भी बढ़ाया है। उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग ने कृषि, मौसम विज्ञान, आपदा प्रबंधन, और शहरी विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने अनुप्रयोगों के माध्यम से समाज को बहुत सारी नई संभावनाएँ प्रदान की हैं। इसके विकास के साथ, हम भविष्य में और भी सटीक और कुशल तकनीकों की उम्मीद कर सकते हैं, जो हमारे पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की बेहतर समझ और संरक्षण में सहायक सिद्ध होंगी।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- रिमोट सेंसिंग क्या है? इसकी परिभाषा दीजिए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसके माध्यम से पृथ्वी की सतह या किसी वस्तु की जानकारी बिना उसके प्रत्यक्ष संपर्क में आए प्राप्त की जाती है। इसमें उपग्रहों, विमानों या ड्रोन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के सेंसरों का उपयोग किया जाता है, जो कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण को मापते हैं और डेटा इकट्ठा करते हैं। इस प्रक्रिया में वस्तुओं से परावर्तित या उत्सर्जित ऊर्जा का विश्लेषण करके उस वस्तु के गुणधर्मों का अध्ययन किया जाता है।

रिमोट सेंसिंग का उपयोग पर्यावरण की निगरानी, कृषि, मौसम पूर्वानुमान, वन संसाधन प्रबंधन, शहरी नियोजन और आपदा प्रबंधन में होता है। इस तकनीक के अंतर्गत डेटा को ऑप्टिकल, रडार, और थर्मल इमेजिंग के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है, जिसे बाद में प्रोसेसिंग और विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाता है।

रिमोट सेंसिंग का मुख्य लाभ यह है कि इससे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों का अध्ययन भी किया जा सकता है, जहां मानव के पहुंचना कठिन होता है। इस तकनीक ने भौगोलिक अध्ययन और पृथ्वी के संसाधनों की समझ में एक नई दिशा प्रदान की है।

 

प्रश्न 2:- रिमोट सेंसिंग के कितने प्रकार होते हैं? उनके नाम बताइए।

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं: सक्रिय रिमोट सेंसिंग (Active Remote Sensing) और निष्क्रिय रिमोट सेंसिंग (Passive Remote Sensing)।

·       सक्रिय रिमोट सेंसिंग: इस प्रकार की रिमोट सेंसिंग में उपकरण स्वयं ऊर्जा उत्पन्न करके वस्तु या क्षेत्र पर भेजते हैं और फिर उस ऊर्जा के परावर्तन (reflection) या बिखराव (scattering) का विश्लेषण करते हैं। यह तकनीक रात में और बादल वाले मौसम में भी काम कर सकती है, क्योंकि यह सूर्य के प्रकाश पर निर्भर नहीं करती। इसका एक अच्छा उदाहरण राडार (Radar) और लिडार (Lidar) है।

·       निष्क्रिय रिमोट सेंसिंग: इसमें उपकरण केवल प्राकृतिक स्रोतों, जैसे सूर्य से आने वाले विकिरण (radiation), का उपयोग करते हैं। यह दिन में कार्य करता है, जब सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर उपलब्ध होती है। लैंडसैट (Landsat) जैसे उपग्रह निष्क्रिय रिमोट सेंसिंग के उदाहरण हैं। इसका उपयोग वायुमंडलीय अध्ययन, वनस्पति स्थिति और मौसम परिवर्तन की निगरानी में किया जाता है।

इन दोनों प्रकारों के आधार पर विभिन्न वैज्ञानिक और भौगोलिक अध्ययन किए जाते हैं। सक्रिय और निष्क्रिय रिमोट सेंसिंग का चयन विशिष्ट परिस्थिति और अध्ययन की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है।

 

प्रश्न 3:- एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग में क्या अंतर है?

