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पर्यावरण आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन (सेमेस्टर -3)

आंतरिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

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यूनिट-1: पर्यावरण आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- पर्यावरण के प्रमुख घटकों (जैसे वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल, और जैवमंडल) का विस्तार से वर्णन कीजिए। यह भी बताइए कि इन घटकों के बीच संतुलन क्यों महत्वपूर्ण है और कैसे मनुष्य का हस्तक्षेप इस संतुलन को प्रभावित करता है?

उत्तर:-  पर्यावरण वह समग्र प्रणाली है जिसमें हमारे चारों ओर के सभी जीवित और निर्जीव तत्व शामिल होते हैं। पर्यावरण में वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जैवमंडल जैसे प्रमुख घटक शामिल होते हैं। इन घटकों के बीच परस्पर संतुलन का होना आवश्यक है, क्योंकि यह संतुलन पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में मदद करता है। मनुष्य द्वारा किए गए हस्तक्षेप से यह संतुलन प्रभावित होता है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इस उत्तर में हम पर्यावरण के घटकों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और इनके बीच संतुलन के महत्व पर चर्चा करेंगे।

1. पर्यावरण के प्रमुख घटक

पर्यावरण को चार प्रमुख घटकों में विभाजित किया गया है:

(i) वायुमंडल (Atmosphere)

वायुमंडल पृथ्वी को चारों ओर से घेरने वाली गैसों की एक परत है। यह कई गैसों जैसे नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%), और अन्य गैसों (1% जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन आदि) से मिलकर बना है। वायुमंडल को कई स्तरों में बाँटा गया है:

1.        क्षोभमंडल (Troposphere): यह सबसे निचला स्तर है जहाँ मौसम और जलवायु की गतिविधियाँ होती हैं।

2.      समतापमंडल (Stratosphere): इसमें ओज़ोन परत मौजूद होती है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है।

3.      मध्यमंडल (Mesosphere): इसमें उल्का पिंड जलकर नष्ट हो जाते हैं।

4.      थर्मोमंडल (Thermosphere): यहाँ आयनीकरण की प्रक्रिया होती है और इसे अंतरिक्ष के समीप माना जाता है।

5.      बहिर्मंडल (Exosphere): यह वायुमंडल का सबसे बाहरी हिस्सा है।

महत्व: वायुमंडल पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करता है, मौसम चक्र का निर्माण करता है और जीवों को श्वास के लिए ऑक्सीजन प्रदान करता है।

(ii) जलमंडल (Hydrosphere)

जलमंडल उन सभी जल निकायों का समुच्चय है जो पृथ्वी की सतह पर मौजूद हैं, जैसे महासागर, नदियाँ, झीलें, जलाशय, भूमिगत जल, और ग्लेशियर। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 97% महासागरों में है, जो खारा पानी है, जबकि 3% जल मीठा है जो नदियों, झीलों और भूजल के रूप में उपलब्ध है।

महत्व: जल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों का संचरण करता है, खेती, ऊर्जा उत्पादन, और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(iii) स्थलमंडल (Lithosphere)

स्थलमंडल पृथ्वी की ठोस सतह को संदर्भित करता है, जिसमें मिट्टी, चट्टानें, पहाड़, और खनिज संसाधन शामिल हैं। यह पृथ्वी की ऊपरी परत है, जहाँ मानव बस्तियाँ, कृषि, उद्योग और विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होते हैं।

महत्व: स्थलमंडल मानव जीवन और आर्थिक गतिविधियों का आधार है। मिट्टी कृषि के लिए आवश्यक है, और खनिज संसाधन औद्योगिक उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं।

(iv) जैवमंडल (Biosphere)

जैवमंडल पृथ्वी के उन हिस्सों को दर्शाता है जहाँ जीवन संभव है। इसमें भूमि, जल और वायु सभी शामिल हैं। सभी जीव-जंतु, पौधे, सूक्ष्मजीव, और मनुष्य जैवमंडल का हिस्सा हैं। जैवमंडल पारिस्थितिकी तंत्रों का निर्माण करता है, जिसमें जीव एक-दूसरे और अपने पर्यावरण के साथ परस्पर क्रियाएँ करते हैं।

महत्व: जैवमंडल पृथ्वी पर जीवन की विविधता का स्रोत है और पर्यावरणीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे कि जैविक चक्र, खाद्य श्रृंखला, और पारिस्थितिक संतुलन।

2. पर्यावरणीय घटकों के बीच संतुलन का महत्व

पर्यावरण के इन चारों घटकों के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह पृथ्वी पर जीवन के सतत विकास को सुनिश्चित करता है। निम्नलिखित बिंदुओं से इस संतुलन का महत्व स्पष्ट होता है:

1.        जलवायु और तापमान का संतुलन: वायुमंडल में गैसों का संतुलन पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करता है। यदि कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ जाए, तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

2.      पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन: जैवमंडल के विभिन्न जीव-जन्तु और पौधे एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। यदि एक भी प्रजाति विलुप्त हो जाए, तो खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है।

3.      जल चक्र का संतुलन: जलमंडल का संतुलन आवश्यक है ताकि वर्षा चक्र और भूजल का पुनर्भरण सुचारू रूप से हो सके।

4.      खनिज संसाधनों का संरक्षण: स्थलमंडल में उपलब्ध खनिज संसाधनों का सही उपयोग आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ियाँ भी इन संसाधनों का लाभ उठा सकें।

3. मनुष्य का हस्तक्षेप और पर्यावरणीय संतुलन पर प्रभाव

मानव सभ्यता ने प्रगति के लिए पर्यावरण के घटकों का दोहन किया है, लेकिन इसके कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। निम्नलिखित बिंदुओं में इस प्रभाव को समझा जा सकता है:

(i) वायुमंडल पर प्रभाव

1.        वायु प्रदूषण: वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएँ में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड होते हैं, जो वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।

2.      ग्लोबल वार्मिंग: जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक उपयोग से ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

3.      ओज़ोन परत का क्षरण: क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) जैसे रसायनों के कारण ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचा है, जिससे पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुँच रही हैं।

(ii) जलमंडल पर प्रभाव

1.        जल प्रदूषण: नदियों और झीलों में औद्योगिक कचरे और रसायनों का प्रवाह जलमंडल कोदूषित कर रहा है।

2.      पानी की कमी: भूजल का अत्यधिक दोहन और जल संसाधनों का अनुचित उपयोग कई क्षेत्रों में जल संकट को जन्म दे रहा है।

3.      समुद्र का स्तर बढ़ना: ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो रहा है।

