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तुलनात्मक सरकार और राजनीति (यूके, यूएसए, स्विट्जरलैंड और चीन) (सेमेस्टर -5)

तुलनात्मक सरकार और राजनीति (यूके, यूएसए, स्विट्जरलैंड और चीन) - संक्षिप्त अध्ययन

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यूनिट-1: तुलनात्मक सरकार और राजनीति (यूके, यूएसए, स्विट्जरलैंड और चीन)

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- तुलनात्मक राजनीति का स्वरूप, उद्देश्य और महत्व क्या है? राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के विभिन्न दृष्टिकोणों की विस्तार से व्याख्या कीजिए। तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होने वाले लाभों पर भी चर्चा करें।

उत्तर:- तुलनात्मक राजनीति का स्वरूप, उद्देश्य और महत्व

तुलनात्मक राजनीति (Comparative Politics) राजनीति विज्ञान की एक प्रमुख शाखा है, जिसमें विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों, नीतियों, और राजनीतिक व्यवहारों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इसका उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं की विशेषताओं, उनके बीच के संबंधों, और उनके प्रभावों को समझना होता है। तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में मुख्य रूप से यह देखा जाता है कि विभिन्न देशों की सरकारें और राजनीतिक प्रणालियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं और एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न होती हैं।

तुलनात्मक राजनीति का स्वरूप

तुलनात्मक राजनीति का स्वरूप बहुआयामी होता है। यह केवल सरकारों और राजनीतिक प्रणालियों की तुलना तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक संबंधों जैसे कई अन्य कारकों को भी ध्यान में रखता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसमें एक देश की राजनीतिक प्रणाली को दूसरों से तुलना करके उसके प्रभावों और परिणामों का विश्लेषण किया जाता है। तुलनात्मक राजनीति के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं:

1. विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन: तुलनात्मक राजनीति का प्रमुख हिस्सा यह होता है कि यह विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों, चुनावी प्रक्रियाओं और राजनीतिक दलों का अध्ययन करती है। उदाहरण के लिए, लोकतांत्रिक और अधिनायकवादी प्रणालियों की तुलना, संघीय और एकात्मक प्रणालियों की तुलना आदि।

2. संविधान और कानूनों का विश्लेषण: विभिन्न देशों के संविधान, कानून और उनकी संरचना का अध्ययन भी तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत आता है। यह देखा जाता है कि कैसे विभिन्न देशों के संविधानों और कानूनों में अंतर होता है और उनका राजनीतिक प्रक्रियाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है।

3. राजनीतिक संस्थानों की तुलना: राजनीतिक संस्थानों, जैसे कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, और प्रशासनिक संस्थानों की तुलना करना भी तुलनात्मक राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि विभिन्न देशों में इन संस्थानों की भूमिकाएँ और कार्य कैसे भिन्न होते हैं।

4. राजनीतिक संस्कृति और विचारधाराओं का अध्ययन: राजनीतिक संस्कृति और विचारधाराओं का अध्ययन भी तुलनात्मक राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विभिन्न देशों की राजनीतिक संस्कृति, विचारधाराएँ और परंपराएँ किस प्रकार उनकी राजनीति को प्रभावित करती हैं, इसका अध्ययन किया जाता है।

तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य

तुलनात्मक राजनीति का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं के बीच के समानताओं और भिन्नताओं को समझना होता है। इसके तहत निम्नलिखित उद्देश्य आते हैं:

1. राजनीतिक प्रणालियों का विश्लेषण: तुलनात्मक राजनीति का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का गहन विश्लेषण करना है। इसके तहत यह देखा जाता है कि कैसे विभिन्न राजनीतिक संस्थान और प्रक्रियाएँ काम करती हैं और उनका समाज और राज्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।

2. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की समझ: तुलनात्मक राजनीति का एक अन्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को समझना है। यह देखा जाता है कि विभिन्न देशों के बीच के राजनीतिक संबंध कैसे स्थापित होते हैं और विभिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ एक-दूसरे से किस प्रकार प्रभावित होती हैं।

3. राजनीतिक विकास का अध्ययन: तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन का एक प्रमुख उद्देश्य विभिन्न देशों के राजनीतिक विकास का विश्लेषण करना है। यह देखा जाता है कि कैसे विभिन्न देशों ने अपने राजनीतिक तंत्र को विकसित किया है और उसमें क्या-क्या बदलाव हुए हैं।

4. समस्याओं का समाधान: तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य केवल विश्लेषण करना ही नहीं, बल्कि राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव देना भी है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी देश में चुनावी प्रक्रिया में समस्याएँ आ रही हैं, तो तुलनात्मक राजनीति के आधार पर अन्य देशों के चुनावी मॉडल से प्रेरणा ली जा सकती है।

राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के विभिन्न दृष्टिकोण

तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में कई दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं। ये दृष्टिकोण हमें विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं को समझने में मदद करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

1. संस्थागत दृष्टिकोण (Institutional Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थानों, जैसे संसद, न्यायपालिका, और कार्यपालिका पर केंद्रित होता है। यह देखा जाता है कि कैसे ये संस्थान कार्य करते हैं और उनका राजनीतिक प्रक्रियाओं पर क्या प्रभाव होता है। यह दृष्टिकोण पारंपरिक है और इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न देशों की संस्थागत संरचनाओं की तुलना करना होता है।

2. व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Behavioural Approach): यह दृष्टिकोण नागरिकों और नेताओं के राजनीतिक व्यवहार पर केंद्रित होता है। इसमें यह देखा जाता है कि विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों में लोग किस प्रकार निर्णय लेते हैं, राजनीतिक दल कैसे कार्य करते हैं, और मतदान का क्या पैटर्न होता है। यह दृष्टिकोण तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह राजनीतिक प्रक्रियाओं को जमीनी स्तर पर समझने में मदद करता है।

3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण (Cultural Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक संस्कृति, परंपराएँ, और विचारधाराओं पर आधारित होता है। इसके तहत यह देखा जाता है कि कैसे समाज की संस्कृति और परंपराएँ राजनीतिक निर्णयों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत की राजनीतिक संस्कृति और अमेरिका की राजनीतिक संस्कृति में बहुत अंतर है, जो दोनों देशों की राजनीतिक प्रणालियों में भी देखा जा सकता है।

4. सिस्टम दृष्टिकोण (System Approach): यह दृष्टिकोण विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों को एक सिस्टम के रूप में देखता है, जिसमें इनपुट और आउटपुट होते हैं। यह दृष्टिकोण राजनीतिक प्रक्रियाओं और नीतियों को सिस्टम के भीतर होने वाली गतिविधियों के रूप में समझने में मदद करता है। इसमें यह देखा जाता है कि एक राजनीतिक प्रणाली किस प्रकार कार्य करती है और उसके परिणाम क्या होते हैं।

5. संरचनात्मक दृष्टिकोण (Structural Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक संरचनाओं, जैसे सरकार, संविधान, राजनीतिक दल, और ब्यूरोक्रेसी पर केंद्रित होता है। यह देखा जाता है कि इन संरचनाओं का देश की राजनीतिक प्रक्रियाओं और नीतियों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होने वाले लाभ

तुलनात्मक अध्ययन से विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है, जो राजनीति के अध्ययन को और भी गहरा और व्यापक बनाती है। इसके कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

1. राजनीतिक प्रणालियों की गहरी समझ: तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से हम विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की गहराई से समझ प्राप्त कर सकते हैं। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था किस प्रकार कार्य करती है और क्यों वह अन्य देशों से भिन्न होती है।

2. सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं की पहचान: तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से हम यह देख सकते हैं कि किस देश की राजनीतिक प्रणाली किस क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही है। इससे अन्य देशों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने का मार्ग प्रशस्त होता है, जिससे वे अपनी राजनीतिक समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं।

3. राजनीतिक स्थिरता और विकास में सहायता: तुलनात्मक अध्ययन से देशों को राजनीतिक स्थिरता और विकास के उपाय मिल सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता है, तो वह अन्य देशों के राजनीतिक मॉडल से प्रेरणा लेकर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है।

4. वैश्विक राजनीति की समझ: तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से वैश्विक राजनीति की समझ भी विकसित होती है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक संबंध कैसे बनते हैं और उनका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।

5. राजनीतिक अनुसंधान में मदद: तुलनात्मक अध्ययन शोधकर्ताओं को नई अवधारणाओं और सिद्धांतों के विकास में मदद करता है। यह राजनीतिक अनुसंधान को नए दृष्टिकोण और विचारधाराओं से समृद्ध करता है, जिससे राजनीति विज्ञान के अध्ययन का दायरा बढ़ता है।

निष्कर्ष

तुलनात्मक राजनीति राजनीति विज्ञान का एक महत्वपूर्ण और व्यापक अध्ययन क्षेत्र है, जो विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं की गहन तुलना पर आधारित है। इसका उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्था को समझना, राजनीतिक विकास के साधनों की पहचान करना और वैश्विक राजनीति के संदर्भ में देशों की राजनीतिक संरचनाओं को बेहतर बनाना है। तुलनात्मक अध्ययन के विभिन्न दृष्टिकोण और इसके लाभ राजनीति के अध्ययन को समृद्ध और सार्थक बनाते हैं।

 

प्रश्न 2:- धर्म और धर्मराज्य की अवधारणा क्या है? भारत के प्राचीन राजनीतिक विचारों में धर्मराज्य का क्या महत्व था? धर्मराज्य की अवधारणा को आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में किस प्रकार लागू किया जा सकता है?

