वित्तीय लेखा का परिचय और मूलभूत सिद्धांत
1. श्री कल्याण सुब्रमण्यम अय्यर (के.एस. अय्यर): भारत में लेखांकन के जनक
श्री कल्याण सुब्रमण्यम अय्यर (1859-1940) को भारत में लेखांकन का जनक माना जाता है। उन्होंने भारत में आधुनिक लेखांकन प्रणाली को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका योगदान भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंसी प्रणाली की नींव रखने में था।
· उन्होंने 1909 में भारतीय लेखाकार संस्थान (Institute of Chartered Accountants of India – ICAI) की स्थापना की।
· वे लेखांकन शिक्षा को विकसित करने में अग्रणी थे और भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंट पेशे को मान्यता दिलाने में सहायक रहे।
· के.एस. अय्यर ने लेखांकन मानकों को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढालने की दिशा में योगदान दिया।
· उन्होंने लेखांकन पेशेवरों को संगठित करने के लिए ऑडिटिंग की विधियों को विकसित किया।
· उनके प्रयासों से भारत में वित्तीय पारदर्शिता और नैतिक लेखांकन की अवधारणा को बढ़ावा मिला।
2. लेखांकन की प्रकृति और परिधि (Nature and Scope of Accounting)
लेखांकन को व्यवसाय की “भाषा” कहा जाता है क्योंकि यह वित्तीय जानकारी को व्यवस्थित रूप से रिकॉर्ड करने, वर्गीकृत करने, संक्षिप्त करने और व्याख्या करने की प्रक्रिया है।
(क) लेखांकन की प्रकृति
लेखांकन की प्रकृति निम्नलिखित पहलुओं पर आधारित होती है:
1. वित्तीय सूचना का रिकॉर्डिंग: यह सभी व्यावसायिक लेन-देन को व्यवस्थित रूप से दर्ज करने की प्रक्रिया है।
2. वर्गीकरण (Classification): डेटा को विभिन्न खातों में व्यवस्थित किया जाता है, जैसे कि आय, व्यय, संपत्ति, देनदारियां आदि।
3. सारांशण (Summarization): रिकॉर्ड किए गए आंकड़ों का सार प्रस्तुत किया जाता है ताकि उपयोगकर्ता इसे आसानी से समझ सकें।
4. विश्लेषण और व्याख्या (Analysis & Interpretation): वित्तीय विवरणों का अध्ययन कर उचित निर्णय लिए जाते हैं।
(ख) लेखांकन का परिधि (Scope)
लेखांकन का परिधि अत्यंत व्यापक है और निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित करता है:
1. वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting): इसमें वित्तीय लेन-देन का रिकॉर्ड, वर्गीकरण और व्याख्या की जाती है।
2. प्रबंधन लेखांकन (Management Accounting): यह प्रबंधकों को व्यवसाय से जुड़े निर्णय लेने में सहायता करता है।
3. लागत लेखांकन (Cost Accounting): इसमें उत्पादन की लागत का विश्लेषण किया जाता है।
4. ऑडिटिंग (Auditing): वित्तीय रिकॉर्ड की सत्यता की जाँच की जाती है।
5. कर लेखांकन (Tax Accounting): कराधान से जुड़े नियमों और कर देनदारी का प्रबंधन किया जाता है।
3. सामान्यतः स्वीकृत लेखांकन सिद्धांत (Generally Accepted Accounting Principles – GAAP)
GAAP वित्तीय विवरणों की तैयारी और प्रस्तुति के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
(क) लेखांकन के मुख्य सिद्धांत
1. व्यवसाय इकाई सिद्धांत (Business Entity Concept): व्यवसाय को मालिक से अलग माना जाता है।
2. मूल्यांकन सिद्धांत (Money Measurement Concept): केवल मौद्रिक रूप में व्यक्त घटनाओं को ही लेखांकन में रिकॉर्ड किया जाता है।
