हिंदी काव्य (सेमेस्टर-1)
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Teach To India प्रकाशन
हिंदी काव्य
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यह मॉडल पेपर यह सुनिश्चित करता है कि सभी संभावित प्रश्न जो परीक्षा में आ सकते हैं, वे यूनिट में पूरी तरह से शामिल हैं, चाहे वे सीधे हों या अप्रत्यक्ष रूप से।
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इसे अनुभवी प्रोफेसरों द्वारा बहुत सावधानी से तैयार किया गया है, जिन्हें परीक्षा मॉडल पेपर बनाने का व्यापक अनुभव है।
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इस पेपर में विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के आधार पर सभी मुख्य प्रश्न शामिल हैं।
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400 से अधिक प्रश्न और उत्तरों के साथ, यह मॉडल पेपर विषय का पूरा पाठ्यक्रम कवर करता है।
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प्रत्येक यूनिट में दीर्घ उत्तरीय ,लघु उत्तरीय और अति लघु उत्तरीय वाले प्रश्न शामिल हैं ताकि छात्रों को गहन समझ प्राप्त हो सके।
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हमारे प्रश्न इस तरह तैयार किए गए हैं कि प्रत्येक यूनिट को कम से कम और अच्छी तरह चुने हुए प्रश्नों से कवर किया जा सके।
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अनिवार्य आंतरिक परीक्षा के लिए हम 200 एक पंक्ति के प्रश्न-उत्तर प्रदान कर रहे हैं, जो प्रत्येक यूनिट को समान रूप से कवर करते हैं।
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इस मॉडल पेपर में मॉक प्रश्नपत्र / पिछले साल के प्रश्नपत्र भी हल के साथ दिए गए हैं, जिससे छात्रों को परीक्षा के प्रश्नों की गहराई और विस्तार को समझने में मदद मिलती है।
Programme /Class: Certificate |
Year: First |
Semester: First |
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Major Course |
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Course Title: हिंदी काव्य |
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Course outcomes: हिंदी काव्य के प्रतिनिधि कवियों की कविताओं के विषय में जानकारी देना तथा हिंदी काव्य के संक्षिप्त इतिहास की जानकारी देकर विद्यार्थियों को हिंदी कविता के विकास क्रम से अवगत कराना। |
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Credits: 6 |
Compulsory |
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Max. Marks: 25+75 |
Min. Passing Marks: 8+25 |
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Unit |
Topics |
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I |
भारतीय ज्ञान परम्परा के अंतर्गत आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी काव्य का इतिहासः इतिहास लेखन की परंपरा एवं विकासः
भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी साहित्य, हिंदी साहित्य का काल विभाजन, नामकरण एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ।
सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य, रासो साहित्य, नाथ साहित्य और लौकिक साहित्य। भक्ति आंदोलन के उदय के सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण, भक्तिकाल के प्रमुख संप्रदाय और उनका वैचारिक आधार, निर्गुण और सगुण कवि और उनका काव्य। रीति काल की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, नामकरण, प्रवृत्तियाँ एवं परिप्रेक्ष्य। रीतिकालीन साहित्य के प्रमुख भेदः
रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध, रीति मुक्त, प्रमुख कवि और उनका काव्य |
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II |
आधुनिक कालीन काव्य का इतिहासः सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, नामकरण एवं प्रवृत्तियों, 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम और पुनर्जागरण, हिंदी नवजागरण, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग एवं छायावाद की प्रवृत्तियाँ एवं अवदान। उत्तर छायावाद की विविध
वैचारिक प्रवृत्तियाँ, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, समकालीन कविता, प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ। |
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III |
आदिकालीन कविः
विद्यापतिः
(विद्यापति पदावली–संपा. शिव प्रसाद सिंह (पद सं० 15, 23, 26)
गोरखनाथ :
(गोरखबानीः संपादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल गोरखबानी सबदी (संख्या 2,4,7,8,16), पद (राग रामश्री 10,11)
अमीर खुसरोः
(अमीर खुसरो व्यक्तित्व एवं कृतित्वः डॉ० परमानंद पांचाल) कव्वाली– घ (1), गीत–ड. (4), (13), दोहे– च (पृष्ठ 86), 05 दोहे–गोरी सोवे, खुसरो रैन, देख मैं, चकवा चकवी, सेज सूनी।. |
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IV |
भक्तिकालीन निर्गुण कविः
कबीरः
(कबीरदास–संपा, श्यामसुंदर दास)
क. गुरुदेव को अंग -01, 06, 11, 17, 201
ख– बिरह कौ अंग – 04, 10, 12, 20, 33
मलिक मोहम्मद जायसीः (मलिक मोहम्मद जायसी – संपा. आचार्य रामचंद्र शुक्ल)
नागमती वियोग खंड (01 से 06 पद तक) |
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V |
भक्तिकालीन सगुण कविः
सूरदास : (भ्रमरगीत सार–संपा० आचार्य रामचंद्र शुक्ल) (पद संख्या-07, 21, 23, 24, 26)
गोस्वामी तुलसीदास :
(श्रीरामचरित मानस–गोस्वामी तुलसीदास, गीता प्रेस गोरखपुर)
अयोध्या कांड–दोहा संख्या 28 से 41 |
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VI |
रीतिकालीन कविः
केशवदासः (कविप्रिया (प्रिया प्रकाश)- लाला भगवानदीन)
तृतीय प्रभाव-1, 2, 4, 5
बिहारीलाल :
बिहारी रत्नाकर–जगन्नाथ दास रत्नाकर)
प्रारंभ के 10 दोहे
घनानंदः
(घनानंद ग्रंथावली–संपा., विश्वनाथ प्रसाद मिश्र) सुजानहित-1, 4, 7. |
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VII |
आधुनिकालीन कविः भारतेंदु हरिश्चंद्र : मातृभाषा प्रेम पर दोहे, रोकहूँ जो तो अमंगल होय, ब्रज के लता पता मोहि कीजे
जयशंकर प्रसादः कामायनी के श्रद्धा सर्ग के प्रथम दस पद. आँसू के प्रथम पांच पद
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ वर दे वीणा वादिनि वर दे, वह तोड़ती पत्थर, सरोज–स्मृति
सुमित्रानंदन पंतः मौन निमंत्रण, प्रथम रश्मि, यह धरती कितना देती है
महादेवी वर्मा : बीन हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ, फिर विकल हैं प्राण मेरे, यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो। |
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VIII |
अ) छायावादोत्तर कविः
अज्ञेय: नदी के द्वीप, नया कविः आत्म स्वीकार, नंदा देवी-6 (नंदा बीस
तीस – एक मरू दीप)
नागार्जुन: बादल को घिरते देखा है, बहुत दिनों के बाद
धर्मवीर भारती: बोआई का गीत, कविता की मौत (दूसरा सप्तक, संपादक अज्ञेय)
धूमिल: 1 मोचीराम 2 रोटी और संसद
दुष्यंत: 1 हो गयी है पीर पर्वत पिघलनी चाहिए, 2 तो तय था चिरागा हर एक घर के लिए।. |