उत्तर:- धर्म और धर्मराज्य की अवधारणा

धर्म भारतीय समाज और राजनीति में एक गहन और व्यापक अवधारणा है। धर्म का शाब्दिक अर्थ है “धारण करना” या “सही आचरण”। यह न केवल धार्मिक कर्तव्यों और विधियों को संदर्भित करता है, बल्कि समाज में नैतिकता, न्याय, और सद्गुणों को स्थापित करने का भी एक साधन है। भारतीय परंपरा में धर्म को केवल एक धार्मिक आस्था या पूजा की प्रक्रिया तक सीमित नहीं माना गया है, बल्कि इसे समाज और राज्य के समग्र कल्याण के लिए एक नैतिक और व्यवहारिक मार्गदर्शक के रूप में देखा गया है।

धर्मराज्य की अवधारणा भारतीय राजनीतिक और सामाजिक विचारों में एक विशेष स्थान रखती है। धर्मराज्य का अर्थ है ऐसा राज्य जहां शासक और प्रजा दोनों अपने कर्तव्यों का पालन धर्म के आधार पर करते हैं, यानी नैतिकता, न्याय और सच्चाई का पालन किया जाता है। इस प्रकार का राज्य केवल शक्ति या राजनीतिक श्रेष्ठता पर आधारित नहीं होता, बल्कि वहां नैतिकता और सामाजिक न्याय का पालन अनिवार्य होता है।

धर्मराज्य का सीधा मतलब यह नहीं है कि राज्य धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर काम करेगा, बल्कि इसका अर्थ यह है कि राज्य और समाज का हर कार्य धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित होगा, जिसमें सत्य, अहिंसा, न्याय, और समानता जैसी नैतिक अवधारणाएं प्रमुख हैं। इसे एक आदर्श राज्य व्यवस्था के रूप में देखा गया है, जिसमें राज्य का काम केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखना नहीं, बल्कि समाज में नैतिक और सामाजिक मूल्यों की स्थापना करना होता है।

भारत के प्राचीन राजनीतिक विचारों में धर्मराज्य का महत्व

प्राचीन भारतीय राजनीतिक दर्शन में धर्मराज्य का विशेष महत्व था। हमारे प्राचीन ग्रंथों, जैसे कि महाभारत, रामायण, मनुस्मृति और अर्थशास्त्र में धर्मराज्य की अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया गया है। धर्मराज्य की कल्पना उस समय के समाज में एक आदर्श राज्य के रूप में की गई थी, जहां शासक का प्रमुख कर्तव्य था समाज में धर्म, यानी नैतिकता और न्याय की स्थापना करना। यह व्यवस्था न केवल शासक की नैतिक जिम्मेदारियों पर जोर देती थी, बल्कि समाज के हर व्यक्ति के लिए भी धर्म के पालन का आदेश देती थी।

रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में राजा राम और युधिष्ठिर जैसे शासकों को धर्मराज्य के आदर्श प्रतिनिधियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राजा राम को एक ऐसे शासक के रूप में देखा जाता है जो अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर प्रजा के हितों के लिए कार्य करता है। उनकी शासन व्यवस्था में सत्य, न्याय और कर्तव्य का पालन सबसे महत्वपूर्ण था। इसी प्रकार महाभारत में युधिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता है, जो न्याय और सत्य के प्रतीक थे।

मनुस्मृति और अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी धर्मराज्य की व्याख्या की गई है। मनुस्मृति में वर्णित है कि राज्य का प्रमुख उद्देश्य समाज में नैतिकता की स्थापना करना है, और इसके लिए शासक को धर्म के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन के चार प्रमुख उद्देश्यों के रूप में बताया गया है, जिनमें धर्म को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

अर्थशास्त्र में, जो कि कौटिल्य द्वारा रचित है, धर्मराज्य की व्यावहारिकता पर जोर दिया गया है। कौटिल्य का मानना था कि एक शासक को धर्म, अर्थ और शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए, ताकि राज्य में नैतिकता के साथ-साथ आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता भी बनी रहे। उनका यह भी मानना था कि शासक को अपनी प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि मानते हुए धर्म का पालन करना चाहिए, ताकि राज्य में एक आदर्श और न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित हो सके।

धर्मराज्य की अवधारणा को आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में लागू करना

धर्मराज्य की अवधारणा, जो कि प्राचीन भारतीय राजनीतिक दर्शन में एक आदर्श शासन व्यवस्था के रूप में मानी जाती थी, को आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में किस प्रकार लागू किया जा सकता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। वर्तमान समय में, जहां लोकतंत्र और संविधानिक कानूनों पर आधारित शासन प्रणाली है, वहां धर्मराज्य की अवधारणा को केवल धार्मिक रूप से लागू करना संभव नहीं है। परंतु, इसके नैतिक और सामाजिक सिद्धांतों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में शामिल किया जा सकता है।

1. नैतिकता और न्याय का पालन

धर्मराज्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि राज्य में नैतिकता और न्याय का पालन किया जाए। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह जरूरी है कि सरकार और शासक नैतिकता और न्याय को प्राथमिकता दें। राजनीतिक दलों, नेताओं और प्रशासकों को अपने निर्णय और नीतियों में नैतिकता और न्याय का पालन करना चाहिए, ताकि समाज में समानता और सामाजिक न्याय स्थापित हो सके।

2. कल्याणकारी राज्य की स्थापना

धर्मराज्य का एक प्रमुख उद्देश्य समाज के सभी वर्गों का कल्याण करना था। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी यह आवश्यक है कि राज्य कल्याणकारी नीतियों को प्राथमिकता दे। गरीबी उन्मूलन, शिक्षा का प्रसार, स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता, और सामाजिक सुरक्षा जैसी नीतियों को प्राथमिकता देकर राज्य धर्मराज्य की अवधारणा को साकार कर सकता है।

3. सभी धर्मों का सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता

धर्मराज्य का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत सभी धर्मों का सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता थी। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह महत्वपूर्ण है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करे और किसी विशेष धर्म के प्रति झुकाव न रखे। भारत का संविधान भी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है, जो धर्मराज्य के विचार से मेल खाता है। धर्मनिरपेक्षता के आधार पर राज्य सभी धर्मों को समान सम्मान देता है और नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है।

4. कर्तव्यों पर जोर

धर्मराज्य की अवधारणा में अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी महत्व था। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिक अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों के कर्तव्यों पर भी जोर दिया जाना चाहिए। संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक न केवल अपने अधिकारों का उपयोग करें, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी पालन करें। इस प्रकार, धर्मराज्य की अवधारणा को लागू करने का एक तरीका यह है कि समाज में कर्तव्यों और नैतिक जिम्मेदारियों का पालन सुनिश्चित किया जाए।

5. सत्य और अहिंसा का सिद्धांत

धर्मराज्य में सत्य और अहिंसा को प्रमुख नैतिक मूल्य माना जाता था। आज के लोकतंत्र में भी यह आवश्यक है कि सरकारें और राजनेता सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करें। राजनीति में पारदर्शिता, ईमानदारी, और अहिंसात्मक व्यवहार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि समाज में शांति और सौहार्द बना रहे। महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को भी इसी प्रकार आधुनिक राजनीति में एक आदर्श के रूप में देखा जा सकता है।

6. न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता

धर्मराज्य में न्यायपालिका का एक महत्वपूर्ण स्थान था, जहां न्याय सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली का होना आवश्यक था। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी यह आवश्यक है कि न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष हो। किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप या पक्षपात न्याय की अवधारणा को कमजोर करता है। धर्मराज्य की अवधारणा को लागू करने के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना अनिवार्य है।