(iii) स्थलमंडल पर प्रभाव

1.        वनीकरण की कमी: वनों की कटाई से मिट्टी का क्षरण और भूमि की उर्वरता में कमी हो रही है।

2.      खनिज संसाधनों का अंधाधुंध दोहन: खनिजों के अत्यधिक दोहन से पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा है और भूमि के प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो रहे हैं।

3.      शहरीकरण और औद्योगिकीकरण: तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से भूमि पर दबाव बढ़ रहा है और कृषि भूमि का ह्रास हो रहा है।

(iv) जैवमंडल पर प्रभाव

·       प्रजातियों का विलुप्त होना: वनों की कटाई और आवासीय क्षेत्रों के विस्तार से कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।

·       पारिस्थितिक असंतुलन: कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

·       मानव-वन्यजीव संघर्ष: मनुष्यों द्वारा जंगलों पर कब्जा करने के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहे हैं।

4. संतुलन बनाए रखने के उपाय

पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1.        वनीकरण को बढ़ावा: अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना और वनों का संरक्षण करना आवश्यक है।

2.      पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: जीवाश्म ईंधनों की जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जलविद्युत का उपयोग करना चाहिए।

3.      जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन और जल का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए।

4.      प्रदूषण नियंत्रण: उद्योगों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम लागू करने चाहिए।

5.      जैव विविधता का संरक्षण: संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव अभ्यारण्यों की स्थापना से जैव विविधता को संरक्षित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

पर्यावरण के वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जैवमंडल जैसे घटक परस्पर जुड़े हुए हैं और इनका संतुलन पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनुष्य का हस्तक्षेप इस संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, हमें सतत विकास के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।

 

प्रश्न 2:- पारिस्थितिकी क्या है? इसके प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन कीजिए और यह भी समझाइए कि पारिस्थितिकीय संतुलन का मानव जीवन और अन्य जीवों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:- पारिस्थितिकी (Ecology) जीव विज्ञान (Biology) की एक शाखा है, जो जीवों और उनके पर्यावरण के बीच होने वाले संबंधों का अध्ययन करती है। यह अध्ययन उन पारस्परिक संबंधों पर केंद्रित होता है, जो जीवों के बीच और उनके परिवेश के विभिन्न भौतिक व रासायनिक घटकों के साथ विकसित होते हैं। पारिस्थितिकी हमें इस बात को समझने में मदद करती है कि प्रकृति का संतुलन कैसे बना रहता है और इसमें मानव जीवन का क्या योगदान है।

पारिस्थितिकी (Ecology) क्या है?

‘पारिस्थितिकी’ शब्द ग्रीक भाषा के शब्दों “ओइकोस” (Oikos) जिसका अर्थ है ‘घर’ और “लोगोस” (Logos) जिसका अर्थ है ‘अध्ययन’ से मिलकर बना है। इस प्रकार पारिस्थितिकी का अर्थ होता है ‘जीवों और उनके प्राकृतिक आवास का अध्ययन’। इसे विज्ञान का वह क्षेत्र भी कहा जा सकता है, जो जीवों के समूहों के साथ-साथ उनकी प्रजातियों और उनके वातावरण के बीच होने वाले जटिल अंतःक्रियाओं की व्याख्या करता है।

पारिस्थितिकी के प्रमुख सिद्धांत

पारिस्थितिकी कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित है, जो पारिस्थितिकीय संतुलन और जीवों के अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सिद्धांत हमें यह समझने में मदद करते हैं कि किस प्रकार जीव एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और अपने पर्यावरण पर निर्भर रहते हैं।

1. पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecosystem) का सिद्धांत

·       पारिस्थितिकीय तंत्र किसी विशिष्ट क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी जीवों और उनके भौतिक वातावरण का समूह होता है। इसमें सभी जीव एक-दूसरे के साथ भोजन, ऊर्जा और पोषण के आदान-प्रदान के माध्यम से जुड़े होते हैं।

·       यह तंत्र दो घटकों में बँटा होता है:

·       जीव घटक (Biotic Components): पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव इत्यादि।

·       अजीव घटक (Abiotic Components): मिट्टी, पानी, वायु, तापमान और प्रकाश।

2. ऊर्जा प्रवाह का सिद्धांत (Energy Flow Principle)

·       पारिस्थितिकीय तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होता है—सूर्य से लेकर पौधों, शाकाहारी और मांसाहारी जीवों तक।

·       हर जीव ऊर्जा का उपभोग करता है और कुछ मात्रा में ऊर्जा खो देता है, जिससे तंत्र में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है।

3. खाद्य जाल और खाद्य श्रृंखला (Food Web and Food Chain)

·       जीवों के बीच भोजन के आदान-प्रदान का अध्ययन खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल के माध्यम से किया जाता है।

·       खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा एक रेखीय क्रम में प्रवाहित होती है, जबकि खाद्य जाल में कई खाद्य श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं।

4. पारिस्थितिकीय संतुलन (Ecological Balance) का सिद्धांत

·       किसी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जीवों और पर्यावरणीय घटकों का आपसी सामंजस्य पारिस्थितिकीय संतुलन कहलाता है।

·       इस संतुलन के बिगड़ने से जीवों का जीवन प्रभावित होता है और पर्यावरणीय आपदाएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे—विलुप्ति (Extinction), प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन।

5. समष्टि पारिस्थितिकी (Population Ecology)

·       यह सिद्धांत विभिन्न प्रजातियों की जनसंख्या और उनके विकास पर केंद्रित होता है। इसमें अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार जीवों की जनसंख्या पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करती है।

मानव जीवन और पारिस्थितिकीय संतुलन का प्रभाव

पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकीय संतुलन का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। पृथ्वी पर जीवों के अस्तित्व के लिए पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलित रहना अनिवार्य है। जब यह संतुलन बिगड़ता है, तब पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जो अंततः मानव जीवन को प्रभावित करती हैं।

1. मानव जीवन में पर्यावरणीय संसाधनों की भूमिका

·       मनुष्य अपनी अधिकांश आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों जैसे—पानी, हवा, मिट्टी, वनस्पतियों और जीवों पर निर्भर है।

·       कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी और पानी की आवश्यकता होती है। यदि पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ता है, तो सूखा, बाढ़ और भूमि क्षरण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो कृषि उत्पादन को प्रभावित करती हैं।

2. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

·       पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होती है। ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर से मौसम चक्र बदल रहे हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव खेती, स्वास्थ्य और जल संसाधनों पर पड़ता है।