3. काल अवधि सिद्धांत (Accounting Period Concept): वित्तीय विवरण एक निश्चित अवधि (जैसे तिमाही या वार्षिक) के आधार पर तैयार किए जाते हैं।
4. मिलान सिद्धांत (Matching Concept): आय को उस अवधि में रिकॉर्ड किया जाता है जब वह अर्जित होती है और उससे संबंधित व्यय को उसी अवधि में दर्शाया जाता है।
5. लागत सिद्धांत (Cost Concept): परिसंपत्तियों को उनके अधिग्रहण मूल्य पर ही दर्ज किया जाता है।
(ख) लेखांकन संहिताएँ (Accounting Conventions)
· सावधानी सिद्धांत (Conservatism Principle): संभावित हानियों को तुरंत रिकॉर्ड किया जाता है, जबकि संभावित लाभों को तब तक रिकॉर्ड नहीं किया जाता जब तक वे निश्चित न हो जाएं।
· संगति सिद्धांत (Consistency Principle): एक बार अपनाई गई लेखांकन नीति को लगातार अपनाना चाहिए।
· पूर्ण प्रकटीकरण सिद्धांत (Full Disclosure Principle): वित्तीय विवरण में सभी प्रासंगिक जानकारी दी जानी चाहिए।
4. भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक (Indian and International Accounting Standards)
लेखांकन मानकों को स्थापित करने के लिए भारतीय लेखांकन मानक बोर्ड (Accounting Standards Board – ASB) और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक (IFRS) का उपयोग किया जाता है।
कुछ महत्वपूर्ण भारतीय लेखांकन मानक (Ind AS) निम्नलिखित हैं:
1. Ind AS 1: वित्तीय विवरणों की प्रस्तुति
2. Ind AS 2: इन्वेंटरी का मूल्यांकन
3. Ind AS 16: संपत्ति, संयंत्र और उपकरण
4. Ind AS 18: राजस्व की पहचान
5. लेखांकन तंत्र (Accounting Mechanics)
(क) डबल एंट्री सिस्टम (Double Entry System)
डबल एंट्री प्रणाली प्रत्येक लेन-देन को दो अलग-अलग खातों में दर्ज करने की प्रक्रिया है:
· डेबिट (Dr.) और क्रेडिट (Cr.) का उपयोग किया जाता है।
· प्रत्येक लेन-देन में एक खाता डेबिट होता है और दूसरा क्रेडिट।
(ख) जर्नल, लेजर और ट्रायल बैलेंस की तैयारी
1. जर्नल (Journal): लेन-देन को कालानुक्रमिक क्रम में दर्ज करने के लिए।
2. लेजर (Ledger): खातों को वर्गीकृत रूप से तैयार करने के लिए।
3. ट्रायल बैलेंस (Trial Balance): सभी खातों का सारांश तैयार करने के लिए।
6. लाभ-हानि खाता और बैलेंस शीट की तैयारी
(क) लाभ-हानि खाता (Profit & Loss Account)
· यह व्यवसाय की आय और व्यय को दर्शाता है।
· शुद्ध लाभ (Net Profit) या शुद्ध हानि (Net Loss) का निर्धारण करता है।
(ख) बैलेंस शीट (Balance Sheet)
· इसमें व्यवसाय की संपत्तियां (Assets) और दायित्व (Liabilities) को दिखाया जाता है।
· बैलेंस शीट की दो प्रमुख पक्ष होते हैं:
1. संपत्ति पक्ष (Assets Side)
2. दायित्व और पूंजी पक्ष (Liabilities & Equity Side)
7. आय की अवधारणा और मापन (Concept of Income and Its Measurement)
· सकल आय (Gross Income): कुल अर्जित राजस्व।
· शुद्ध आय (Net Income): कुल व्यय घटाने के बाद बचा हुआ राजस्व।
· परिकलित आय (Accrued Income): वह आय जो अर्जित की गई है लेकिन अभी प्राप्त नहीं हुई है।
निष्कर्ष
यह अध्ययन बी.कॉम छात्रों को लेखांकन की मूलभूत अवधारणाओं, सिद्धांतों और उनके अनुप्रयोगों को समझने में मदद करता है। लेखांकन प्रणाली व्यवसाय की वित्तीय जानकारी को सुगठित करने और पारदर्शिता बनाए रखने में सहायक होती है।