7. संविधानिक मूल्यों का पालन

आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में संविधान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। धर्मराज्य में भी राज्य और शासक दोनों को धर्म यानी न्याय, नैतिकता और सत्य का पालन करना होता था। इसी प्रकार, लोकतंत्र में संविधानिक मूल्यों और अधिकारों का पालन करना राज्य और नागरिकों दोनों के लिए आवश्यक है। राज्य का कर्तव्य है कि वह संविधानिक मूल्यों को बनाए रखे और नागरिकों को उनके अधिकार और स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।

निष्कर्ष

धर्म और धर्मराज्य की अवधारणा भारतीय प्राचीन राजनीतिक दर्शन में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती थी। यह केवल धार्मिक आस्थाओं पर आधारित नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य नैतिकता, न्याय, और समाज कल्याण के सिद्धांतों को स्थापित करना था। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्मराज्य की अवधारणा को पूर्ण रूप से लागू करना संभव नहीं है, क्योंकि यह एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था है। लेकिन धर्मराज्य के नैतिक सिद्धांत, जैसे कि न्याय, सत्य, समानता, और सामाजिक कल्याण, आज भी महत्वपूर्ण हैं और इन्हें आधुनिक लोकतंत्र में लागू किया जा सकता है। धर्मराज्य की अवधारणा न केवल एक आदर्श शासन व्यवस्था थी, बल्कि यह समाज में नैतिकता और न्याय की स्थापना के लिए भी एक प्रेरणादायक विचार है, जिसे आज की राजनीति और शासन प्रणाली में भी महत्व दिया जाना चाहिए।

 

प्रश्न 3:- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूनाइटेड किंगडम (UK) की राजनीतिक संरचनाओं में प्रमुख अंतरों की चर्चा कीजिए। दोनों देशों की शासन प्रणालियों, सत्ता के विभाजन, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूनाइटेड किंगडम (UK) की राजनीतिक संरचनाएँ और शासन प्रणालियाँ भिन्न हैं। दोनों देशों के संविधान, सत्ता का विभाजन, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ अपने-अपने संदर्भ में विशिष्ट हैं। इन दोनों देशों की राजनीतिक प्रणालियों की तुलनात्मक समीक्षा से यह समझना आसान हो जाता है कि कैसे उनके लोकतांत्रिक ढांचे अलग-अलग होते हुए भी कारगर ढंग से कार्य करते हैं।

1. संविधान:

अमेरिका (USA):

अमेरिका का संविधान लिखित और सर्वोच्च है। यह 1787 में तैयार किया गया था और यह एक सुस्पष्ट दस्तावेज है जिसमें सरकार की संरचना, नागरिकों के अधिकार, और शक्ति विभाजन के स्पष्ट नियम हैं। अमेरिका में संविधान को अत्यधिक सम्मान दिया जाता है और यह देश की राजनीतिक और न्यायिक प्रक्रियाओं की बुनियाद है। अमेरिकी संविधान में किसी भी संशोधन को लागू करना कठिन होता है, जिसके लिए व्यापक समर्थन की आवश्यकता होती है।

यूनाइटेड किंगडम (UK):

यूनाइटेड किंगडम का संविधान अलिखित है। इसका मतलब है कि यूके में संविधान किसी एक दस्तावेज़ में नहीं है, बल्कि यह संसदीय कानूनों, परंपराओं, न्यायिक निर्णयों, और परंपरागत अधिकारों के माध्यम से संचालित होता है। यूके का संविधान लचीला है और इसे संसद द्वारा बिना किसी जटिल प्रक्रिया के बदला जा सकता है। यहाँ का संविधान सदियों पुरानी परंपराओं और कानूनों का सम्मिश्रण है।

2. सत्ता का विभाजन:

अमेरिका (USA):

अमेरिका में सत्ता का स्पष्ट और सख्त विभाजन (Separation of Powers) है। इसमें तीन मुख्य शाखाएँ होती हैं: कार्यपालिका (Executive), विधायिका (Legislature), और न्यायपालिका (Judiciary)। ये तीनों शाखाएँ स्वतंत्र होती हैं और एक-दूसरे की शक्ति को नियंत्रित और संतुलित करती हैं। यह प्रणाली मॉन्टेस्क्यू के सिद्धांतों पर आधारित है, जिससे तानाशाही प्रवृत्तियों को रोकने के लिए शक्तियों का विभाजन किया गया है।

·       कार्यपालिका: राष्ट्रपति सरकार का मुखिया और सेना का सर्वोच्च कमांडर होता है। राष्ट्रपति के पास कानूनों को वीटो करने की शक्ति भी होती है।

·       विधायिका: अमेरिकी कांग्रेस दो सदनों में बंटी होती है – सीनेट और प्रतिनिधि सभा। दोनों सदन कानून निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

·       न्यायपालिका: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट अंतिम न्यायिक प्राधिकरण है, जो कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करता है।

यूनाइटेड किंगडम (UK):

यूके में सत्ता का विभाजन उतना स्पष्ट नहीं है जितना कि अमेरिका में। यहाँ संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) है, जहाँ कार्यपालिका और विधायिका आपस में जुड़ी होती हैं। प्रधानमंत्री और उनके मंत्री संसदीय सदन से ही चुने जाते हैं, जिससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच घनिष्ठ संबंध बनता है।

·       कार्यपालिका: प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है, जिसे संसद के बहुमत दल से चुना जाता है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति महारानी द्वारा की जाती है, लेकिन उनका चयन पार्लियामेंट के सदस्यों पर निर्भर करता है।

·       विधायिका: संसद में दो सदन होते हैं – हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स। हाउस ऑफ कॉमन्स कानून निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाता है और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की भूमिका सीमित होती जा रही है।

·       न्यायपालिका: यूके की न्यायपालिका संसद के अधीन नहीं होती है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से संसदीय संप्रभुता का सिद्धांत यहां प्रभावी रहा है, जिससे न्यायपालिका की भूमिका सीमित हो जाती है। हालाँकि, हाल के वर्षों में न्यायिक समीक्षा की भूमिका बढ़ी है।

3. प्रमुख लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ:

अमेरिका (USA):

अमेरिका में प्रतिनिधिक लोकतंत्र (Representative Democracy) है, जहाँ नागरिक विभिन्न स्तरों पर सीधे चुनावों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव भी नागरिकों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से, इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से किया जाता है। अमेरिका में प्रत्येक शाखा और स्तर पर जाँच और संतुलन (Checks and Balances) का सिद्धांत लागू है, जिससे किसी भी संस्था को अत्यधिक शक्ति हासिल नहीं हो पाती।

·       राष्ट्रपति चुनाव: अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हर चार साल में होते हैं, और यह चुनाव आम तौर पर जनता द्वारा इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से होता है।

·       कांग्रेस चुनाव: सीनेट के सदस्य हर छह साल के लिए चुने जाते हैं, जबकि प्रतिनिधि सभा के सदस्य हर दो साल में चुने जाते हैं।

·       न्यायिक समीक्षा: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति है, जिसके तहत वह यह तय कर सकता है कि कोई कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।

यूनाइटेड किंगडम (UK):

यूके में संसदीय लोकतंत्र (Parliamentary Democracy) है, जहाँ संसद ही सर्वोच्च होती है और सरकार का गठन संसद के बहुमत दल के द्वारा होता है। यहाँ संप्रभु संसद (Sovereign Parliament) की अवधारणा है, जिसका मतलब है कि संसद का निर्णय अंतिम होता है और किसी अन्य संस्था द्वारा इसे चुनौती नहीं दी जा सकती।

·       प्रधानमंत्री का चुनाव: प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है, बल्कि हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों के बहुमत दल से प्रधानमंत्री चुना जाता है।

·       संसदीय चुनाव: हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य हर पाँच साल में चुने जाते हैं, जबकि हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य नियुक्त होते हैं।

·       मॉनार्की की भूमिका: यूके में महारानी या राजा केवल एक प्रतीकात्मक मुखिया होता है, और उनके पास वास्तविक शक्तियाँ नहीं होती हैं। प्रधानमंत्री का चयन और कानूनों पर हस्ताक्षर महारानी के द्वारा केवल औपचारिकता होती है।

4. सत्ता का संतुलन और नियंत्रण:

अमेरिका (USA):

अमेरिका में सत्ता का संतुलन सुनिश्चित करने के लिए जाँच और संतुलन (Checks and Balances) का सिद्धांत है। इसका मतलब है कि प्रत्येक शाखा – कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका – एक-दूसरे की शक्तियों पर नजर रखती हैं और उनके कामकाज को संतुलित करती हैं। जैसे कि कांग्रेस कानून बना सकती है, लेकिन राष्ट्रपति उस कानून को वीटो कर सकते हैं। इसी तरह, न्यायपालिका यह तय कर सकती है कि कोई कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।

यूनाइटेड किंगडम (UK):

