परिचय
भूगोल (Geography) मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ विकसित हुआ है। यह पृथ्वी के स्वरूप, जलवायु, पर्यावरण, संसाधनों और मानव समाज के बीच संबंधों का अध्ययन करता है। प्राचीन काल से ही भारत में भूगोल का अध्ययन विभिन्न रूपों में होता रहा है। भारतीय भूगोलवेत्ताओं ने खगोल विज्ञान, मानचित्रण, स्थलाकृतिक विशेषताओं, जलवायु और पृथ्वी के स्वरूप से जुड़े कई महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रस्तुत किए।
1. भूगोल का प्राचीन भारतीय परिप्रेक्ष्य (Ancient Indian Perspective of Geography)
भारत में भूगोल का अध्ययन मुख्य रूप से वेदों, पुराणों, महाकाव्यों और खगोल विज्ञान से संबंधित ग्रंथों में पाया जाता है। यह अध्ययन प्राकृतिक तत्वों और सामाजिक संरचना के संबंधों पर केंद्रित था।
(i) वेदों और पुराणों में भूगोल
ऋग्वेद (1500-1000 ईसा पूर्व) में नदियों, पहाड़ों और विभिन्न स्थानों का उल्लेख मिलता है।
अथर्ववेद में जलवायु और भौगोलिक परिदृश्य की चर्चा है।
पुराणों में सात द्वीपों (सप्तद्वीपीय पृथ्वी) और चार दिशाओं का वर्णन मिलता है।
(ii) महाभारत और रामायण में भूगोल
महाभारत में विभिन्न राज्यों, नदियों और पर्वतों का विस्तृत विवरण मिलता है।
रामायण में दक्षिण भारत और श्रीलंका की भौगोलिक स्थितियों का उल्लेख मिलता है।
2. प्राचीन भारतीय भूगोलवेत्ताओं का योगदान (Contribution of Ancient Indian Geographers)
(i) वराहमिहिर (Varahamihira) (505-587 ईस्वी)
वराहमिहिर भारत के महान खगोलविद और भूगोलवेत्ता थे।
उन्होंने “पंचसिद्धांतिका” नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें ज्योतिष, भूगोल और खगोल विज्ञान की महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
उन्होंने वर्षा के पूर्वानुमान और जलवायु के प्रकारों को समझने में योगदान दिया।
उनकी रचनाओं में मानचित्रण और स्थलाकृतिक विशेषताओं पर चर्चा की गई है।
(ii) आर्यभट्ट (Aryabhata) (476-550 ईस्वी)
आर्यभट्ट ने पृथ्वी के गोलाकार होने और इसके अपनी धुरी पर घूमने की अवधारणा दी।
उन्होंने ग्रहों की गति, खगोलीय गणनाएँ और अक्षांश-देशांतर की अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं।
“आर्यभटीय” में उन्होंने पृथ्वी और खगोलीय पिंडों के स्थानिक संबंधों पर प्रकाश डाला।
(iii) भास्कराचार्य (Bhaskaracharya) (1114-1185 ईस्वी)
उन्होंने “सिद्धांत शिरोमणि” नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें खगोल विज्ञान और भूगोल से संबंधित सिद्धांत दिए गए हैं।
उन्होंने गुरुत्वाकर्षण बल का वर्णन किया, जो बाद में न्यूटन के सिद्धांत से मेल खाता है।
उन्होंने सौरमंडल और ग्रहों की गति का अध्ययन किया।
(iv) पतंजलि (Patanjali) (200 ईसा पूर्व)
उन्होंने अपने योगसूत्रों में पर्यावरण और भूगोल का जिक्र किया।
उन्होंने जलवायु, नदियों और स्वास्थ्य के संबंध में विचार व्यक्त किए।
(v) कौटिल्य (चाणक्य) (350-283 ईसा पूर्व)
कौटिल्य ने “अर्थशास्त्र” में राज्य प्रशासन, व्यापार मार्गों और भौगोलिक स्थितियों का उल्लेख किया।
उन्होंने वाणिज्य, खनिज संसाधनों और नदियों के उपयोग की चर्चा की।
(vi) मेघस्थनीज़ (Megasthenes) (302 ईसा पूर्व)
मेघस्थनीज़ एक ग्रीक राजदूत थे, जिन्होंने “इंडिका” नामक ग्रंथ लिखा।
इसमें उन्होंने भारत की नदियों, पर्वतों, जलवायु और कृषि गतिविधियों का विस्तृत वर्णन किया।
3. भारतीय भूगोलवेत्ताओं का वैश्विक योगदान (Global Contribution of Indian Geographers)
(i) मानचित्रण और दिशा ज्ञान (Cartography and Navigation)
भारतीय नाविकों और भूगोलवेत्ताओं ने समुद्री मार्गों और दिशाओं का ज्ञान विकसित किया।
भारत में “ज्योतिष शास्त्र” के माध्यम से दिशा ज्ञान और स्थान-निर्धारण की तकनीकों को समझा गया।
(ii) खगोल विज्ञान और भूगोल (Astronomy and Geography)
भारत के खगोलविदों ने पृथ्वी, ग्रहों और नक्षत्रों की गति का अध्ययन किया।
सूर्य और चंद्रमा के ग्रहणों की गणना सबसे पहले भारत में की गई।
(iii) प्राकृतिक आपदाओं की अवधारणा (Concept of Natural Disasters)
वराहमिहिर और अन्य भारतीय विद्वानों ने जलवायु परिवर्तन, मानसून और भूकंप के प्रभावों का अध्ययन किया।
उन्होंने वर्षा, मानसून, और जल चक्र पर गहन शोध किया।
4. भूगोलिक चिंतन के विकास में भारतीय योगदान (Evolution of Geographical Thought in India)
(i) प्राचीन काल (Ancient Era)
इस काल में पौराणिक भूगोल प्रचलित था, जहाँ पृथ्वी को एक सपाट संरचना के रूप में देखा जाता था।
धार्मिक ग्रंथों और वेदों में नदी-घाटी सभ्यता और जलवायु का उल्लेख किया गया।
(ii) मध्यकाल (Medieval Era)
इस काल में मुस्लिम विद्वानों ने भारत में मानचित्रण और भूगोल को समृद्ध किया।
अल-बरूनी (Al-Biruni) ने भारत की भूगोलिक संरचना पर महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा।
(iii) आधुनिक काल (Modern Era)
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में व्यवस्थित मानचित्रण और सर्वेक्षण का कार्य हुआ।
आधुनिक तकनीकों के साथ भारतीय भूगोलवेत्ताओं ने जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन प्रबंधन पर शोध किया।
“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” और भूगोल की महत्ता
· भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
· प्राचीन भारतीय भूगोलवेत्ताओं के योगदान ने भारत को खगोल विज्ञान, पर्यावरणीय अध्ययन और मानचित्रण के क्षेत्र में अग्रणी बनाया।
· “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की अवधारणा विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों को जोड़कर देश की अखंडता और प्रगति को दर्शाती है।
निष्कर्ष
प्राचीन भारतीय भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल, खगोल विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी खोजों ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में विज्ञान और भूगोल की दिशा को प्रभावित किया।
आज भी, भारतीय भूगोलवेत्ताओं की शोध पद्धति जलवायु परिवर्तन, संसाधन प्रबंधन और सतत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह अध्ययन न केवल भारतीय भूगोल की जड़ों को समझने में सहायक है, बल्कि भविष्य में भूगोल के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने की दिशा में भी योगदान देता है।gg