उत्तर:- एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग में अंतर

रिमोट सेंसिंग (दूरसंवेदी) तकनीक का उपयोग धरती की सतह से डेटा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, बिना भौतिक रूप से संपर्क किए। इसे मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: एक्टिव रिमोट सेंसिंग और पैसिव रिमोट सेंसिंग। दोनों तकनीकों के बीच प्रमुख अंतर नीचे दिया गया है।

1. एक्टिव रिमोट सेंसिंग:

·       इसमें सेंसर स्वयं ऊर्जा का उत्सर्जन करता है और उस ऊर्जा के परावर्तन (reflection) के आधार पर डेटा प्राप्त करता है।

·       सक्रिय सेंसर दिन और रात दोनों समय कार्य कर सकते हैं क्योंकि वे बाहरी प्रकाश स्रोत पर निर्भर नहीं होते।

·       रडार (RADAR) और LiDAR (Light Detection and Ranging) एक्टिव रिमोट सेंसिंग के उदाहरण हैं।

·       यह विशेष रूप से बादल या धुंध के समय भी सतह से डेटा प्राप्त करने में सक्षम होता है।

2. पैसिव रिमोट सेंसिंग:

·       इसमें सेंसर सूर्य से प्राप्त प्राकृतिक ऊर्जा (सौर विकिरण) पर निर्भर होते हैं। यह डेटा सतह से परावर्तित या उत्सर्जित ऊर्जा के आधार पर एकत्रित किया जाता है।

·       पैसिव सेंसर केवल दिन में ही प्रभावी होते हैं, जब सूर्य का प्रकाश उपलब्ध होता है।

·       उदाहरण के रूप में उपग्रह आधारित ऑप्टिकल सेंसर और मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग आते हैं।

·       यह बादलों या रात के समय कार्य करने में सक्षम नहीं होता।

निष्कर्ष:

एक्टिव रिमोट सेंसिंग स्वतंत्र ऊर्जा स्रोत पर आधारित होता है, जबकि पैसिव रिमोट सेंसिंग प्राकृतिक प्रकाश पर निर्भर होता है। दोनों तकनीकों का उपयोग विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में किया जाता है और इन्हें एक-दूसरे के पूरक माना जाता है।

 

प्रश्न 4:- रिमोट सेंसिंग का उपयोग किस प्रकार के कार्यों में किया जाता है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग एक अत्याधुनिक तकनीक है, जिसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इसका प्रमुख उपयोग भूगोल, पर्यावरण अध्ययन, कृषि, शहरी नियोजन, और आपदा प्रबंधन में होता है। कृषि में रिमोट सेंसिंग का उपयोग फसल की स्थिति, मिट्टी की नमी, और कृषि भूमि के प्रकार का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। इससे किसानों को समय पर जानकारी मिलती है, जिससे वे बेहतर उत्पादन के लिए उचित कदम उठा सकते हैं।

पर्यावरणीय निगरानी में भी इसका महत्व है, जैसे वनों की कटाई, जल प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करना। शहरी नियोजन में इसका उपयोग भूमि उपयोग मानचित्र तैयार करने, ट्रैफिक प्रबंधन और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए होता है। इसके अलावा, आपदा प्रबंधन में रिमोट सेंसिंग से प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़, भूकंप, और तूफानों की पहचान और पूर्वानुमान में मदद मिलती है, जिससे बचाव कार्यों में तेजी लाई जा सके।

रक्षा और खनन उद्योग में भी रिमोट सेंसिंग का विशेष महत्व है, जहाँ सीमाओं की निगरानी और खनिज संसाधनों की खोज की जाती है। इस प्रकार, रिमोट सेंसिंग एक बहुउपयोगी तकनीक है, जो आधुनिक समाज के कई क्षेत्रों में मददगार साबित हो रही है।

 

प्रश्न 5:- रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र (स्कोप) को किन-किन क्षेत्रों में विस्तार मिला है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र (स्कोप) का विस्तार