यूके में जाँच और संतुलन का कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं है क्योंकि यहाँ संसदीय संप्रभुता (Parliamentary Sovereignty) है। इसका मतलब है कि संसद सर्वोच्च संस्था है और उसके निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती। यहाँ सत्ता का नियंत्रण आंतरिक रूप से संसद के भीतर होता है, जहाँ विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच बहसें और चर्चाएँ सत्ता संतुलन का कार्य करती हैं। हालाँकि, न्यायपालिका की भूमिका बढ़ती जा रही है, खासकर मानवाधिकार और संवैधानिक मुद्दों पर।

5. राजनीतिक पार्टियों की भूमिका:

अमेरिका (USA):

अमेरिका में दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ हैं: डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी। इन दोनों दलों के बीच शक्ति संतुलन और वैचारिक अंतर के आधार पर राजनीतिक व्यवस्था चलती है। अन्य छोटे दल भी हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित है। अमेरिका की राजनीतिक प्रणाली फेडरल (संघीय) है, जिसमें राज्यों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

यूनाइटेड किंगडम (UK):

यूके में भी प्रमुख रूप से दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं: कंज़र्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी। इसके अलावा, लिबरल डेमोक्रेट्स और स्कॉटिश नेशनल पार्टी (SNP) जैसी छोटी पार्टियों का भी प्रभाव है, खासकर स्कॉटलैंड और अन्य क्षेत्रों में। यूके में यूनिटरी (एकात्मक) प्रणाली है, जिसमें केंद्र सरकार का अधिकार प्रमुख होता है, लेकिन हाल के वर्षों में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया से स्कॉटलैंड, वेल्स, और उत्तरी आयरलैंड को अधिक स्वायत्तता मिली है।

निष्कर्ष:

अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम की राजनीतिक प्रणालियाँ कई मामलों में भिन्न हैं। अमेरिका का संविधान लिखित और कठोर है, जबकि यूके का संविधान अलिखित और लचीला है। अमेरिका में सत्ता का स्पष्ट विभाजन है और वहाँ जाँच और संतुलन की प्रणाली है, जबकि यूके में सत्ता का विभाजन कम स्पष्ट है और संसदीय संप्रभुता की अवधारणा प्रमुख है। दोनों देशों की राजनीतिक प्रक्रियाएँ और सत्ता संरचना भिन्न होते हुए भी, उनके लोकतंत्र में जनता की भागीदारी और शासन की कार्यक्षमता सुनिश्चित करती हैं।

 

प्रश्न 4:- स्विट्ज़रलैंड की राजनीति की विशिष्टताएँ क्या हैं? उसके संघीय ढांचे, प्रत्यक्ष लोकतंत्र और शासन की प्रक्रिया का विश्लेषण करें। स्विट्ज़रलैंड के राजनीतिक ढांचे को अन्य देशों जैसे यूएसए और यूके से किस प्रकार अलग माना जा सकता है?

उत्तर:- स्विट्ज़रलैंड की राजनीति की विशिष्टताएँ इसे वैश्विक स्तर पर एक अनूठा राजनीतिक मॉडल बनाती हैं। यह देश अपनी संघीय व्यवस्था, प्रत्यक्ष लोकतंत्र, और शक्तिशाली स्थानीय स्वशासन प्रणाली के लिए जाना जाता है। स्विट्ज़रलैंड की राजनीति, उसकी संरचना और शासन की प्रक्रिया अन्य लोकतांत्रिक देशों, जैसे कि यूके और यूएसए, से भिन्न है। इस उत्तर में, हम स्विट्ज़रलैंड की राजनीतिक विशेषताओं, उसके संघीय ढांचे, प्रत्यक्ष लोकतंत्र और शासन प्रक्रिया का विश्लेषण करेंगे और इसे अन्य देशों के राजनीतिक ढांचे से तुलना करेंगे।

1. स्विट्ज़रलैंड की राजनीतिक व्यवस्था की विशिष्टताएँ:

(a) संघीय ढांचा (Federal System):

स्विट्ज़रलैंड एक संघीय गणराज्य है, जो 26 “कैंटनों” (राज्यों) में विभाजित है। प्रत्येक कैंटन की अपनी संविधान, कानून और कार्यपालिका है, और उनके पास काफी स्वतंत्रता है। कैंटनों को व्यापक स्वायत्तता प्रदान की गई है, विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य, और कराधान के क्षेत्रों में।

कैंटनों के इस स्वायत्त ढांचे के तहत, स्विट्ज़रलैंड की संघीय सरकार के पास केवल कुछ सीमित अधिकार होते हैं, जबकि अधिकांश निर्णय स्थानीय स्तर पर लिए जाते हैं। यह प्रणाली स्विट्ज़रलैंड की बहुभाषीय, बहुसांस्कृतिक संरचना का सम्मान करती है और विभिन्न समुदायों को राजनीतिक भागीदारी का अधिकार देती है। संघीय ढांचे के तहत, केंद्रीय सरकार में भी कैंटनों का प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाता है।

(b) प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy):

स्विट्ज़रलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रणाली विशिष्ट है और इसे दुनिया भर में अध्ययन का विषय बनाया गया है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र के तहत, नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे भाग लेने का अधिकार होता है। स्विट्ज़रलैंड में नागरिक नियमित रूप से जनमत संग्रह (Referendums) के माध्यम से नीतिगत निर्णयों में योगदान देते हैं।

             स्विट्ज़रलैंड की प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली के तीन प्रमुख तंत्र हैं:

1. अनिवार्य जनमत संग्रह (Mandatory Referendum): कुछ संवैधानिक संशोधनों या अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के लिए जनमत संग्रह अनिवार्य होता है। यह सुनिश्चित करता है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर केवल संसद नहीं बल्कि जनता का भी मत हो।

2. वैकल्पिक जनमत संग्रह (Optional Referendum): यदि 50,000 नागरिक किसी कानून के खिलाफ हस्ताक्षर कर देते हैं, तो उस कानून पर जनमत संग्रह कराया जा सकता है।

3. नागरिक पहल (Citizens’ Initiative): यदि 100,000 नागरिक किसी नए कानून या संवैधानिक संशोधन के लिए हस्ताक्षर करते हैं, तो उस प्रस्ताव पर भी जनमत संग्रह कराया जाता है।

(c) संसदीय ढांचा और कार्यपालिका:

स्विट्ज़रलैंड की संसद द्विसदनीय है, जिसमें एक संघीय सभा (Federal Assembly) होती है। यह दो कक्षों में विभाजित है:

1. राष्ट्रीय परिषद (National Council): यह 200 सदस्यों का प्रतिनिधित्व करती है, जो जनसंख्या के अनुपात में चुने जाते हैं।

2. काउंसिल ऑफ स्टेट्स: यह 46 सदस्यों का कक्ष है, जिसमें प्रत्येक कैंटन से 2 और आधे कैंटन से 1 सदस्य चुना जाता है।

स्विट्ज़रलैंड में कार्यपालिका को “फेडरल काउंसिल” (Federal Council) कहा जाता है, जिसमें 7 सदस्य होते हैं। ये सदस्य संघीय सभा द्वारा चुने जाते हैं और उनमें से एक को प्रति वर्ष राष्ट्रपति चुना जाता है, लेकिन राष्ट्रपति की भूमिका ज्यादातर सांकेतिक होती है। संघीय काउंसिल में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व होता है, जो इसे एक गठबंधन सरकार की तरह बनाता है।

2. स्विट्ज़रलैंड की राजनीतिक व्यवस्था की अन्य देशों से तुलना:

स्विट्ज़रलैंड की राजनीति और शासन व्यवस्था कई मायनों में अन्य प्रमुख लोकतांत्रिक देशों, जैसे कि यूएसए और यूके, से अलग है। नीचे इस तुलना को विस्तार से समझा गया है:

(a) स्विट्ज़रलैंड बनाम यूएसए:

1. संघीय ढांचा:

स्विट्ज़रलैंड और अमेरिका दोनों संघीय व्यवस्थाएँ हैं, लेकिन स्विट्ज़रलैंड का संघीय ढांचा अधिक विकेंद्रीकृत है। स्विट्ज़रलैंड में कैंटनों के पास व्यापक स्वायत्तता है और वे कई क्षेत्रों में स्वतंत्र निर्णय लेते हैं, जबकि अमेरिका में राज्यों के पास भी महत्वपूर्ण अधिकार हैं, परंतु संघीय सरकार का प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक होता है।

2. प्रत्यक्ष लोकतंत्र:

अमेरिका में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रणाली स्विट्ज़रलैंड की तरह विकसित नहीं है। हालांकि कुछ राज्यों में जनमत संग्रह होते हैं, परंतु राष्ट्रीय स्तर पर स्विट्ज़रलैंड जैसी नागरिक पहल और जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं है।