·       हिमखंडों के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और जनसंख्या विस्थापन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

3. स्वास्थ्य पर प्रभाव

·       पारिस्थितिकी तंत्र में जैव विविधता (Biodiversity) का संतुलन बिगड़ने से कई रोगों का प्रसार होता है। उदाहरण के लिए, मलेरिया और डेंगू जैसे रोग मच्छरों की अधिकता के कारण फैलते हैं, जो पारिस्थितिकीय असंतुलन का परिणाम है।

·       प्रदूषण और वनों की कटाई से वायु और जल की गुणवत्ता खराब होती है, जो मनुष्यों के श्वसन और पाचन तंत्र को प्रभावित करती है।

4. वनों की कटाई और जैव विविधता पर प्रभाव

·       वनों की कटाई से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ता है, बल्कि कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं।

·       जैव विविधता में कमी से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होती है।

5. प्राकृतिक आपदाओं का खतरा

·       पारिस्थितिकीय असंतुलन प्राकृतिक आपदाओं जैसे—भूस्खलन, बाढ़ और सूखे की घटनाओं को बढ़ावा देता है।

·       ये आपदाएँ न केवल मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान और संसाधनों की कमी का कारण भी बनती हैं।

पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने के उपाय

मानव जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र के बीच सामंजस्य बनाए रखना बहुत आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1. वनों का संरक्षण

·       वनों की कटाई को रोककर और वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

·       वनों का संरक्षण न केवल जैव विविधता को बढ़ावा देगा, बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं को भी कम करेगा।

2. प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग

·       प्राकृतिक संसाधनों का सतत और विवेकपूर्ण उपयोग करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका लाभ उठा सकें।

·       जल, भूमि और ऊर्जा के स्रोतों का दुरुपयोग रोककर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

3. स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग

·       पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के बजाय सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग पर्यावरण के लिए लाभकारी है।

·       यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक होता है और जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करता है।

4. प्रदूषण नियंत्रण

·       उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्टों का उचित प्रबंधन करके वायु, जल और मृदा प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

·       प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और कचरे का पुनर्चक्रण भी पर्यावरण के संरक्षण में सहायक होता है।

5. जनजागरूकता अभियान

·       पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनजागरूकता फैलाना आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।

·       जागरूकता अभियानों से लोगों को यह समझाया जा सकता है कि पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

पारिस्थितिकी (Ecology) मानव जीवन और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने का महत्वपूर्ण विज्ञान है। यह न केवल हमें जीवों और पर्यावरण के बीच होने वाले संबंधों की समझ देता है, बल्कि यह भी बताता है कि पारिस्थितिकीय असंतुलन का मानव जीवन पर कितना गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। वनों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ सीधे तौर पर पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं, जिससे मानव जीवन पर खतरे उत्पन्न होते हैं। इसलिए, हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना चाहिए और सतत विकास की ओर कदम बढ़ाने चाहिए, ताकि पारिस्थितिकीय संतुलन बना रहे और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भविष्य का निर्माण हो सके।

 

प्रश्न 3:- पारिस्थितिकी तंत्र को परिभाषित कीजिए और इसके विभिन्न प्रकार (जैसे स्थलीय, जलीय, प्राकृतिक और कृत्रिम) का विस्तार से वर्णन कीजिए। उदाहरण सहित बताइए कि पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर ऊर्जा प्रवाह और पोषण चक्र कैसे कार्य करते हैं।

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का अर्थ है एक ऐसा तंत्र या प्रणाली, जिसमें जीवित (जैसे पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव) और निर्जीव (जैसे मिट्टी, पानी, वायु और जलवायु) घटक आपसी समन्वय से जुड़े होते हैं। यह तंत्र जीवों के बीच परस्पर संबंध, ऊर्जा प्रवाह और पोषण चक्र के माध्यम से संचालित होता है।

प्रख्यात पारिस्थितिकीविद् ए. जी. टैंसले ने 1935 में पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का प्रयोग किया और इसे एक ऐसी इकाई के रूप में परिभाषित किया, जिसमें सभी जैविक घटक (पादप, प्राणी) और अजैविक घटक (वातावरण, जल) मिलकर एक संतुलित व्यवस्था बनाते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार

पारिस्थितिकी तंत्रों को उनके स्थान और कार्य के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है। मुख्य रूप से पारिस्थितिकी तंत्र के चार प्रकार होते हैं:

1. स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Terrestrial Ecosystem)

यह पारिस्थितिकी तंत्र धरती की सतह पर पाया जाता है और इसमें भूमि आधारित जीवों और वनस्पतियों की प्रधानता होती है। यह तंत्र विभिन्न जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग प्रकार में विभाजित होता है।

·       वन पारिस्थितिकी तंत्र (Forest Ecosystem):

घने वृक्षों और वनस्पतियों से युक्त होता है। यह जैव विविधता से परिपूर्ण होता है और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उदाहरण: उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (Amazon Rainforest), शीतोष्ण वन (Temperate Forest)।

·       घासस्थली पारिस्थितिकी तंत्र (Grassland Ecosystem):

इसमें मुख्य रूप से घास और छोटे पौधों का प्राधान्य होता है। यह तंत्र चराई करने वाले जानवरों के लिए आदर्श निवास स्थान है।

उदाहरण: भारतीय सवाना, प्रेयरी (अमेरिका)।

·       मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Desert Ecosystem):

अत्यधिक शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यहां जल की उपलब्धता कम होती है, और जीव-जन्तु व पौधे इस वातावरण के अनुसार अनुकूलित होते हैं।

उदाहरण: थार मरुस्थल, सहारा मरुस्थल।

·       टुण्ड्रा पारिस्थितिकी तंत्र (Tundra Ecosystem):

यह ठंडे क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां साल के अधिकांश समय बर्फ जमी रहती है। वनस्पति बहुत सीमित होती है, और केवल कुछ काई एवं लाइकेन जैसे पौधे ही जीवित रहते हैं।

उदाहरण: आर्कटिक टुंड्रा, अल्पाइन टुंड्रा।

2. जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem)

इस प्रकार का पारिस्थितिकी तंत्र जल निकायों में पाया जाता है, और यह स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र से भिन्न होता है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

·       मीठे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र (Freshwater Ecosystem):

इसमें नदियाँ, तालाब, झीलें और झरने शामिल होते हैं। मीठे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र कई प्रकार के जलीय जीवों को आश्रय देता है।