रिमोट सेंसिंग का उपयोग समय के साथ कई क्षेत्रों में बढ़ा है और यह विज्ञान, पर्यावरण, कृषि, शहरी नियोजन, और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके कुछ प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन निम्नलिखित है:

1. पर्यावरणीय निगरानी:

रिमोट सेंसिंग का उपयोग वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और ग्लेशियरों के पिघलने जैसी पर्यावरणीय समस्याओं की निगरानी में किया जाता है।

2. कृषि और फसल प्रबंधन:

इस तकनीक का उपयोग फसलों की सेहत, मिट्टी की नमी और उपज की भविष्यवाणी के लिए होता है। सटीक कृषि (Precision Agriculture) में रिमोट सेंसिंग का विशेष योगदान है।

3. शहरी और क्षेत्रीय नियोजन:

शहरों के विस्तार, बुनियादी ढांचे के विकास, और भूमि उपयोग की योजना में रिमोट सेंसिंग की मदद ली जाती है।

4. जल संसाधन प्रबंधन:

नदियों, झीलों, और भूजल स्रोतों की निगरानी और बाढ़ जैसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में इसका उपयोग बढ़ा है।

5. आपदा प्रबंधन:

भूकंप, बाढ़, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को मापने और राहत कार्यों में रिमोट सेंसिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

6. खनिज संसाधन खोज:

खनन और खनिज भंडार की खोज के लिए भी रिमोट सेंसिंग का उपयोग होता है।

इस प्रकार, रिमोट सेंसिंग की बहुमुखी प्रकृति इसे कई क्षेत्रों में अत्यधिक उपयोगी बनाती है।

 

प्रश्न 6:- रिमोट सेंसिंग का सबसे पहला उपयोग कब और कैसे हुआ था?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग का सबसे पहला उपयोग 19वीं सदी के मध्य में हुआ था। इसका आरंभ फोटोग्राफी तकनीक के विकास के साथ माना जाता है। 1858 में फ्रांस के फोटोग्राफर गैस्पर फेलिक्स टूरनाचोन (Gaspard Félix Tournachon), जिन्हें नादर (Nadar) के नाम से भी जाना जाता है, ने पेरिस के ऊपर से गर्म हवा वाले गुब्बारे का उपयोग करके हवाई फोटोग्राफी की। यह पहली बार था जब जमीन से ऊपर उड़ते हुए किसी क्षेत्र का फोटोग्राफ लिया गया, जो रिमोट सेंसिंग का प्रारंभिक स्वरूप था।

इसके बाद, प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान हवाई फोटोग्राफी का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया, जिससे सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके। हवाई सर्वेक्षणों के माध्यम से दुश्मन के ठिकानों की पहचान करना और युद्ध रणनीति बनाने के लिए यह तकनीक बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। समय के साथ, रिमोट सेंसिंग की तकनीक में काफी विकास हुआ, और कृत्रिम उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद इसका वैज्ञानिक उपयोग मौसम पूर्वानुमान, मानचित्रण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में किया जाने लगा।

आज रिमोट सेंसिंग का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में जैसे कृषि, पर्यावरण अध्ययन, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन में व्यापक रूप से हो रहा है।

 

प्रश्न 7:- रिमोट सेंसिंग के विकास में उपग्रहों की क्या भूमिका है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग के विकास में उपग्रहों की भूमिका

रिमोट सेंसिंग तकनीक के विकास में उपग्रहों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उपग्रहों की सहायता से पृथ्वी के विभिन्न भागों की लगातार और विस्तृत जानकारी एकत्रित करना संभव हुआ है। रिमोट सेंसिंग उपग्रह पृथ्वी की सतह, जलवायु, पर्यावरण, और प्राकृतिक संसाधनों पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करते हैं, जो कृषि, वानिकी, भूगोल, और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में अत्यंत उपयोगी है।