3. कार्यपालिका:

अमेरिका में राष्ट्रपति शक्तिशाली होता है और पूरी कार्यपालिका को नियंत्रित करता है, जबकि स्विट्ज़रलैंड में फेडरल काउंसिल एक सामूहिक नेतृत्व वाली प्रणाली है, जिसमें एक सदस्य राष्ट्रपति के रूप में सांकेतिक भूमिका निभाता है। अमेरिका में सत्ता का केंद्रीकरण होता है जबकि स्विट्ज़रलैंड में सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है।

(b) स्विट्ज़रलैंड बनाम यूके:

1. संवैधानिक संरचना:

यूके एक संवैधानिक राजतंत्र है, जहाँ प्रधानमंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होता है, जबकि स्विट्ज़रलैंड में एक गणतंत्रात्मक प्रणाली है जहाँ फेडरल काउंसिल में सभी सदस्य समान अधिकार रखते हैं और किसी एक नेता को केंद्रीय भूमिका नहीं दी जाती।

2. प्रत्यक्ष लोकतंत्र:

यूके में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की कोई व्यापक व्यवस्था नहीं है, जबकि स्विट्ज़रलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र एक नियमित प्रक्रिया है, जिसमें नागरिक कानूनों और नीतियों पर सीधे मतदान करते हैं। यूके में नागरिकों की भागीदारी चुनावों तक सीमित होती है, जबकि स्विट्ज़रलैंड में नागरिक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों में भी भाग लेते हैं।

3. सत्ता का संतुलन:

यूके में केंद्रीय सरकार को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं, जबकि स्विट्ज़रलैंड में कैंटनों के पास अधिक अधिकार होते हैं। यूके में क्षेत्रीय सरकारें (जैसे स्कॉटलैंड, वेल्स) कुछ मुद्दों पर स्वायत्त होती हैं, परंतु स्विट्ज़रलैंड की तुलना में यह स्वायत्तता सीमित होती है।

3. स्विट्ज़रलैंड की शासन प्रक्रिया:

(a) स्थानीय सरकारों की भूमिका:

स्विट्ज़रलैंड में स्थानीय सरकारों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। स्थानीय स्तर पर भी नागरिकों की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाता है। यहां तक कि छोटे-छोटे मुद्दों पर भी नगरपालिकाओं में नागरिकों की राय ली जाती है। यह स्थानीय शासन की प्रक्रिया स्विट्ज़रलैंड को एक मजबूत और सहभागी लोकतंत्र बनाती है।

(b) गठबंधन सरकार:

स्विट्ज़रलैंड की संघीय काउंसिल एक गठबंधन सरकार के रूप में कार्य करती है, जहाँ विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होते हैं। यह सरकार सभी दलों को नीतिगत फैसलों में शामिल करती है, जिससे राजनीतिक संतुलन और स्थिरता बनी रहती है।

निष्कर्ष:

स्विट्ज़रलैंड की राजनीति की विशिष्टताएँ इसे एक अद्वितीय लोकतंत्र बनाती हैं। इसका संघीय ढांचा, जिसमें कैंटनों को व्यापक स्वायत्तता प्राप्त है, प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रणाली, और विकेंद्रीकृत सत्ता संरचना इसे यूएसए और यूके से भिन्न बनाती है। इसके अलावा, नागरिकों की सक्रिय भागीदारी और सत्ता का विकेंद्रीकरण इसे एक मजबूत और सहभागी लोकतंत्र के रूप में स्थापित करता है।

स्विट्ज़रलैंड का राजनीतिक मॉडल कई देशों के लिए एक आदर्श हो सकता है, विशेष रूप से उन देशों के लिए जो विकेंद्रीकृत शासन और नागरिकों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। इस व्यवस्था में न केवल स्थानीय मुद्दों का समाधान तेजी से होता है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी स्थिरता और संतुलन बना रहता है।

 

प्रश्न 5:- चीन की राजनीतिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। चीन के शासन के अधिनायकवादी स्वरूप और उसकी शासन प्रणाली को तुलनात्मक दृष्टिकोण से यूएसए और यूके की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं से तुलना करते हुए विश्लेषण करें।

उत्तर:- परिचय

चीन की राजनीतिक व्यवस्था एक एकदलीय अधिनायकवादी प्रणाली पर आधारित है, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी का वर्चस्व है। चीन की यह राजनीतिक संरचना उसकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैचारिक पृष्ठभूमि से प्रभावित है, जो इसे दुनिया की अन्य प्रमुख लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं, जैसे कि अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (यूके) से भिन्न बनाती है। अमेरिका और यूके में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है, जहाँ बहुदलीय प्रणाली और स्वतंत्र चुनावों के माध्यम से सरकार का गठन किया जाता है। इन देशों के साथ चीन की अधिनायकवादी व्यवस्था की तुलना करते हुए इसके शासन की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।

चीन की राजनीतिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ

चीन की राजनीतिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं में कम्युनिस्ट पार्टी का पूर्ण नियंत्रण, अधिनायकवादी शासन, सैन्य शक्ति का समर्थन, और एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली शामिल हैं। आइए इन पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें:

1. एकदलीय शासन प्रणाली

चीन की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी एकदलीय शासन प्रणाली है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) यहाँ एकमात्र सत्ताधारी पार्टी है और इसी के माध्यम से सरकार का गठन किया जाता है। अन्य राजनीतिक दल नाममात्र के होते हैं और वे सीपीसी के सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन उनका स्वतंत्र सत्ता में आने का कोई अधिकार नहीं होता।

इसके विपरीत, अमेरिका और यूके में बहुदलीय व्यवस्था है। अमेरिका में मुख्यतः दो प्रमुख दल – रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी – होते हैं, जबकि यूके में कंजरवेटिव पार्टी, लेबर पार्टी और अन्य छोटे दल शामिल हैं। चुनावों के माध्यम से लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और सरकार का गठन होता है।

2. अधिनायकवादी शासन

चीन में सरकार अधिनायकवादी स्वरूप की है, जिसका अर्थ है कि सत्ता पर एकमात्र पार्टी और उसके नेता का पूर्ण नियंत्रण होता है। अधिनायकवाद का यह स्वरूप राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है। मीडिया, इंटरनेट और अन्य संसाधनों पर कड़ा नियंत्रण रखा जाता है, जिससे नागरिक स्वतंत्र रूप से विचार व्यक्त नहीं कर सकते। चीन में “जनतंत्रात्मक केंद्रीयवाद” की अवधारणा पर आधारित शासन होता है, जिसमें निर्णय लेने की शक्ति केंद्रीय नेताओं के पास होती है और जनता की भूमिका सीमित होती है। यह शासन प्रणाली शासन की आलोचना करने या उसकी नीतियों के विरुद्ध खड़े होने की अनुमति नहीं देती है।

इसके विपरीत, अमेरिका और यूके लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं हैं, जहाँ नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। इन देशों में सत्ता तीन शाखाओं – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – में विभाजित होती है, ताकि एक शाखा दूसरी पर अधिक नियंत्रण न कर सके। यह शक्ति का संतुलन सुनिश्चित करता है और जनता के अधिकारों की रक्षा करता है।

3. सत्ता का केंद्रीकरण

चीन की राजनीतिक प्रणाली में सत्ता का केंद्रीकरण होता है। सभी प्रमुख निर्णय और नीतियां कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। यह प्रणाली कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और पार्टी की केंद्रीय समिति के इर्द-गिर्द घूमती है। देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही सीपीसी के सर्वोच्च नेता होते हैं, जो पार्टी के माध्यम से देश की नीतियों को निर्धारित करते हैं।

इसके विपरीत, अमेरिका और यूके में सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है। अमेरिका में, संघीय प्रणाली के तहत सत्ता का विभाजन संघीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच किया जाता है। इसी प्रकार, यूके में भी स्थानीय सरकारों और पार्लियामेंट के बीच सत्ता का बंटवारा होता है, जिससे निर्णय लेने में स्थानीय सरकारों को स्वतंत्रता मिलती है। लोकतांत्रिक शासन में यह विकेंद्रीकरण नागरिकों की भागीदारी को सुनिश्चित करता है और उन्हें राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल होने का अवसर प्रदान करता है।

4. सैन्य शक्ति का महत्व

चीन की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता सैन्य शक्ति का राजनीतिक प्रक्रिया में महत्व है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को नियंत्रित करती है और सेना की निष्ठा सरकार के प्रति होती है। सेना का प्रयोग आंतरिक शांति बनाए रखने और पार्टी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है। सैन्य ताकत का उपयोग न केवल बाहरी सुरक्षा के लिए बल्कि आंतरिक असंतोष को दबाने के लिए भी किया जाता है।