उदाहरण: गंगा नदी का पारिस्थितिकी तंत्र, डल झील (कश्मीर)।

·       समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem):

यह पृथ्वी का सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है और महासागरों, समुद्रों एवं तटीय क्षेत्रों को शामिल करता है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में कोरल रीफ, ज्वार-भाटा क्षेत्र और गहरे महासागरीय क्षेत्र सम्मिलित होते हैं।

उदाहरण: प्रशांत महासागर का पारिस्थितिकी तंत्र, सुंदरबन का मैंग्रोव वन।

3. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (Natural Ecosystem)

यह पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक रूप से विकसित होता है और मानव हस्तक्षेप से मुक्त होता है। प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में वन, पर्वत, नदियाँ, झीलें और महासागर शामिल हैं। ये तंत्र अपने आप में संतुलित होते हैं और एक स्वतःस्फूर्त व्यवस्था बनाए रखते हैं।

·       उदाहरण: वर्षा वन, प्राकृतिक झीलें और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र।

4. कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र (Artificial Ecosystem)

कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र मानवों द्वारा बनाया और नियंत्रित किया जाता है। ये तंत्र पर्यावरणीय और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं, जैसे कृषि भूमि और उद्यान।

·       उदाहरण: खेतों में फसल उगाने के लिए विकसित कृषि पारिस्थितिकी तंत्र, बगीचे और मछली पालन तालाब।

पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow)

पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह सूर्य से शुरू होता है। सूर्य की ऊर्जा को पौधे (उत्पादक या उत्पादक) अपने पत्तों में मौजूद क्लोरोफिल के माध्यम से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया द्वारा अवशोषित करते हैं और भोजन का निर्माण करते हैं। यह ऊर्जा क्रमशः खाद्य श्रृंखला के विभिन्न स्तरों तक पहुँचती है।

1. उत्पादक (Producers):

पौधे और शैवाल जैसे जीव उत्पादक होते हैं, जो सूर्य की ऊर्जा का उपयोग कर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं।

2. उपभोक्ता (Consumers):

·       प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers): जड़ी-भक्षी जीव (Herbivores) जो पौधों को खाते हैं, जैसे गाय, हिरण।

·       माध्यमिक उपभोक्ता (Secondary Consumers): मांसाहारी जीव (Carnivores) जो प्राथमिक उपभोक्ताओं का शिकार करते हैं, जैसे भेड़िया।

·       तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers): शीर्ष शिकारी (Top Predators) जो माध्यमिक उपभोक्ताओं का शिकार करते हैं, जैसे बाघ।

3. अपघटक (Decomposers):

बैक्टीरिया और फफूंद जैसे जीव अपघटक होते हैं, जो मृत जीवों को विघटित कर पोषक तत्वों को पुनः मिट्टी में मिलाते हैं।

ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय (Unidirectional) होता है, यानी ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाती है, लेकिन पुनः लौटती नहीं है। हर स्तर पर ऊर्जा का कुछ भाग गर्मी के रूप में नष्ट हो जाता है, जिसे 10% नियम (10% Law) के रूप में जाना जाता है।

·       पोषण चक्र (Nutrient Cycle) का महत्व

पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न पोषक तत्व, जैसे नाइट्रोजन, कार्बन, फॉस्फोरस और जल, एक चक्रीय रूप में घूमते रहते हैं। यह प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

·       कार्बन चक्र (Carbon Cycle):

पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर भोजन का निर्माण करते हैं, और जीवों के श्वसन तथा अपघटन के माध्यम से कार्बन वापस वातावरण में लौटता है।

·       नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle):

नाइट्रोजन का रूपांतरण वायुमंडल, मिट्टी और जीवों के बीच होता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) की प्रक्रिया में बैक्टीरिया नाइट्रोजन को उपयोगी अमोनिया में परिवर्तित करते हैं, जो पौधों के विकास में सहायक होता है।

·       जल चक्र (Water Cycle):

जल का वाष्पीकरण, संघनन और वर्षा के माध्यम से निरंतर चक्रण होता रहता है, जिससे जलीय और स्थलीय तंत्रों में जल की आपूर्ति बनी रहती है।

निष्कर्ष

पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये तंत्र जीवों और वातावरण के बीच जटिल परस्पर संबंधों को दर्शाते हैं। ऊर्जा प्रवाह और पोषण चक्र के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखा जाता है। प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति जागरूक रहना चाहिए, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सके और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को रहने योग्य बनाया जा सके।

 

प्रश्न 4:- वर्तमान समय में पर्यावरण से जुड़ी कौन-कौन सी प्रमुख समस्याएँ (जैसे प्रदूषण, जैव विविधता में कमी, ग्लोबल वार्मिंग) उत्पन्न हो रही हैं? इनके प्रभावों का विश्लेषण कीजिए और इन समस्याओं के समाधान के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

उत्तर:- वर्तमान समय में पर्यावरणीय समस्याएँ वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, शहरीकरण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन इन समस्याओं के मूल कारण हैं। ये समस्याएँ न केवल प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि मानव जीवन और विकास के लिए भी संकट उत्पन्न कर रही हैं। इस निबंध में हम प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं का विश्लेषण करेंगे और उनके समाधान के संभावित कदमों पर चर्चा करेंगे।

प्रमुख पर्यावरणीय समस्याएँ

1. प्रदूषण (Pollution)

प्रदूषण पर्यावरण के लिए सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। यह कई प्रकार का हो सकता है:

·       वायु प्रदूषण: वाहनों, उद्योगों और कारखानों से निकलने वाले धुएँ के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO), और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) की मात्रा बढ़ रही है। इसका परिणाम स्मॉग, एसिड वर्षा, और श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियों के रूप में सामने आता है।

·       जल प्रदूषण: उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट और घरों से निकलने वाला कचरा जल स्रोतों को दूषित कर रहा है, जिससे पीने के पानी की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है और जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ रहा है।

·       भूमि प्रदूषण: ठोस कचरा, प्लास्टिक और रसायनों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, जिससे खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. जैव विविधता में कमी (Loss of Biodiversity)

वनों की कटाई, आवासीय और औद्योगिक विस्तार, तथा अवैध शिकार के कारण जैव विविधता में तेजी से कमी आ रही है। अनेक प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। जैव विविधता का संरक्षण पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन वनों की कटाई और पर्यावास नष्ट होने से यह संतुलन बिगड़ रहा है।

3. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन (Global Warming and Climate Change)

वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों, जैसे CO और मीथेन (CH) की मात्रा में वृद्धि के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। इसका प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर गहरा पड़ा है।

