भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं व्यापार अर्थशास्त्र की अवधारणा
1. भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री
भारत में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में कई महान व्यक्तित्वों ने योगदान दिया है। इन अर्थशास्त्रियों ने न केवल आर्थिक सिद्धांतों को विकसित किया बल्कि भारत की आर्थिक नीतियों को भी प्रभावित किया। आइए, कुछ प्रमुख भारतीय अर्थशास्त्रियों के जीवन और उनके योगदान को विस्तार से समझते हैं।
1.1 कौटिल्य (चाणक्य)
परिचय:
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के प्रमुख सलाहकार थे। उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान पर अपनी महत्वपूर्ण कृति “अर्थशास्त्र” लिखी, जो अर्थव्यवस्था, प्रशासन और राजस्व प्रणाली की गहन व्याख्या प्रदान करती है।
योगदान:
· कराधान और वित्तीय प्रशासन की विस्तृत प्रणाली विकसित की।
· राज्य नियंत्रण एवं व्यापार नीति पर जोर दिया।
· कृषि एवं व्यापार के संतुलन की वकालत की।
· आर्थिक स्थिरता के लिए मजबूत प्रशासनिक संरचना पर बल दिया।
1.2 गोपाल कृष्ण गोखले
परिचय:
गोपाल कृष्ण गोखले एक समाज सुधारक और अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने भारत के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु भी माने जाते हैं।
योगदान:
· भारतीय अर्थव्यवस्था में शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर बल दिया।
· ब्रिटिश सरकार की नीतियों के अंतर्गत कराधान की आलोचना की।
· भारतीय उद्योगों और श्रम नीतियों को सुधारने की मांग की।
1.3 डी.आर. गाडगिल
परिचय:
डी.आर. गाडगिल एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने भारत की पंचवर्षीय योजनाओं को आकार देने में मदद की। वे एक समाजवादी विचारक थे और उन्होंने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहन शोध किया।
योगदान:
· भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का गहन अध्ययन किया।
· मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की वकालत की।
· सहकारी आंदोलन को बढ़ावा दिया।
· कृषि सुधारों एवं योजनाबद्ध विकास को समर्थन दिया।
1.4 डॉ. राम मनोहर लोहिया
परिचय:
डॉ. लोहिया एक प्रख्यात समाजवादी नेता और अर्थशास्त्री थे। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता की वकालत की।
योगदान:
· समाजवादी अर्थव्यवस्था की वकालत की।
· “न्यूनतम मजदूरी और अधिकतम संपत्ति” की अवधारणा प्रस्तुत की।
· ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
· औद्योगीकरण की नीति की आलोचना करते हुए विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था का समर्थन किया।
1.5 पंडित जवाहरलाल नेहरू
परिचय:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला रखी। उन्होंने औद्योगीकरण और समाजवाद की अवधारणा पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाया।
योगदान:
· मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति अपनाई।
· भारी उद्योगों को प्रोत्साहित किया।
· पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की।
· सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को प्राथमिकता दी।
1.6 डॉ. भीमराव अंबेडकर
परिचय:
डॉ. बी.आर. अंबेडकर न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे, बल्कि वे एक प्रख्यात अर्थशास्त्री भी थे।
योगदान:
· भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना में योगदान दिया।
· जल संसाधन नीति तैयार की।
· कृषि सुधारों पर बल दिया।
· वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया।
2. व्यापार अर्थशास्त्र: परिचय, स्वरूप और महत्व
2.1 व्यापार अर्थशास्त्र का परिचय एवं स्वरूप
व्यापार अर्थशास्त्र (Business Economics) वह शाखा है जो व्यावसायिक निर्णयों के लिए आर्थिक सिद्धांतों का उपयोग करती है। यह आर्थिक समस्याओं का व्यावहारिक विश्लेषण प्रदान करता है और व्यावसायिक नीतियों के निर्माण में सहायता करता है।
2.2 व्यापार अर्थशास्त्र का महत्व
· बाजार विश्लेषण में सहायता करता है।
· मांग और आपूर्ति का मूल्यांकन करता है।
· मूल्य निर्धारण नीति को निर्धारित करता है।
· उत्पादन एवं लागत का विश्लेषण करता है।
· प्रतिस्पर्धा का अध्ययन करता है।
3. मांग एवं इसकी अवधारणा
3.1 मांग का अर्थ और प्रकार
मांग (Demand) से तात्पर्य उपभोक्ताओं द्वारा किसी वस्तु या सेवा की वह मात्रा है जिसे वे एक निश्चित समयावधि में, एक निश्चित मूल्य पर क्रय करने के इच्छुक और सक्षम होते हैं।
मांग के प्रकार:
· प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष मांग
· व्यक्तिगत एवं सामूहिक मांग
· आवश्यक एवं विलासिता वस्तुओं की मांग
3.2 मांग का नियम (Law of Demand)
मांग का नियम कहता है कि यदि अन्य परिस्थितियाँ स्थिर रहें, तो किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि से उसकी मांग घटती है और कीमत में कमी से मांग बढ़ती है।
3.3 सीमांत घटती उपयोगिता का नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)
इस नियम के अनुसार, किसी वस्तु की उपभोग मात्रा बढ़ने के साथ-साथ उसकी अतिरिक्त उपयोगिता (Marginal Utility) घटती जाती है।
4. माँग की लोच (Elasticity of Demand)
4.1 माँग लोच का अर्थ
माँग लोच से आशय है कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी माँग में कितनी अधिक या कम प्रतिक्रिया होती है।
4.2 माँग लोच के प्रकार
1. मूल्य लोच (Price Elasticity)
2. आय लोच (Income Elasticity)
3. क्रॉस लोच (Cross Elasticity)
4.3 माँग लोच के निर्धारक
· प्रतिस्थापन की उपलब्धता
· वस्तु की प्रकृति
· वस्तु का उपयोग
· समय अवधि
4.4 माँग लोच का महत्व
· मूल्य निर्धारण में सहायक
· कराधान नीति पर प्रभाव
· उत्पादन नीति पर प्रभाव
· आय वितरण में संतुलन
निष्कर्ष
व्यापार अर्थशास्त्र किसी भी व्यवसाय के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मांग और इसकी लोच का ज्ञान व्यावसायिक निर्णयों के लिए आवश्यक है, जिससे व्यापार रणनीतियों का विकास किया जा सकता है।