अमेरिका और यूके में, सैन्य ताकत का नियंत्रण निर्वाचित सरकारों के पास होता है, और सेना का प्रयोग केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किया जाता है। सेना राजनीतिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करती और लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसका प्रयोग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से किया जाता है।

5. न्यायपालिका की स्वतंत्रता की कमी

चीन में न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होती। यहाँ न्यायपालिका का नियंत्रण भी कम्युनिस्ट पार्टी के पास होता है, और अदालतें पार्टी की विचारधारा और निर्देशों के अनुसार काम करती हैं। न्यायपालिका का प्रयोग अक्सर राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जाता है और कानूनी प्रक्रियाओं को सरकार के हित में नियंत्रित किया जाता है।

इसके विपरीत, अमेरिका और यूके में न्यायपालिका स्वतंत्र होती है और कार्यपालिका और विधायिका से अलग काम करती है। न्यायपालिका का मुख्य काम कानून की व्याख्या करना और न्याय प्रदान करना है, और यह स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी नेता या पार्टी कानून से ऊपर नहीं है। न्यायिक स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक प्रमुख आधार है, जो नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करता है।

6. मीडिया और इंटरनेट पर नियंत्रण

चीन में मीडिया और इंटरनेट पर सरकार का सख्त नियंत्रण होता है। चीन की सरकार सेंसरशिप लागू करती है और इंटरनेट के उपयोग को सीमित करती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और विदेशी वेबसाइटें चीन में प्रतिबंधित हैं। सरकार यह सुनिश्चित करती है कि केवल वही सूचनाएँ जनता तक पहुँचें जो पार्टी के हित में हों। मीडिया का प्रयोग सरकार की नीतियों के प्रचार-प्रसार के लिए किया जाता है।

अमेरिका और यूके में मीडिया और इंटरनेट की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक प्रमुख हिस्सा है। यहाँ मीडिया सरकार की नीतियों की आलोचना कर सकता है और नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। स्वतंत्र मीडिया और इंटरनेट नागरिकों को सही और विविध जानकारी तक पहुँचने का अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे वे स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं।

चीन और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं (अमेरिका और यूके) के बीच तुलनात्मक दृष्टिकोण

चीन की अधिनायकवादी व्यवस्था और अमेरिका व यूके की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।

1. राजनीतिक भागीदारी और स्वतंत्रता

चीन में नागरिकों की राजनीतिक भागीदारी सीमित है। चुनाव केवल नाममात्र होते हैं और असली सत्ता कम्युनिस्ट पार्टी के पास केंद्रित होती है। अमेरिका और यूके में, नागरिक चुनावों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और राजनीतिक निर्णय लेने में भागीदार होते हैं।

2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की मूलभूत विशेषता है, जो अमेरिका और यूके में नागरिकों को प्राप्त है। इसके विपरीत, चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए हैं। सरकार आलोचना को दबाती है और असहमति को स्वीकार नहीं करती।

3. न्यायिक स्वतंत्रता

अमेरिका और यूके में न्यायिक स्वतंत्रता लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जहाँ न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से कार्य करती है। चीन में, न्यायपालिका सरकार के नियंत्रण में होती है और अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

4. मीडिया की भूमिका

स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अमेरिका और यूके में देखा जाता है। मीडिया सरकार की नीतियों की आलोचना करने और जनता को सही जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चीन में, मीडिया और इंटरनेट पर सरकार का कठोर नियंत्रण होता है, जिससे स्वतंत्र संवाद का अभाव होता है।

निष्कर्ष

चीन की राजनीतिक व्यवस्था अधिनायकवादी है, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी का पूर्ण नियंत्रण है और नागरिक स्वतंत्रता सीमित है। इसके विपरीत, अमेरिका और यूके की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में नागरिकों को अभिव्यक्ति, न्याय और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार प्राप्त है। चीन और लोकतांत्रिक देशों के बीच इस अंतर का विश्लेषण यह दर्शाता है कि किस प्रकार राजनीतिक संरचना का स्वरूप देश के नागरिकों के जीवन और उनके अधिकारों को प्रभावित करता है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है और इसकी प्रकृति क्या होती है?

उत्तर:- तुलनात्मक राजनीति का अर्थ विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों, राजनीतिक संस्थाओं, और प्रक्रियाओं का अध्ययन और उनकी तुलना करना है। यह राजनीति विज्ञान की एक शाखा है, जिसका उद्देश्य यह समझना होता है कि विभिन्न देशों में राजनीतिक व्यवस्था किस प्रकार काम करती है और उनमें क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं। तुलनात्मक राजनीति के तहत लोकतांत्रिक और अधिनायकवादी सरकारों, संघीय और एकात्मक प्रणालियों, और विभिन्न देशों की चुनावी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति बहुआयामी होती है, क्योंकि यह केवल राजनीतिक संस्थानों और प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें संस्कृति, समाज, और अर्थव्यवस्था जैसे अन्य कारक भी शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत राजनीतिक संस्थानों जैसे कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका की तुलना की जाती है, साथ ही नागरिकों के राजनीतिक व्यवहार, विचारधाराओं, और राजनीतिक संस्कृति का भी विश्लेषण होता है।

तुलनात्मक राजनीति का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्थाओं की संरचना और कार्यप्रणाली को समझना, विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों के बीच समानताओं और भिन्नताओं की पहचान करना, और इनसे प्राप्त ज्ञान का प्रयोग राजनीतिक समस्याओं का समाधान खोजने में करना होता है।

 

प्रश्न 2:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्यों और महत्त्व पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:- तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, संस्थाओं, प्रक्रियाओं और नीतियों की तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझना होता है कि विभिन्न देशों में राजनीति किस प्रकार कार्य करती है, और किन कारकों के आधार पर वे एक-दूसरे से भिन्न या समान हैं। तुलनात्मक अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की विविधता को समझना और उनके कामकाज का विश्लेषण करना है। यह अध्ययन विभिन्न राजनीतिक मॉडल्स की ताकतों और कमजोरियों को उजागर करने में मदद करता है, जिससे यह समझा जा सके कि कौन-सी प्रणाली अधिक प्रभावी है।

तुलनात्मक अध्ययन का महत्त्व इस दृष्टि से भी है कि यह राजनीतिक विज्ञान में एक गहरी समझ विकसित करता है। यह अध्ययन विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, सरकारों के प्रकार, नीतियों और चुनावी प्रक्रियाओं की गहन विवेचना करता है, जिससे छात्र और शोधकर्ता अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रति जागरूक होते हैं। इसके माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि कुछ देश क्यों अधिक स्थिर और लोकतांत्रिक हैं, जबकि अन्य देशों में तानाशाही या अस्थिरता क्यों बनी रहती है। इस प्रकार, तुलनात्मक अध्ययन न केवल अकादमिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यावहारिक नीति निर्माण के लिए भी आवश्यक है।

 

प्रश्न 3:- तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के प्रमुख दृष्टिकोण (Approaches) कौन-कौन से हैं?

उत्तर:- तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों (Approaches) के माध्यम से किया जाता है, जो हमें विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों और संस्थानों की तुलना करने में सहायता प्रदान करते हैं। ये दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

1. संस्थागत दृष्टिकोण (Institutional Approach): यह दृष्टिकोण सरकार की संस्थाओं, जैसे विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका का अध्ययन करता है। इस दृष्टिकोण के अंतर्गत यह देखा जाता है कि ये संस्थाएँ किस प्रकार काम करती हैं और उनका जनता पर क्या प्रभाव होता है। पारंपरिक रूप से इस दृष्टिकोण का अधिक उपयोग किया गया है।

2. सांस्कृतिक दृष्टिकोण (Cultural Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक संस्कृति, मूल्यों और परंपराओं पर केंद्रित होता है। इसके माध्यम से यह समझने की कोशिश की जाती है कि कैसे सामाजिक और सांस्कृतिक कारक राजनीति को प्रभावित करते हैं।

3. व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Behavioral Approach): इस दृष्टिकोण में राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल लोगों के व्यवहार, उनकी मानसिकता, और उनके निर्णयों का अध्ययन किया जाता है। इसके माध्यम से राजनीतिक संगठनों, पार्टियों, और नेताओं के कार्यकलापों का विश्लेषण किया जाता है।

4. सुधारवादी दृष्टिकोण (Developmental Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक विकास, आर्थिक वृद्धि, और समाज में परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करता है, विशेष रूप से विकासशील देशों के संदर्भ में।

5. संरचनात्मक दृष्टिकोण (Structural Approach): यह दृष्टिकोण राजनीतिक संरचनाओं, जैसे राज्य, राजनीतिक दल और ब्यूरोक्रेसी की भूमिका का विश्लेषण करता है।

इन विभिन्न दृष्टिकोणों के माध्यम से तुलनात्मक राजनीति का समग्र अध्ययन संभव होता है, जिससे राजनीतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं की गहन समझ प्राप्त होती है।

 

प्रश्न 4:- तुलनात्मक अध्ययन की उपयोगिता (Utility) क्या होती है और इसका महत्व क्यों है?