·       ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ गया है।

·       मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है, जैसे अनियमित वर्षा, सूखा और अत्यधिक गर्मी, जिससे कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

·       चक्रवात, बाढ़ और जंगलों में आग की घटनाओं में भी वृद्धि देखी जा रही है।

4. वनों की कटाई (Deforestation)

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। वनों की कमी से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण कम होता है, जिससे वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ती है और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है। वनों की कटाई से कई पशु-पक्षियों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट हो रहा है।

5. प्राकृतिक संसाधनों का अति-उपयोग (Overexploitation of Resources)

जल, खनिज, और जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग संसाधनों की कमी को जन्म दे रहा है। भू-जल का अत्यधिक दोहन जल संकट को बढ़ावा दे रहा है, और खनिजों के अंधाधुंध खनन से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है।

पर्यावरणीय समस्याओं के प्रभावों का विश्लेषण

1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु और जल प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी रोग, जैसे अस्थमा और फेफड़ों का कैंसर, बढ़ रहे हैं। दूषित जल से जलजनित रोग, जैसे डायरिया और हैजा, फैलते हैं।

2. कृषि पर प्रभाव

मौसम के अनियमित पैटर्न के कारण फसलों की पैदावार पर नकारात्मक असर पड़ता है। सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ किसानों को आर्थिक संकट में डाल देती हैं।

3. प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाढ़, सूखा, और चक्रवात जैसी आपदाओं में वृद्धि हो रही है। ये आपदाएँ न केवल जन-धन की हानि करती हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर पलायन को भी जन्म देती हैं।

4. जैव विविधता का नुकसान

पारिस्थितिकीय तंत्र की स्थिरता जैव विविधता पर निर्भर करती है। किसी एक प्रजाति के विलुप्त होने से पूरे तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए उठाए जाने वाले कदम

1. प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

·       वायु प्रदूषण: वाहनों में सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। उद्योगों से निकलने वाले धुएँ को फ़िल्टर करने के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग अनिवार्य करना चाहिए।

·       जल प्रदूषण: उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे को जलाशयों में डालने से पहले शुद्ध करना चाहिए। प्लास्टिक के उपयोग को कम कर के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए।

·       ठोस कचरा प्रबंधन: जैविक और अजैविक कचरे को अलग-अलग कर के पुनः उपयोग और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

2. जैव विविधता संरक्षण के प्रयास

·       वनों का संरक्षण: वनों की अंधाधुंध कटाई रोकने के लिए सख्त कानून लागू करने चाहिए।

·       विलुप्त प्रजातियों का संरक्षण: विलुप्ति के कगार पर पहुँची प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए ब्रीडिंग प्रोग्राम और नेशनल पार्कों की स्थापना करनी चाहिए।

·       स्थानीय समुदायों की भागीदारी: ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को जैव विविधता संरक्षण में शामिल कर के सतत विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए।

3. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के उपाय

·       नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: जीवाश्म ईंधनों की जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जलविद्युत का उपयोग बढ़ावा देना चाहिए।

·       ऊर्जा दक्षता: ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता वाले उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।

·       वृक्षारोपण अभियान: हरियाली बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण कर के वायुमंडल को शुद्ध बनाते हैं।

4. स्थायी विकास (Sustainable Development)

·       पर्यावरणीय शिक्षा: पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति लोगों को जागरूक करना और उन्हें सतत विकास के महत्व को समझाना आवश्यक है।

·       हरित प्रौद्योगिकी (Green Technology): उद्योगों में पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए ताकि प्रदूषण कम हो सके।

·       विकास और पर्यावरण में संतुलन: विकास परियोजनाओं को इस तरह से क्रियान्वित करना चाहिए कि पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुँचे।

5. सरकार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

·       सख्त कानूनों का पालन: प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाने और उनका पालन करवाने की आवश्यकता है।

·       अंतर्राष्ट्रीय समझौते: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते और क्योटो प्रोटोकॉल जैसे वैश्विक प्रयासों में सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए।

·       स्थानीय प्रशासन की भूमिका: नगरपालिकाओं और पंचायतों को स्थानीय स्तर पर कचरा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।

निष्कर्ष

पर्यावरणीय समस्याएँ आज मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए सरकार, उद्योग, और समाज को मिलकर काम करना होगा। जागरूकता, शिक्षा, और जिम्मेदार व्यवहार ही हमें एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण प्रदान कर सकते हैं।

हमारी पृथ्वी हमारा घर है, और इसका संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो इन पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान अवश्य संभव है।

 

प्रश्न 5:- मानव गतिविधियों (जैसे औद्योगिकीकरण, वनों की कटाई, शहरीकरण) से पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है? पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए कौन-कौन से उपाय आवश्यक हैं?

उत्तर:-  पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) प्राकृतिक प्रणाली है, जिसमें जैविक (जैसे पेड़-पौधे, जानवर, सूक्ष्म जीव) और अजैविक घटक (जैसे वायु, जल, मिट्टी) परस्पर निर्भर रहते हैं। यह संतुलन प्राचीन काल से बना हुआ था, लेकिन आधुनिक मानव गतिविधियों जैसे औद्योगिकीकरण, वनों की कटाई, शहरीकरण, और कृषि विस्तार के कारण इस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगे हैं। इस लेख में हम विस्तार से मानव के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करेंगे और पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर चर्चा करेंगे।

पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव गतिविधियों के प्रभाव

1. औद्योगिकीकरण का प्रभाव

औद्योगिकीकरण ने आर्थिक विकास को गति दी है, लेकिन इसके साथ कई पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं।

·       प्रदूषण: उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे, वायु प्रदूषण, और जल प्रदूषण से प्राकृतिक संसाधनों का शोषण होता है।

·       कार्बन उत्सर्जन: जीवाश्म ईंधनों के जलने से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें (CO, CH) उत्सर्जित होती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग होती है।

·       प्राकृतिक संसाधनों का दोहन: उद्योगों के लिए कोयला, खनिज, और जल जैसे संसाधनों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, जिससे संसाधन समाप्ति और पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन होता है।

2. वनों की कटाई और कृषि विस्तार

वन पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक हैं, लेकिन मानव आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई की जा रही है।

·       जैव विविधता का नुकसान: वनों की कटाई से कई वन्य जीवों का आवास नष्ट हो जाता है, जिससे जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।

·       मृदा अपरदन: पेड़-पौधों की जड़ों से मिट्टी का संरक्षण होता है। वनों की कटाई से मृदा अपरदन बढ़ता है, जिससे बाढ़ और सूखे की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