1960 के दशक में प्रारंभ हुए रिमोट सेंसिंग उपग्रह मिशनों ने पृथ्वी अवलोकन में क्रांति ला दी। उदाहरण के लिए, अमेरिकी लैंडसैट (Landsat) और भारतीय रिमोट सेंसिंग (IRS) उपग्रह श्रृंखलाओं ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन चित्र और मल्टीस्पेक्ट्रल डेटा प्रदान कर कृषि, मृदा और जल संसाधन प्रबंधन में मदद की है। उपग्रहों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की निगरानी, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी और पर्यावरणीय स्थितियों का विश्लेषण भी किया जा सकता है।

आज, उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग ने डेटा संग्रहण को न केवल तेज़ और कुशल बनाया है बल्कि वैश्विक स्तर पर जानकारी तक सुलभता भी बढ़ाई है। इस प्रकार, उपग्रहों ने रिमोट सेंसिंग के विकास में एक आधारशिला की भूमिका निभाई है।

 

प्रश्न 8:- रिमोट सेंसिंग का उपयोग मौसम विज्ञान में कैसे किया जाता है?

उत्तर:- मौसम विज्ञान में रिमोट सेंसिंग का उपयोग

रिमोट सेंसिंग तकनीक का मौसम विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान है। यह तकनीक उपग्रहों और सेंसरों की मदद से पृथ्वी की सतह और वातावरण का अवलोकन करती है, जिससे मौसम से संबंधित सूचनाएँ इकट्ठा की जाती हैं। मौसम विज्ञान में रिमोट सेंसिंग का उपयोग कई क्षेत्रों में होता है, जैसे मौसम पूर्वानुमान, तूफान की पहचान, वायु गुणवत्ता का आकलन, वर्षा माप और जलवायु परिवर्तन की निगरानी।

उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग के माध्यम से वायुमंडल के तापमान, नमी, बादल संरचना और वायुदाब का डेटा एकत्रित किया जाता है। यह डेटा सुपरकंप्यूटरों में भेजा जाता है, जहाँ जटिल गणनाओं और मॉडलिंग के द्वारा सटीक मौसम पूर्वानुमान तैयार किया जाता है। साथ ही, रिमोट सेंसिंग से प्राकृतिक आपदाओं, जैसे चक्रवात और बाढ़ की जानकारी समय से पहले मिल जाती है, जिससे जान-माल के नुकसान को कम करने में मदद मिलती है।

रिमोट सेंसिंग का उपयोग लंबे समय के जलवायु परिवर्तनों को समझने में भी होता है। यह विभिन्न गैसों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन की मात्रा पर नजर रखता है, जो ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय असंतुलन के संकेत देते हैं। इस प्रकार, रिमोट सेंसिंग मौसम विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत उपयोगी है।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- रिमोट सेंसिंग की परिभाषा क्या है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह और अन्य वस्तुओं की जानकारी बिना किसी सीधे संपर्क के एकत्र की जाती है। इसमें उपग्रहों, विमानों और ड्रोन द्वारा इन्फ्रारेड, रडार और अन्य सिग्नल्स का उपयोग कर चित्रों और डेटा को प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 2:- रिमोट सेंसिंग के कितने प्रकार होते हैं?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: सक्रिय और पैसिव रिमोट सेंसिंग। सक्रिय रिमोट सेंसिंग में स्रोत से ऊर्जा भेजी जाती है, जबकि पैसिव रिमोट सेंसिंग में प्राकृतिक रोशनी का उपयोग किया जाता है। दोनों विधियों का उपयोग विभिन्न प्रकार के डेटा एकत्रित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 3:- एक्टिव रिमोट सेंसिंग क्या है?

