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Course: लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति
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लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति

Summary and MCQs

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Unit 1: Hindi Summary – लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति

भूमिका

लोक साहित्य भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह जनसामान्य द्वारा निर्मित और संरक्षित साहित्य है, जो मौखिक परंपरा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचारित होता रहा है। लोक साहित्य का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह न केवल समाज की भावनाओं, विश्वासों और परंपराओं को व्यक्त करता है, बल्कि भाषा, संस्कृति, और जीवन दर्शन को भी संरक्षित करता है। भारतीय संस्कृति में जनश्रुति से निर्मित साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, क्योंकि यह समाज की आत्मा को प्रतिबिंबित करता है और उसमें समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों को भी दर्शाता है।

लोक साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता इसकी मौखिकता है। यह लिखित रूप में कम और मौखिक रूप में अधिक सुरक्षित रहता है, जिससे यह विविधता और सजीवता को बनाए रखता है। लोक साहित्य में लोक गीत, लोक कथाएँ, लोक नाटक, पहेलियाँ, मुहावरे, कहावतें, लोकगाथाएँ, और लोक आख्यान सम्मिलित होते हैं।

लोक साहित्य : परिभाषा, क्षेत्र और वर्गीकरण

1. लोक साहित्य की परिभाषा

लोक साहित्य को परिभाषित करने के लिए विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। सामान्य रूप से, इसे इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है:

“लोक साहित्य वह साहित्य है, जो जनता के जीवन, संस्कृति, और सामाजिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है तथा जो मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होता रहता है।”

लोक साहित्य के प्रमुख तत्व:

1.        मौखिक परंपरा: लोक साहित्य लिखित नहीं होता, बल्कि यह मौखिक रूप में संरक्षित और प्रचारित होता है।

2.      सामूहिक स्वामित्व: यह किसी एक व्यक्ति द्वारा रचित नहीं होता, बल्कि समाज द्वारा सृजित और विकसित होता है।

3.      सरलता एवं प्रवाह: इसकी भाषा सरल, सहज और लयबद्ध होती है।

4.      धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध: यह समाज की धार्मिक आस्थाओं, परंपराओं और संस्कृति से जुड़ा होता है।

5.      अनौपचारिक संरचना: लोक साहित्य में कोई निश्चित संरचना नहीं होती, यह स्वाभाविक रूप से विकसित होता है।

6.      प्रेरणादायक एवं शिक्षाप्रद: लोक साहित्य में नैतिकता, ज्ञान, और प्रेरणा के तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

2. लोक साहित्य का क्षेत्र

लोक साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह न केवल साहित्य तक सीमित है, बल्कि समाज के सांस्कृतिक, धार्मिक, और ऐतिहासिक पहलुओं को भी समाहित करता है।

2.1 भौगोलिक क्षेत्र

लोक साहित्य किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समूचे भारत और विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। भारत में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में लोक साहित्य उपलब्ध है, जैसे:

·       हिंदी लोक साहित्य (उत्तर भारत)

·       बंगाली लोक साहित्य (पश्चिम बंगाल)

·       गुजराती लोक साहित्य (गुजरात)

·       तमिल लोक साहित्य (तमिलनाडु)

·       मराठी लोक साहित्य (महाराष्ट्र)

प्रत्येक क्षेत्र के लोक साहित्य में उसकी विशिष्टता होती है, जो उस क्षेत्र की संस्कृति और जीवनशैली को दर्शाती है।

2.2 सांस्कृतिक क्षेत्र

लोक साहित्य केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह संस्कृति के विभिन्न आयामों में व्याप्त होता है, जैसे:

·       धार्मिक लोक साहित्य (भजन, कीर्तन, आरतियाँ)

·       ऐतिहासिक लोक साहित्य (लोकगाथाएँ, वीर गाथाएँ)

·       सामाजिक लोक साहित्य (लोकगीत, लोक नृत्य, लोक नाटक)