उत्तर:- तुलनात्मक अध्ययन का उपयोग विभिन्न देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं, सरकारों, और नीतियों के बीच समानताओं और भिन्नताओं का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझना होता है कि विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रणालियाँ एक दूसरे से कैसे प्रभावित होती हैं और किन कारणों से कुछ देश सफलता की ओर अग्रसर होते हैं, जबकि अन्य चुनौतियों का सामना करते हैं।

तुलनात्मक अध्ययन से विभिन्न राजनीतिक मॉडलों की गहन जानकारी प्राप्त होती है, जैसे लोकतंत्र, तानाशाही, समाजवाद या संघीय व्यवस्था, जिससे यह समझना आसान होता है कि कौन सी प्रणाली किस परिस्थिति में अधिक प्रभावी है। यह अध्ययन नीति निर्माताओं को बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है, क्योंकि इससे वे अन्य देशों की सफल नीतियों को अपने देश में लागू कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, तुलनात्मक अध्ययन से विभिन्न संस्कृतियों और समाजों की संरचनाओं के बीच संवाद की संभावनाएँ भी बढ़ती हैं, जिससे वैश्विक राजनीति में एक अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। इसलिए, तुलनात्मक अध्ययन न केवल शैक्षणिक दृष्टिकोण से बल्कि व्यवहारिक और नीति-निर्माण के स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

प्रश्न 5:- धर्म का राजनीति में क्या स्थान है और इसका तुलनात्मक अध्ययन कैसे किया जा सकता है?

उत्तर:- धर्म और राजनीति का संबंध विभिन्न देशों में अलग-अलग रूप में प्रकट होता है। धर्म का राजनीति में स्थान इस बात पर निर्भर करता है कि देश की राजनीतिक व्यवस्था, सांस्कृतिक परंपराएँ और कानूनी ढांचा क्या हैं।

अमेरिका, यूके, स्विट्ज़रलैंड और चीन की राजनीतिक प्रणालियों में धर्म की भूमिका का तुलनात्मक अध्ययन करके यह समझा जा सकता है कि कैसे अलग-अलग समाज धर्म को राजनीति में स्थान देते हैं।

अमेरिका में संविधान द्वारा चर्च और राज्य को अलग रखने की व्यवस्था है, जिसे “सेक्युलरिज़्म” कहा जाता है। हालांकि, धर्म का समाज और राजनीति पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव है। राजनीति में कई बार नेताओं के धर्म से जुड़े विचार मतदाताओं को प्रभावित करते हैं।

यूके में चर्च ऑफ़ इंग्लैंड एक आधिकारिक धर्म है और ब्रिटिश सम्राट इसके प्रमुख होते हैं। यद्यपि राज्य धर्म है, यूके एक उदार लोकतंत्र है और धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करता है।

स्विट्ज़रलैंड में धर्म और राजनीति का संबंध अधिक जटिल है, क्योंकि वहाँ कैन्टन-आधारित राजनीतिक प्रणाली है। कुछ कैन्टन धार्मिक हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर स्विट्ज़रलैंड एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।

चीन में सरकार का दृष्टिकोण नास्तिक है और धर्म को नियंत्रित किया जाता है। धर्म को राज्य के अधीन माना जाता है और केवल सरकारी मान्यता प्राप्त धार्मिक संस्थाएँ ही कार्य कर सकती हैं।

इस प्रकार, इन चार देशों में धर्म और राजनीति का स्थान भिन्न-भिन्न है, और यह दिखाता है कि धर्म किस प्रकार से राज्य की नीतियों और शासन प्रणाली को प्रभावित कर सकता है।

 

प्रश्न 6:- धर्मराज्य की अवधारणा क्या है, और यह किस प्रकार से राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करती है?

उत्तर:- धर्मराज्य की अवधारणा धार्मिक सिद्धांतों और नियमों पर आधारित राज्य व्यवस्था को दर्शाती है, जहाँ राजनीति और शासन धार्मिक विचारधारा के अनुरूप संचालित होते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था में धार्मिक नेता, संस्थाएँ या धर्मग्रंथ सर्वोच्च सत्ता के रूप में कार्य करते हैं और वे नागरिकों के दैनिक जीवन के साथ-साथ सरकारी नीतियों और कानूनों को भी नियंत्रित करते हैं। धर्मराज्य में धर्म और राजनीति का घनिष्ठ संबंध होता है, और सरकार का उद्देश्य धार्मिक मूल्यों को समाज में लागू करना होता है।

धर्मराज्य की अवधारणा विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करती है, खासकर जब इसे लोकतांत्रिक या सेक्युलर व्यवस्था के साथ तुलना किया जाए। एक धर्मराज्य में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता सीमित हो सकती है, क्योंकि सरकार धार्मिक सिद्धांतों के आधार पर नीतियाँ निर्धारित करती है। इसके विपरीत, लोकतांत्रिक और सेक्युलर व्यवस्थाओं में सरकार नागरिक अधिकारों की रक्षा और धर्म से स्वतंत्र नीतियाँ अपनाने पर ध्यान देती है।

धर्मराज्य की अवधारणा का प्रभाव विभिन्न देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं पर भी देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, ईरान जैसे देशों में धार्मिक नेता शासन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, जबकि यू.एस.ए. और यू.के. जैसे देशों में धर्म और राज्य को अलग रखा जाता है। इस प्रकार, धर्मराज्य की अवधारणा सरकार की संरचना और नीति निर्माण की दिशा को गहराई से प्रभावित करती है।

 

प्रश्न 7:- ब्रिटेन, अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड और चीन की राजनीतिक प्रणालियों की तुलनात्मक रूप से मुख्य विशेषताएं बताइए।

उत्तर:- ब्रिटेन की राजनीतिक प्रणाली एक संवैधानिक राजतंत्र है, जहाँ एक संवैधानिक शासन प्रणाली के तहत संसद सर्वोच्च है। यहाँ एकात्मक प्रणाली है, जिसका अर्थ है कि शक्ति का केंद्रीकरण है और कोई स्पष्ट लिखित संविधान नहीं है। सत्ता का केंद्र ब्रिटिश संसद होती है, जो द्विसदनीय है – हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स। प्रधानमंत्री, जो संसदीय बहुमत से चुना जाता है, शासन का प्रमुख होता है।

अमेरिका में एक संघीय प्रणाली है, जहाँ शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच होता है। यहाँ एक लिखित संविधान है और शासन तीन शाखाओं – विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका – में विभाजित है। अमेरिका में राष्ट्रपति शासन प्रणाली है, जहाँ राष्ट्रपति सरकार का प्रमुख होता है और उसकी शक्तियाँ संसद से स्वतंत्र होती हैं।

स्विट्ज़रलैंड एक संघीय गणराज्य है, जहाँ सीधा लोकतंत्र और संघीय प्रणाली का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। यहाँ की मुख्य विशेषता जनमत संग्रह (रेफरेंडम) और प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रक्रिया है, जहाँ नागरिक सीधे कानूनों और नीतियों पर मतदान करते हैं। स्विस राजनीतिक प्रणाली में राष्ट्रपति केवल एक सम्मानसूचक पद होता है और वास्तविक शक्ति संघीय परिषद के पास होती है।

चीन की राजनीतिक प्रणाली एक समाजवादी एकदलीय प्रणाली है, जहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। यह एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली है, और यहाँ की सत्ता का केंद्रीकरण पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पास होता है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की बजाय यहाँ पार्टी नेतृत्व द्वारा नीतियां बनाई और लागू की जाती हैं।

इन चारों देशों की राजनीतिक प्रणालियों की तुलना करने पर स्पष्ट होता है कि जहाँ ब्रिटेन, अमेरिका और स्विट्ज़रलैंड लोकतांत्रिक प्रणालियों पर आधारित हैं, वहीं चीन में एकदलीय शासन प्रणाली है। अमेरिका और स्विट्ज़रलैंड संघीय प्रणाली का पालन करते हैं जबकि ब्रिटेन एकात्मक प्रणाली और चीन केंद्रीकृत प्रणाली को अपनाते हैं।

 