उत्तर:- एक्टिव रिमोट सेंसिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें एक उपकरण ऊर्जा को लक्ष्य की ओर भेजता है और फिर उस लक्ष्य से वापस लौटने वाले सिग्नल को मापता है। उदाहरण के लिए, रडार और लिडार प्रणाली का उपयोग इसी प्रकार किया जाता है। यह उच्च सटीकता और विस्तार से डेटा प्रदान करता है।

प्रश्न 4:- पैसिव रिमोट सेंसिंग का उदाहरण दीजिए।

उत्तर:- पैसिव रिमोट सेंसिंग में प्राकृतिक रोशनी का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, सैटेलाइट जैसे लैंडसैट या स्पॉट का उपयोग करके, जो सूर्य के प्रकाश को पकड़ते हैं और उसके प्रतिबिंबित चित्रों को रिकॉर्ड करते हैं, पैसिव रिमोट सेंसिंग का एक सामान्य उदाहरण है।

प्रश्न 5:- रिमोट सेंसिंग का उपयोग मुख्य रूप से किस कार्य के लिए किया जाता है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि भू-उपयोग मानचित्रण, प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी, पर्यावरणीय परिवर्तन का अध्ययन और आपदा प्रबंधन। यह तकनीक भूमि उपयोग के पैटर्न, जलवायु परिवर्तन और वन्यजीव संरक्षण में भी सहायक होती है।

प्रश्न 6:- रिमोट सेंसिंग के विकास की शुरुआत किस वर्ष से मानी जाती है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग के विकास की शुरुआत 1960 के दशक में मानी जाती है, जब पहले उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। तब से यह तकनीक तेजी से विकसित हुई है, जिससे हमें बेहतर जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली है।

प्रश्न 7:- उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का क्या महत्व है?

उत्तर:- उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का महत्व व्यापक है। यह पृथ्वी की सतह के विस्तृत और सटीक चित्र प्रदान करता है। इसके माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग परिवर्तन का अध्ययन किया जा सकता है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता मिलती है।

प्रश्न 8:- रिमोट सेंसिंग का एक प्रमुख अनुप्रयोग क्या है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग का एक प्रमुख अनुप्रयोग भूमि उपयोग और भूमि कवर की निगरानी है। यह कृषि, वनों, जल स्रोतों और शहरी विकास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है, जिससे संसाधनों के प्रबंधन और योजना में मदद मिलती है।

प्रश्न 9:- रिमोट सेंसिंग का क्षेत्र (स्कोप) किन-किन क्षेत्रों में है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग का क्षेत्र विविध है, जिसमें कृषि, वन्यजीव संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण अध्ययन, शहरी विकास, प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन और भूविज्ञान शामिल हैं। यह विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 10:- रिमोट सेंसिंग में ‘डाटा कलेक्शन’ कैसे होता है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग में ‘डाटा कलेक्शन’ उपग्रहों और विमानों के माध्यम से किया जाता है, जो विभिन्न तरंग दैर्ध्य के इन्फ्रारेड, रडार और दृश्य चित्र एकत्रित करते हैं। इन चित्रों का विश्लेषण करके भौगोलिक और पर्यावरणीय डेटा प्राप्त किया जाता है, जो विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोग होता है।

प्रश्न 11:- रिमोट सेंसिंग का पर्यावरण अध्ययन में क्या उपयोग है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग का पर्यावरण अध्ययन में उपयोग महत्वपूर्ण है। यह वनस्पति की वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, और जैव विविधता की निगरानी में सहायता करता है। इसके जरिए प्रदूषण के स्तर और जलवायु संबंधी बदलावों का मूल्यांकन किया जाता है, जिससे बेहतर नीतियों का निर्माण संभव होता है।

प्रश्न 12:- रिमोट सेंसिंग तकनीक का कृषि में किस प्रकार लाभ होता है?

उत्तर:- रिमोट सेंसिंग तकनीक का कृषि में लाभ फसल स्वास्थ्य, भूमि उपयोग, और जल संसाधनों की निगरानी के माध्यम से होता है। यह किसानों को फसल उत्पादन बढ़ाने, रोगों का पूर्वानुमान करने और संसाधनों के प्रभावी उपयोग में मदद करता है, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार होता है।

 

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