·       मनोरंजनात्मक लोक साहित्य (किस्से, कहानियाँ, पहेलियाँ)

3. लोक साहित्य का वर्गीकरण

लोक साहित्य को विभिन्न आधारों पर विभाजित किया जा सकता है। निम्नलिखित प्रमुख वर्गीकरण हैं:

3.1 विषय के आधार पर वर्गीकरण

1.      लोक गीत

·       धार्मिक गीत (भजन, कीर्तन, आरती)

·       विवाह गीत (बन्ना-बन्नी, सोहर)

·       त्योहार गीत (होली गीत, दिवाली गीत)

·       वीर रस के गीत (आल्हा, पावन)

·       कृषक गीत (हलगीत, बिरहा)

2.     लोक कथाएँ

·       परीकथाएँ (राजा-रानी, परी)

·       जानवरों की कहानियाँ (पंचतंत्र, जातक)

·       नैतिक कहानियाँ (अकबर-बीरबल, तेनालीराम)

·       दंतकथाएँ (लोक मान्यताओं पर आधारित)

3.     लोकगाथाएँ

·       ऐतिहासिक लोकगाथाएँ (आल्हा-ऊदल, रानी पद्मिनी)

·       वीर गाथाएँ (पृथ्वीराज चौहान, महाभारत की लोकगाथाएँ)

4.    लोक नाटक और स्वांग

·       रामलीला, रासलीला

·       नौटंकी, स्वांग

·       भवाई, तमाशा, यक्षगान

5.    लोक विधाएँ

·       पहेलियाँ

·       कहावतें और मुहावरे

·       टोटके और मान्यताएँ

3.2 संरचना के आधार पर वर्गीकरण

·       गद्य आधारित लोक साहित्य: लोक कथाएँ, लोकगाथाएँ, पहेलियाँ।

·       पद्य आधारित लोक साहित्य: लोकगीत, लोक नाटक, भजन, कीर्तन।

3.3 प्रचलन के आधार पर वर्गीकरण

·       मौखिक लोक साहित्य: जो केवल बोलचाल में प्रचलित होता है (लोकगीत, कहावतें)।

·       लिखित लोक साहित्य: जिसे बाद में संकलित किया गया (पंचतंत्र, जातक कथाएँ)।

भारतीय संस्कृति में लोक साहित्य का योगदान

भारतीय संस्कृति में लोक साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह हमारी प्राचीन परंपराओं, धार्मिक विश्वासों और नैतिक मूल्यों को संरक्षित रखने का कार्य करता है।

1.        संस्कृति का संवाहक: लोक साहित्य समाज की सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य करता है।

2.      लोक जीवन का दर्पण: यह समाज की भावनाओं, कठिनाइयों, संघर्षों और उपलब्धियों को प्रकट करता है।

3.      भाषा और साहित्य का विकास: लोक साहित्य के माध्यम से भाषाओं का संवर्धन और संरक्षण हुआ है।

4.      सामाजिक सुधार और प्रेरणा: इसमें नैतिक शिक्षा, धार्मिक संदेश, और सामाजिक सुधार की भावना होती है।

5.      लोक संस्कृति को जीवंत बनाए रखना: लोकगीतों, कथाओं और लोकनाट्य के माध्यम से हमारी परंपराएँ जीवंत बनी रहती हैं।

निष्कर्ष

लोक साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज का सांस्कृतिक आधार भी है। यह न केवल भारत की प्राचीन परंपराओं को संरक्षित करता है, बल्कि लोक संस्कृति के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोक साहित्य भाषा और संस्कृति को एक नई पहचान देने का कार्य करता है और समाज की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनता है।

विद्यार्थियों के लिए लोक साहित्य का अध्ययन अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि यह उन्हें समाज की जड़ों से जोड़ता है, संस्कृति की विविधता को समझने में सहायता करता है, और भाषा विज्ञान, समाजशास्त्र तथा इतिहास के अध्ययन में सहायक सिद्ध होता है।

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