प्रश्न 8:- तुलनात्मक अध्ययन में लोकतांत्रिक और तानाशाही शासन प्रणालियों के अंतर पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- लोकतांत्रिक और तानाशाही शासन प्रणालियाँ राजनीतिक व्यवस्था की दो प्रमुख धारणाएँ हैं, जिनके कार्य और सिद्धांतों में स्पष्ट अंतर होता है। तुलनात्मक अध्ययन में इन दोनों शासन प्रणालियों के अंतर पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली वह होती है जिसमें जनता की भागीदारी प्रमुख होती है। इसमें सरकार का गठन चुनाव के माध्यम से होता है और लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। लोकतांत्रिक शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया पारदर्शी होती है और कानून के समक्ष सभी नागरिक समान होते हैं। लोकतंत्र में व्यक्तिगत अधिकारों, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, और प्रेस की स्वतंत्रता का संरक्षण किया जाता है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था कार्य करती है, जहाँ जनता की इच्छाओं के आधार पर नीतियाँ बनाई जाती हैं और सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से होता है।

इसके विपरीत, तानाशाही शासन प्रणाली में सत्ता एक व्यक्ति या छोटे समूह के हाथों में केंद्रित होती है। इस प्रणाली में निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता की कोई भागीदारी नहीं होती है और सत्ता का हस्तांतरण अक्सर जबरन या हिंसक रूप से किया जाता है। तानाशाही शासन में नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का हनन होता है, और सरकार पर सवाल उठाने या आलोचना करने की अनुमति नहीं होती। चीन और पूर्व सोवियत संघ इसके उदाहरण हैं, जहाँ एक पार्टी या नेता की सत्ता पर पूर्ण पकड़ होती है और विरोध की गुंजाइश कम होती है।

लोकतांत्रिक शासन में जहां निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते हैं और जनता की आवाज महत्वपूर्ण होती है, वहीं तानाशाही में शक्ति एक केंद्र में सिमट जाती है और स्वतंत्रता सीमित होती है। इन दोनों प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन राजनीतिक प्रक्रियाओं और शासन की कार्यशैली को समझने में मदद करता है।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन का क्या अर्थ है?

उत्तर:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन का अर्थ विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों और राजनीतिक प्रक्रियाओं की तुलना करना है। इसका उद्देश्य विभिन्न देशों की राजनीतिक संरचनाओं, नीतियों, और शासन के तरीकों को समझना और उनके बीच समानताओं और भिन्नताओं का विश्लेषण करना होता है। उदाहरणस्वरूप, यूके, यूएसए, स्विट्जरलैंड और चीन की राजनीतिक प्रणालियों की तुलना की जाती है।

प्रश्न 2:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र (स्कोप) को कैसे परिभाषित करेंगे?

उत्तर:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन का क्षेत्र (स्कोप) विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों, संस्थाओं, और प्रक्रियाओं की तुलना करने पर आधारित है। इसमें सरकारों की संरचना, नीतियां, राजनीतिक संस्कृति, और आर्थिक-समाजवादी ढांचे की जांच की जाती है। इस अध्ययन से विभिन्न देशों के राजनीतिक मॉडल की विशेषताओं और उनकी प्रभावशीलता को समझने में मदद मिलती है।

प्रश्न 3:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के लिए किन-किन दृष्टिकोणों (Approaches) का प्रयोग किया जाता है?

उत्तर:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन के लिए कई दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है, जिनमें मुख्य रूप से संस्थागत दृष्टिकोण, संरचनात्मक दृष्टिकोण, व्यवहारवादी दृष्टिकोण, और प्रणाली दृष्टिकोण शामिल हैं। संस्थागत दृष्टिकोण में राजनीतिक संस्थाओं की तुलना की जाती है, जबकि संरचनात्मक दृष्टिकोण में समाज की संरचना और उसके तत्वों पर ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 4:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन की उपयोगिता (Utility) क्या है?

उत्तर:- राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन की उपयोगिता यह है कि इससे विभिन्न देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं, संस्थाओं और प्रक्रियाओं के बीच समानताएं और अंतर समझने में मदद मिलती है। यह अध्ययन राजनीतिक सिद्धांतों की व्यावहारिकता की जांच करता है और लोकतांत्रिक, अधिनायकवादी या अन्य शासन प्रणालियों की सफलता का विश्लेषण करता है।

प्रश्न 5:- धर्म का राजनीतिक अर्थ क्या होता है?

उत्तर:- धर्म का राजनीतिक अर्थ यह है कि किस प्रकार धर्म राजनीति और शासन व्यवस्था को प्रभावित करता है। यह समझने में मदद करता है कि कैसे धार्मिक मान्यताएं, संस्थाएं और समुदाय सरकार की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करते हैं। विभिन्न देशों में धर्म और राजनीति का संबंध अलग-अलग प्रकार से होता है।

प्रश्न 6:- धर्म राज्य (Dharma Rajya) की अवधारणा क्या है?

उत्तर:- धर्म राज्य की अवधारणा का अर्थ है एक ऐसा राज्य या शासन प्रणाली जिसमें धार्मिक सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों के आधार पर शासन किया जाता है। इसमें धर्म का पालन करना और नैतिकता को प्राथमिकता देना प्रमुख होता है। यह अवधारणा आदर्श रूप से न्याय, समानता और नैतिकता पर आधारित शासन को दर्शाती है, जिसमें व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में धार्मिक आचरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 7:- तुलनात्मक राजनीति अध्ययन के किन प्रमुख दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है?

उत्तर:- तुलनात्मक राजनीति अध्ययन में चार प्रमुख दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है:

(1) संस्थागत दृष्टिकोण, जो राजनीतिक संस्थाओं और उनके कार्यों का विश्लेषण करता है;

(2) संरचनात्मक दृष्टिकोण, जो सामाजिक संरचनाओं को केंद्र में रखता है;

(3) व्यवहारवादी दृष्टिकोण, जो राजनीतिक गतिविधियों और नागरिकों के व्यवहार का अध्ययन करता है; और

(4) प्रणाली दृष्टिकोण, जो राजनीतिक प्रणालियों की कार्यप्रणाली पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्रश्न 8:- यूनाइटेड किंगडम की शासन व्यवस्था में क्या विशेषताएँ पाई जाती हैं?

उत्तर:- यूनाइटेड किंगडम की शासन व्यवस्था की मुख्य विशेषता इसकी संवैधानिक राजशाही है, जहाँ रानी या राजा राष्ट्र प्रमुख होते हैं, लेकिन वास्तविक शक्ति संसद और प्रधानमंत्री के पास होती है। यू.के. में संसदीय लोकतंत्र है, जिसमें द्विसदनीय संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स) होती है।

प्रश्न 9:- संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:- संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनीतिक प्रणाली एक संघीय गणराज्य है, जिसमें राष्ट्रपति शासन प्रणाली होती है। इसमें शक्तियों का विभाजन कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच होता है। राष्ट्रपति सरकार का मुखिया होता है और कांग्रेस विधायी निकाय है, जो दो सदनों- सीनेट और प्रतिनिधि सभा में विभाजित होती है।

प्रश्न 10:- स्विट्ज़रलैंड की राजनीति में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की क्या भूमिका है?

उत्तर:- स्विट्ज़रलैंड की राजनीति में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहाँ नागरिकों को सीधा निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। रेफरेंडम और जनमत संग्रह के माध्यम से वे विभिन्न नीतियों और कानूनों पर सीधा मतदान कर सकते हैं। यह व्यवस्था नागरिकों को सरकार के फैसलों में सीधे भागीदारी का अवसर देती है, जिससे लोकतंत्र की पारदर्शिता और जिम्मेदारी बढ़ती है।

प्रश्न 11:- चीन की राजनीतिक प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:- चीन की राजनीतिक प्रणाली एक एकदलीय प्रणाली है, जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का वर्चस्व है। राज्य की सभी प्रमुख संस्थाओं और नीतियों पर पार्टी का नियंत्रण होता है। देश में लोकतांत्रिक चुनाव नहीं होते, बल्कि पार्टी द्वारा नेतृत्व का चयन किया जाता है। सत्ताधारी दल का नेतृत्व साम्यवादी सिद्धांतों पर आधारित है, और इसमें केंद्रीय नियंत्रण और अनुशासन का पालन किया जाता है। प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित है, और न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं है।

प्रश्न 12:- राजनीतिक प्रणालियों के तुलनात्मक अध्ययन से हमें क्या लाभ होता है?

उत्तर:- राजनीतिक प्रणालियों के तुलनात्मक अध्ययन से हमें विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था, नीतियों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की बेहतर समझ मिलती है। इससे हम यह जान सकते हैं कि विभिन्न परिस्थितियों में कौन सी प्रणाली अधिक प्रभावी है और किस प्रकार की व्यवस्था लोगों की समस्याओं का समाधान बेहतर ढंग से करती है।

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