·       कार्बन संचयन में कमी: वृक्ष वातावरण से CO अवशोषित करते हैं, लेकिन वनों की कटाई से यह प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसें बढ़ती हैं।

3. शहरीकरण का प्रभाव

तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव डाला है।

·       भूमि उपयोग परिवर्तन: कृषि और वन्य क्षेत्रों को आवासीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में बदलने से प्राकृतिक पर्यावास नष्ट हो रहे हैं।

·       जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन: शहरों में बढ़ती आबादी और उद्योगों के कारण जल की मांग बढ़ रही है, जिससे भूजल स्तर तेजी से घट रहा है।

·       कचरे की समस्या: शहरीकरण के कारण ठोस कचरे और प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि हुई है, जो भूमि और जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहे हैं।

4. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

मानव गतिविधियों के कारण जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं।

·       ग्लोबल वार्मिंग: ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है, जिससे हिमनद पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।

·       प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात, बाढ़, सूखा, और जंगल की आग जैसी आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।

·       प्रजातियों पर प्रभाव: तापमान में परिवर्तन के कारण कुछ जीव-जंतु अपने प्राकृतिक आवास से पलायन कर रहे हैं, जबकि कुछ प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के उपाय

1. वन संरक्षण और वृक्षारोपण

·       वनीकरण और पुनर्वनीकरण: वनों की कटाई को रोकने के लिए वनीकरण (नए जंगल लगाना) और पुनर्वनीकरण (कटे हुए वनों को फिर से बहाल करना) आवश्यक है।

·       जैव विविधता संरक्षण: वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और बायोस्फीयर रिजर्व स्थापित किए जाने चाहिए।

·       सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण के प्रयासों में शामिल करने से वनों का बेहतर संरक्षण हो सकता है।

2. प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

·       उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण: उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों को प्रबंधित करने के लिए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र और वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का उपयोग अनिवार्य किया जाना चाहिए।

·       प्लास्टिक का कम उपयोग: सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध और पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

·       स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग: कोयले और तेल जैसे जीवाश्म ईंधनों की जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जल विद्युत का उपयोग किया जाना चाहिए।

3. जल संसाधनों का संरक्षण

·       वर्षा जल संचयन: शहरों और गाँवों में वर्षा जल संचयन प्रणाली का उपयोग कर भूजल स्तर को पुनः भरने का प्रयास किया जा सकता है।

·       जल के कुशल उपयोग को बढ़ावा: कृषि और उद्योगों में जल प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों (जैसे ड्रिप सिंचाई) का उपयोग आवश्यक है।

·       नदियों और झीलों का संरक्षण: नदियों में कचरा और अपशिष्ट डालने पर रोक लगाई जानी चाहिए और जल निकायों की स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए।

4. जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय

·       ग्रीनहाउस गैसों में कमी: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों (जैसे पेरिस समझौता) के तहत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

·       कार्बन क्रेडिट और उत्सर्जन व्यापार: देशों और उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करें और कार्बन क्रेडिट सिस्टम को अपनाएँ।

·       प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग: संसाधनों का दोहन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें।

5. शिक्षा और जागरूकता

·       पर्यावरण शिक्षा का विस्तार: स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए, ताकि छात्र पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझ सकें।

·       जन जागरूकता कार्यक्रम: जनसंचार माध्यमों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।

·       स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका: पर्यावरण संरक्षण में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) का सहयोग लिया जा सकता है, जो जागरूकता फैलाने और संरक्षण कार्यों में योगदान दे सकते हैं।

निष्कर्ष

मानव गतिविधियों का पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन संतुलित विकास के माध्यम से इन प्रभावों को कम किया जा सकता है। प्रदूषण, वनों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से निपटने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारी नीतियों का दायित्व नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने कार्यों के माध्यम से पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में योगदान दे।

यदि हम पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत होते हैं और सतत विकास के सिद्धांतों का पालन करते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सकता है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- पर्यावरण क्या है? इसके मुख्य घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर:- पर्यावरण (Environment) उन सभी भौतिक, जैविक और सामाजिक कारकों का समूह है जो जीवधारियों के जीवन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इसका तात्पर्य उन प्राकृतिक एवं कृत्रिम तत्वों से है जो हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, जैसे कि वायु, जल, मिट्टी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मनुष्यों द्वारा निर्मित संरचनाएँ। पर्यावरण न केवल हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक संसाधनों का स्रोत है, बल्कि यह हमारे जीवन को संतुलित और सुरक्षित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पर्यावरण के मुख्य घटकों को चार प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है:

·       जैविक घटक (Biotic Components): इसमें सभी जीवित प्राणी आते हैं, जैसे मनुष्य, पशु, पक्षी, पौधे और सूक्ष्मजीव।

·       अजैविक घटक (Abiotic Components): इनमें गैर-जीवित तत्व शामिल होते हैं, जैसे वायु, जल, मिट्टी, तापमान और प्रकाश।

·       प्राकृतिक घटक (Natural Components): ये तत्व प्रकृति द्वारा निर्मित होते हैं, जैसे नदियाँ, पर्वत, समुद्र और वन।

·       सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक (Social and Cultural Components): इसमें मानव समाज की गतिविधियाँ, संस्कृति, परंपराएँ और आर्थिक व्यवस्था शामिल हैं।

इस प्रकार, पर्यावरण एक जटिल तंत्र है जो विभिन्न घटकों के आपसी संतुलन पर आधारित होता है और इसका संरक्षण आवश्यक है।

 

प्रश्न 2:- पारिस्थितिकी (E cology) से आप क्या समझते हैं? इसका महत्व समझाइए।

उत्तर:- पारिस्थितिकी (Ecology) विज्ञान की वह शाखा है, जो जीवों और उनके पर्यावरण के बीच परस्पर संबंधों का अध्ययन करती है। इसमें यह देखा जाता है कि जीव एक-दूसरे के साथ और अपने परिवेश के भौतिक तथा रासायनिक घटकों के साथ कैसे संवाद और समायोजन करते हैं। पारिस्थितिकी का अध्ययन विभिन्न स्तरों पर किया जाता है, जैसे – व्यक्ति, जनसंख्या, समुदाय, पारिस्थितिक तंत्र, और बायोस्फीयर। यह प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

