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Bioorganic and Medicinal Chemistry - जैव कार्बनिक और औषधीय रसायन विज्ञान – Adv

Summary and MCQs

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Unit 1: Hindi Summary – Bioorganic and Medicinal Chemistry

कार्बोहाइड्रेट्स की रसायन विज्ञान पर विस्तृत सारांश

परिचय: कार्बोहाइड्रेट्स जीवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण जैविक अणु हैं, जो जीवन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। ये मुख्य रूप से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अणुओं से बने होते हैं और जीवों के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होते हैं। साथ ही, ये कोशिकाओं की संरचना, ऊर्जा संग्रहण, और सिग्नलिंग अणुओं के रूप में भी कार्य करते हैं। यह विषय छात्रों को कार्बोहाइड्रेट्स की रासायनिक संरचना, वर्गीकरण, गुण, और उनके जैविक महत्व को समझाने का प्रयास करता है।

इस विषय के अध्ययन के माध्यम से, छात्र यह समझ पाएंगे कि कैसे ये अणु शरीर के उचित विकास और कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक होते हैं और कैसे यह औद्योगिक अनुप्रयोगों जैसे खाद्य, पेय और फार्मास्यूटिकल्स उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण:

कार्बोहाइड्रेट्स को उनकी संरचना और उनकी जटिलता के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:

1.        मोनोसेकेराइड्स (Monosaccharides): यह सबसे सरल रूप के कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जो केवल एक शर्करा अणु से बने होते हैं। इन्हें और अधिक वर्गीकृत किया जा सकता है:

·       ट्राइओसेस (3 कार्बन अणु): जैसे कि ग्लिसरल्डिहाइड।

·       टेट्रोसेस (4 कार्बन अणु): जैसे कि एरिथ्रोस।

·       पेंटोजेस (5 कार्बन अणु): जैसे कि रिबोज (जो RNA में पाया जाता है)।

·       हेक्सोजेस (6 कार्बन अणु): जैसे कि ग्लूकोज और फ्रक्टोज।

2.      डायसेकेराइड्स (Disaccharides): दो मोनोसेकेराइड्स से मिलकर बनते हैं। उदाहरण:

·       सुक्रोज (ग्लूकोज + फ्रक्टोज)

·       माल्टोज (ग्लूकोज + ग्लूकोज)

·       लैक्टोज (ग्लूकोज + गैलैक्टोज)

3.      ओलिगोसेकेराइड्स (Oligosaccharides): इनमें 3-10 मोनोसेकेराइड्स होते हैं। ये अक्सर कोशिका पहचान प्रक्रियाओं में शामिल होते हैं।

4.      पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides): ये बड़े कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जिनमें 10 या उससे अधिक मोनोसेकेराइड्स होते हैं। उदाहरण: स्टार्च, ग्लाइकोजन, और ुलोज।

रिड्यूसिंग और नॉन-रिड्यूसिंग शर्करा:

कार्बोहाइड्रेट्स को उनके रिड्यूसिंग गुणों के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • रिड्यूसिंग शर्करा (Reducing Sugars): ये वे शर्कराएं होती हैं जो ऑक्सीकरण प्रतिक्रिया में भाग ले सकती हैं, क्योंकि इनमें एक मुक्त एल्डिहाइड या कीटोन समूह होता है। ग्लूकोज, माल्टोज, और लैक्टोज रिड्यूसिंग शर्कराएं हैं।
  • नॉन-रिड्यूसिंग शर्करा (Non-Reducing Sugars): इन शर्करों में कोई मुक्त एल्डिहाइड या कीटोन समूह नहीं होता है, और इसलिए वे ऑक्सीकरण प्रतिक्रियाओं में भाग नहीं ले सकतीं। सुक्रोज एक उदाहरण है।

ग्लूकोज और फ्रक्टोज के सामान्य गुण:

ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो महत्वपूर्ण मोनोसेकेराइड्स हैं, जो जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत हैं।

  • ग्लूकोज:

·       रासायनिक सूत्र: C6H12O6

·       यह एक हेक्सोज मोनोसेकेराइड है जिसमें एल्डिहाइड समूह होता है।

·       यह रक्त में पाई जाती है और कोशिकाओं तक पहुंचने के लिए इंसुलिन द्वारा परिवहन किया जाता है।

  • फ्रक्टोज:

·       रासायनिक सूत्र: C6H12O6

·       यह एक हेक्सोज मोनोसेकेराइड है जिसमें कीटोन समूह होता है।

·       यह मुख्य रूप से फलों में पाया जाता है और यकृत में इसका मेटाबोलिज्म होता है।

ग्लूकोज और फ्रक्टोज की ओपन चेन संरचना:

ग्लूकोज और फ्रक्टोज की ओपन चेन संरचना उनके रासायनिक गुणों को प्रभावित करती है।

  • ग्लूकोज: इसमें एल्डिहाइड समूह होता है जो इसे रिड्यूसिंग शर्करा बनाता है। यह अपनी हाइड्रॉक्सिल समूह से प्रतिक्रिया करके सायक्लिक संरचना बना सकता है।
  • फ्रक्टोज: इसमें कीटोन समूह होता है, जो इसकी हेमीकटैल संरचना को बनाने के लिए ऑल्कोहल समूह के साथ प्रतिक्रिया करता है।

एपिमर्स, म्यूटेरोटेशन और एनोमर्स:

  • एपिमर्स: ये स्टीरियोज़ाइमर्स होते हैं जो केवल एक कार्बन परमाणु के निर्माण में भिन्न होते हैं। ग्लूकोज और गैलैक्टोज इसके उदाहरण हैं।
  • म्यूटेरोटेशन: जब शर्करा जैसे ग्लूकोज या फ्रक्टोज को पानी में घोला जाता है, तो ये अपनी ओपन-चेन और सायक्लिक संरचनाओं के बीच इंटरकन्वर्ट करते हैं। इस प्रक्रिया के कारण घोल का ऑप्टिकल रोटेशन बदलता है।
  • एनोमर्स: ये दो सायक्लिक रूप होते हैं जो एनोमेरिक कार्बन के संयोजन में भिन्न होते हैं। ग्लूकोज में α-D-ग्लूकोज और β-D-ग्लूकोज इसके उदाहरण हैं।

म्यूटेरोटेशन की प्रक्रिया:

म्यूटेरोटेशन एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें शर्करा की ओपन-चेन और सायक्लिक रूपों के बीच संतुलन स्थापित होता है। यह ऑप्टिकल रोटेशन में परिवर्तन करता है क्योंकि α और β एनोमर्स के बीच रासायनिक संतुलन बनता है।

ग्लूकोज के कंफिगरेशन का निर्धारण (फिशर का प्रमाण):

फिशर ने ग्लूकोज के कंफिगरेशन को निर्धारित करने के लिए ग्लूकोज के रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया। उन्होंने यह साबित किया कि ग्लूकोज D-फॉर्म में होता है और इसे फिशर प्रक्षेपण के माध्यम से दिखाया गया।

ग्लूकोज की सायक्लिक संरचना (हॉवर्थ प्रक्षेपण):

ग्लूकोज की सायक्लिक संरचना तब बनती है जब इसकी हाइड्रॉक्सिल समूह कार्बन 5 से एल्डिहाइड समूह (कार्बन 1) से प्रतिक्रिया करती है। इससे एक हेमीएसिटल बंधन बनता है और एक छह-मेंबर रिंग बनती है, जिसे पिरानोज़ रिंग कहा जाता है।

हॉवर्थ प्रक्षेपण में इस रिंग को फ्लैट रूप में दिखाया जाता है, जिसमें रिंग की संरचना में हाइड्रॉक्सिल समूह की स्थिति (आक्सी और इक्वेटोरियल) के आधार पर α और β एनोमर्स होते हैं।

फ्रक्टोज की सायक्लिक संरचना:

फ्रक्टोज की सायक्लिक संरचना में एक पाँच-मेंबर रिंग होती है, जिसे फ्युरानोज़ रिंग कहा जाता है। यह रिंग कार्बन 2 की कीटोन समूह और कार्बन 5 की हाइड्रॉक्सिल समूह से बनती है।

शर्करा का आपसी परिवर्तन (इंटरकन्वर्शन):

शर्कराएं विभिन्न रासायनिक विधियों से एक-दूसरे में परिवर्तित हो सकती हैं:

  • आसेंडिंग और डीसेंडिंग शुगर सीरीज: इस प्रक्रिया में, अल्डोजेस को उच्च या निम्न शर्कराओं में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए, ग्लूकोज को गैलैक्टोज़ या फ्रक्टोज़ में बदला जा सकता है।
  • अल्डोज से कीटोज का रूपांतरण: अल्डोजेस को कीटोजेस में रूपांतरित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया अम्लीय परिस्थितियों में होती है, जहां ग्लूकोज को फ्रक्टोज में बदला जा सकता है।

लॉब्री डे ब्रुयिन-वैन एकेनस्टीन पुनर्व्यवस्था:

यह प्रक्रिया अल्डोजेस और कीटोजेस के बीच रूपांतरण के लिए जिम्मेदार होती है। इसमें एक एनीडियोल मध्यवर्ती चरण बनता है, जो हाइड्रॉक्सिल समूह को स्थानांतरित करता है और एक नया कार्बोनिल समूह बनाता है।

किलियानी-फिशर विधि (आल्डोजेस का स्टेपिंग-अप):

इस विधि में, एक अल्डोज़ श्रृंखला को एक कार्बन परमाणु से बढ़ाया जाता है। इसमें एक आल्डोसोनाइट्राइल मध्यवर्ती का निर्माण होता है, जिसे हाइड्रोलाइज करके उच्च अल्डोज़ प्राप्त किया जाता है।

रफ और वोहल विधि (आल्डोजेस का स्टेपिंग-डाउन):

इन विधियों में, आल्डोजेस को छोटे शर्कराओं में तोड़ा जाता है। रफ विधि में आल्डोजेस को आक्सीकरण करके एसिड डेरिवेटिव्स में बदला जाता है, जबकि वोहल विधि में एक प्रतिक्रिया श्रृंखला के माध्यम से आल्डोज़ को छोटे शर्कराओं में बदला जाता है।

मोनोसेकेराइड्स के बीच लिंकिज और डायसेकेराइड्स की संरचना:

डायसेकेराइड्स दो मोनोसेकेराइड्स के बीच एक ग्लाइकोसिडिक बंधन के द्वारा बनते हैं। इस बंधन के लिए एक कंडेन्सेशन प्रतिक्रिया आवश्यक होती है, जिसमें दो शर्कराओं के हाइड्रॉक्सिल समूह प्रतिक्रिया करते हैं।

·       सुक्रोज: यह ग्लूकोज और फ्रक्टोज से बनता है, जिसमें एक α,β-ग्लाइकोसिडिक बंधन होता है।

·       माल्टोज: यह दो ग्लूकोज अणुओं से बनता है, जिसमें α-1,4 ग्लाइकोसिडिक बंधन होता है।

·       लैक्टोज: यह गैलैक्टोज और ग्लूकोज से बनता है, जिसमें β-1,4 ग्लाइकोसिडिक बंधन होता है।

निष्कर्ष: कार्बोहाइड्रेट्स जीवन के लिए आवश्यक जैविक अणु होते हैं, जो शरीर की ऊर्जा आवश्यकताओं और संरचनात्मक कार्यों को पूरा करने में मदद करते हैं। इनकी रासायनिक संरचना, गुण, और परिवर्तनीयताएँ जैविक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण हैं और इन्हें समझने से जीवन और औद्योगिक अनुप्रयोगों में इनके महत्व को समझने में मदद मिलती है। यह विषय छात्रों को इन अणुओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है और उद्योगों में इनका उपयोग करने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करता है।

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