पारिस्थितिकी का महत्व कई प्रकार से देखा जा सकता है। सबसे पहले, यह पृथ्वी पर जीवन की विविधता को समझने और संरक्षित करने में सहायता करती है। जीव और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहना अनिवार्य है, क्योंकि किसी एक प्रजाति के विलुप्त होने से पूरा पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा, पारिस्थितिकी प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करती है, जिससे भोजन, जल, और ऊर्जा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

पारिस्थितिकी का अध्ययन पर्यावरणीय संकटों जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, वनों की कटाई, और जैव विविधता के नुकसान से निपटने के समाधान प्रदान करता है। इसके माध्यम से हम समझ सकते हैं कि कैसे मानवीय क्रियाएं पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं और इन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है। संक्षेप में, पारिस्थितिकी पर्यावरणीय सुरक्षा और टिकाऊ विकास के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करती है, जो आज की दुनिया के लिए अत्यंत आवश्यक है।

 

प्रश्न 3:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) क्या होता है? इसके उदाहरण दीजिए।

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) जीवित और निर्जीव घटकों का एक ऐसा सामूहिक तंत्र है, जिसमें विभिन्न जीवों और उनके परिवेश के बीच पारस्परिक क्रियाएं होती हैं। इसमें जैविक घटक, जैसे पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव, और अजैविक घटक, जैसे मिट्टी, पानी, वायु, तापमान और धूप, शामिल होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में जीव आपस में भोजन, ऊर्जा और पोषण चक्र के माध्यम से जुड़े होते हैं, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन बना रहता है।

प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के कई उदाहरण देखे जा सकते हैं, जैसे जंगल, नदी, तालाब, महासागर और मरुस्थल। एक जंगल में पेड़-पौधे, शाकाहारी और मांसाहारी जीव, और सूक्ष्मजीव आपस में एक जटिल खाद्य जाल के माध्यम से जुड़े रहते हैं। इसी तरह, तालाब में पानी, मछलियां, मेंढक, शैवाल और कीट मिलकर एक संतुलित तंत्र का निर्माण करते हैं।

इसके अलावा, मानव निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र भी होते हैं, जैसे खेती के क्षेत्र और उद्यान, जहाँ मानवीय हस्तक्षेप द्वारा पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व इस बात में है कि यह पर्यावरण को स्थिर रखता है और प्राकृतिक संसाधनों के चक्रीय उपयोग को सुनिश्चित करता है।

 

प्रश्न 4:- पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक और अजैविक घटकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) जीवित और निर्जीव घटकों का एक संतुलित समूह है, जिसमें दोनों घटक एक-दूसरे के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। इसे दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है: जैविक (Biotic) और अजैविक (Abiotic) घटक।

1. जैविक घटक (Biotic Components):

यह वे जीवित घटक हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसमें पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, फफूंद) आदि शामिल होते हैं। जैविक घटकों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:

·       उत्पादक (Producers): जैसे- हरे पौधे, जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) द्वारा भोजन बनाते हैं।

·       उपभोक्ता (Consumers): जैसे- शाकाहारी (Herbivores), मांसाहारी (Carnivores) और सर्वाहारी (Omnivores) प्राणी, जो सीधे या परोक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर होते हैं।

·       अपघटक (Decomposers): जैसे- बैक्टीरिया और फफूंद, जो मृत जीवों को विघटित कर पोषक तत्व मिट्टी में वापस लाते हैं।

2. अजैविक घटक (Abiotic Components):

ये निर्जीव घटक हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के भौतिक और रासायनिक वातावरण को निर्धारित करते हैं। इसमें जल, वायु, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश, खनिज आदि शामिल होते हैं। ये घटक जीवों की वृद्धि और अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं। उदाहरण के लिए, जल और प्रकाश पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं, जबकि तापमान और मिट्टी जानवरों और पौधों के आवास को प्रभावित करते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक और अजैविक घटक मिलकर एक संतुलित पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं, जहाँ सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं और पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हैं।

 

प्रश्न 5:- पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा प्रवाह कैसे होता है?

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) में ऊर्जा प्रवाह सूर्य से प्रारंभ होता है, जो जीवों के विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा का संचरण खाद्य श्रृंखला (Food Chain) और खाद्य जाल (Food Web) के माध्यम से होता है।

सूर्य प्रकाश ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जिसे पौधे (उत्पादक) प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) प्रक्रिया के माध्यम से ग्रहण कर रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। यह ऊर्जा पौधों में कार्बोहाइड्रेट के रूप में संग्रहीत होती है, जो प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी जीव) द्वारा ग्रहण की जाती है।

इसके बाद यह ऊर्जा माध्यमिक उपभोक्ता (मांसाहारी) और तृतीयक उपभोक्ता तक पहुंचती है। हर स्तर पर ऊर्जा का कुछ भाग जीवों की शारीरिक क्रियाओं में उपयोग होता है और शेष ऊर्जा गर्मी के रूप में वातावरण में नष्ट हो जाती है। इसी कारण ऊर्जा प्रवाह एक दिशा में होता है और यह पुनः चक्रित नहीं हो सकता।

इस प्रकार, पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह सतत नहीं होता, बल्कि एक दिशा में घटते क्रम में होता है। ऊर्जा प्रवाह का यह सिद्धांत पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

प्रश्न 6:- पर्यावरण संरक्षण क्यों आवश्यक है?

उत्तर:- पर्यावरण संरक्षण आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए स्वच्छ हवा, पानी और मिट्टी की उपलब्धता अनिवार्य है, और इन संसाधनों को सुरक्षित रखना ही पर्यावरण संरक्षण का मूल उद्देश्य है। पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति के कारण जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएँ और जैव विविधता में कमी जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

मनुष्य के बढ़ते औद्योगीकरण और शहरीकरण ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है, जिसके परिणामस्वरूप वनों की कटाई, प्रदूषण और जल स्रोतों का सूखना जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं। यदि पर्यावरण का संरक्षण नहीं किया गया, तो न केवल वन्यजीवों का जीवन संकट में आएगा, बल्कि भविष्य में मनुष्यों के लिए भी जल, हवा और भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना कठिन हो जाएगा।

पर्यावरण संरक्षण के प्रयास जैसे वृक्षारोपण, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन और टिकाऊ विकास को अपनाना आवश्यक है। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है। अतः हम सभी का कर्तव्य है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रहें और इसे अपनी दैनिक जीवनशैली का हिस्सा बनाएं।

 

प्रश्न 7:- पर्यावरण के कौन-कौन से प्रकार होते हैं? संक्षेप में समझाइए।

उत्तर:- पर्यावरण को मुख्य रूप से दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है: प्राकृतिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण।

1. प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment):

इसमें पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राकृतिक वस्तुएं और तत्त्व शामिल होते हैं। यह कई घटकों से मिलकर बना होता है, जैसे:

·       भौतिक तत्व: वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल (अर्थात् भूमि, जल, वायु और जीव-जंतु)।

·       जैविक घटक: पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, सूक्ष्म जीव और अन्य जैविक तत्त्व।

यह पर्यावरण मानव और अन्य जीवों के जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करता है, जैसे जल, भोजन और शुद्ध वायु।

2. मानव निर्मित पर्यावरण (Human-made Environment):

यह वह पर्यावरण है जो मनुष्यों द्वारा उनके विकास और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाया गया है। इसमें शामिल हैं:

·       आधारभूत संरचना: सड़कें, पुल, भवन, कारखाने आदि।

·       सामाजिक और आर्थिक तत्व: परिवहन व्यवस्था, उद्योग, कृषि और शहरीकरण।

यह पर्यावरण मानव की सुविधाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन साथ ही इसके कारण कई पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, जैसे प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अति-उपयोग।

इन दोनों प्रकारों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है ताकि पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित रह सके।

 

प्रश्न 8:- मानव गतिविधियों से पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:- मानव गतिविधियों का पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, कृषि विस्तार और वन कटाई जैसी गतिविधियाँ पारिस्थितिकी संतुलन को बाधित करती हैं। वन क्षेत्र कम होने से जैव विविधता घटती है और कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाती हैं। औद्योगिक प्रदूषण, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी, जल, और वायु प्रदूषित हो जाती है, जिससे प्राकृतिक संसाधन तेजी से समाप्त हो रहे हैं।

वाहनों और कारखानों से निकलने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि, बाढ़, सूखा, और चक्रवात जैसी आपदाएँ अधिक होने लगी हैं। पर्यावरणीय असंतुलन का सीधा असर मनुष्यों और अन्य जीव-जंतुओं के जीवन पर पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएँ भी बढ़ रही हैं।

मानव गतिविधियों से पारिस्थितिकीय तंत्र की पुनर्योजना और संरक्षण की आवश्यकता है। टिकाऊ विकास, स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग, और पुनर्वनीकरण जैसे उपाय अपनाकर ही हम पर्यावरण को संतुलित रख सकते हैं। जागरूकता और जिम्मेदारी से ही हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित कर सकते हैं।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- पर्यावरण किसे कहते हैं?

उत्तर:- पर्यावरण वह प्राकृतिक और मानवीय परिवेश है जिसमें जीवित और निर्जीव तत्व मिलकर जीवन को प्रभावित करते हैं। इसमें वायु, जल, मिट्टी, वनस्पति, जीव-जंतु और मानव गतिविधियाँ शामिल हैं। पर्यावरण हमें जीवनयापन के लिए संसाधन उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 2:- पर्यावरण के मुख्य घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर:- पर्यावरण के मुख्य घटक दो प्रकार के होते हैं:

·       जैविक घटक – पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव।

·       अजैविक घटक – वायु, जल, मिट्टी, तापमान और प्रकाश।

प्रश्न 3:- पारिस्थितिकी का क्या अर्थ है?

उत्तर:- पारिस्थितिकी विज्ञान का वह क्षेत्र है जिसमें जीवों और उनके परिवेश के बीच पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यह बताता है कि जीव कैसे अपने पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखते हैं।

प्रश्न 4:- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) क्या होता है?

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र जीवित और निर्जीव घटकों का वह समुच्चय है, जिसमें सभी घटक एक-दूसरे से परस्पर जुड़े होते हैं और ऊर्जा तथा पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करते हैं, जैसे जंगल, नदी, और समुद्र।

प्रश्न 5:- पारिस्थितिकी तंत्र के कितने प्रकार होते हैं? उदाहरण सहित बताएं।

उत्तर:- पारिस्थितिकी तंत्र दो प्रकार के होते हैं:

·       स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र – जैसे जंगल, घास के मैदान।

·       जलीय पारिस्थितिकी तंत्र – जैसे समुद्र, झील, और नदियाँ।

प्रश्न 6:- पर्यावरण में जैविक और अजैविक घटक क्या होते हैं?

उत्तर:-

·       जैविक घटक: जीवित तत्व जैसे पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव।

·       अजैविक घटक: निर्जीव तत्व जैसे वायु, पानी, मिट्टी, और तापमान।

प्रश्न 7:- पारिस्थितिकीय संतुलन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:- पारिस्थितिकीय संतुलन तब होता है जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र के सभी घटक – जैविक और अजैविक – सामंजस्य में रहते हैं, और पर्यावरण में किसी एक घटक के अतिरेक या कमी से असंतुलन नहीं होता।

प्रश्न 8:-खाद्य श्रृंखला (Food Chain) और खाद्य जाल (Food Web) में क्या अंतर है?

उत्तर:- खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एक सीधी रेखा में होता है, जबकि खाद्य जाल में कई खाद्य श्रृंखलाएँ आपस में जुड़ी होती हैं, जिससे ऊर्जा और पोषण का जटिल प्रवाह होता है।

प्रश्न 9:- ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow) का सिद्धांत पारिस्थितिकी तंत्र में कैसे कार्य करता है?

उत्तर:- ऊर्जा का प्रवाह पारिस्थितिकी तंत्र में सूर्य से प्रारंभ होता है और उत्पादकों (पौधों) से उपभोक्ताओं (जानवरों) और अंत में अपघटक (सूक्ष्मजीवों) तक पहुँचता है। ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होती है और हर स्तर पर कुछ ऊर्जा का नुकसान होता है।

प्रश्न 10:- वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल क्या हैं?

उत्तर:-

·       वायुमंडल: पृथ्वी को घेरने वाली वायु की परत।

·       जलमंडल: पृथ्वी पर मौजूद सभी जल स्रोत।

·       स्थलमंडल: पृथ्वी की ठोस सतह।

·       जीवमंडल: पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणी और उनके आवास।

प्रश्न 11:- जैव विविधता (Biodiversity) का पर्यावरण पर क्या महत्व है?

उत्तर:- जैव विविधता पर्यावरण को स्थिरता और लचीलापन प्रदान करती है। यह विभिन्न प्रजातियों को एक-दूसरे पर निर्भर बनाकर पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखती है और मानव जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 12:- पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं?

उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिए वृक्षारोपण, जैव विविधता संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग, प्रदूषण की रोकथाम और जन जागरूकता बढ़ाने जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

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