राजा टोडरमल मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे और उनके प्रशासनिक सुधारों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। वे वित्त मंत्री के रूप में कार्यरत थे और उन्होंने राजस्व प्रणाली को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कर नीति भारतीय प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण मानी जाती है, जिसने न केवल तत्कालीन कृषि अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित किया बल्कि भविष्य की कर प्रणालियों की नींव भी रखी।
1. ज़ब्ती प्रणाली (Ain-e-Dahsala)
· इस प्रणाली के तहत प्रत्येक भूमि की उपज को मापा जाता था और औसत उत्पादन के आधार पर कर निर्धारित किया जाता था।
· कराधान की प्रक्रिया को पारदर्शी और संगठित बनाया गया, जिससे किसानों को कर का अनुमान लगाने में सुविधा हुई।
· भूमि की उर्वरता को ध्यान में रखकर कर की दरें तय की गईं।
2. श्रेणीबद्ध भूमि कर व्यवस्था
· भूमि को उपजाऊ, औसत, और कम उपजाऊ तीन श्रेणियों में बांटा गया था।
· हर श्रेणी के लिए अलग-अलग कर की दरें निर्धारित की गईं।
3. राजस्व संग्रहण की नियमितता
· किसान वार्षिक आधार पर कर चुकाते थे, जिससे सरकार को निश्चित आय होती थी।
· अधिक पारदर्शिता और ईमानदारी लाने के लिए स्थानीय अधिकारियों और पटवारियों की नियुक्ति की गई।
4. किसानों की सुरक्षा एवं अधिकार
· किसानों को अत्यधिक कराधान से बचाने के लिए कर की दरें नियंत्रित की गईं।
· प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि के समय कर में रियायत दी जाती थी।
5. राजस्व रिकॉर्ड प्रबंधन
· भूमि के स्वामित्व और राजस्व संग्रहण की जानकारी के लिए सटीक दस्तावेज़ तैयार किए गए।
· “पट्टा” और “क़बूलियत” दस्तावेज़ों के माध्यम से किसान और सरकार के बीच अनुबंध किया जाता था।
राजा टोडरमल की कर नीति अकबर के शासनकाल में अत्यधिक प्रभावी रही और आगे चलकर ब्रिटिश प्रशासन द्वारा अपनाई गई स्थायी बंदोबस्त नीति के लिए एक आधार बनी।
आयकर अधिनियम के अनुसार, असेसी वह व्यक्ति होता है जो किसी निर्धारण वर्ष में आयकर अधिनियम के तहत कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है।
आयकर अधिनियम की धारा 2(31) के अनुसार, “व्यक्ति” में निम्नलिखित श्रेणियाँ आती हैं:
· व्यक्ति (Individual) – कोई भी व्यक्ति जो स्वयं करदाता हो।
· हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) – एक पारिवारिक इकाई जो संयुक्त परिवार के रूप में कार्य करती है।
· कंपनी (Company) – जो भारतीय या विदेशी कंपनी के रूप में पंजीकृत हो।
· संस्था (Association of Persons – AOP) – दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा मिलकर बनाए गए संगठन।
· बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स (BOI) – दो या अधिक व्यक्तियों का समूह जो व्यवसाय या आय अर्जित करने के लिए एक साथ आते हैं।
· कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति (Artificial Juridical Person) – अन्य कानूनी संस्थाएँ जैसे मंदिर, ट्रस्ट, विश्वविद्यालय, आदि।
आयकर अधिनियम के अनुसार, आय में वे सभी स्त्रोत शामिल होते हैं जिनसे धन प्राप्त होता है, जैसे वेतन, संपत्ति से आय, व्यापार या व्यवसाय से लाभ, पूंजीगत लाभ आदि।
यह कर योग्य आय का वह भाग होता है, जो सभी स्रोतों से अर्जित होता है और उपलब्ध कटौतियों को घटाने के बाद बचता है।
जिस वित्तीय वर्ष में आयकर विभाग द्वारा कर निर्धारण किया जाता है, उसे निर्धारण वर्ष कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि 2023-24 में आय अर्जित की गई है, तो 2024-25 निर्धारण वर्ष होगा।
वह वित्तीय वर्ष जिसमें आय अर्जित की जाती है, उसे पूर्ववर्ती वर्ष कहते हैं।
आयकर अधिनियम की धारा 10(1) के अनुसार, कृषि से होने वाली आय को करमुक्त माना जाता है। इसमें निम्नलिखित स्रोत शामिल हैं:
1. भूमि से प्राप्त आय (फसल उत्पादन से)
2. कृषि भूमि से किराया या राजस्व
3. कृषि से जुड़े व्यावसायिक उत्पाद जैसे चाय, कॉफी, गन्ना आदि से होने वाली आय
· कृषि कार्य भारत में स्थित भूमि पर किया जाना चाहिए।
· भूमि से प्राप्त आय का उपयोग प्रत्यक्ष कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।
· यदि कोई व्यक्ति कृषि उत्पाद को संसाधित करके अतिरिक्त लाभ कमाता है, तो यह कृषि आय नहीं मानी जाएगी।
आयकर अधिनियम के तहत, किसी व्यक्ति की कर देयता उसकी निवासीय स्थिति पर निर्भर करती है। व्यक्ति निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
1. अधिवासी (Resident)
· यदि कोई व्यक्ति भारत में पिछले वर्ष में 182 दिन या अधिक समय तक रहा है।
· पिछले चार वर्षों में 365 दिनों से अधिक समय बिताने और पिछले वर्ष में 60 दिनों से अधिक रहने पर भी व्यक्ति अधिवासी माना जाता है।
· अधिवासी की संपूर्ण विश्वव्यापी आय पर कर लगता है।
2. गैर-अधिवासी (Non-Resident)
· यदि कोई व्यक्ति उपरोक्त शर्तों को पूरा नहीं करता है, तो वह गैर-अधिवासी माना जाता है।
· गैर-अधिवासी केवल भारत में अर्जित आय पर कर देता है।
पूंजीगत और राजस्व की परिभाषा
1. पूंजीगत प्राप्ति (Capital Receipt) – यह एक गैर-आवर्ती आय होती है, जैसे संपत्ति की बिक्री से प्राप्त धन।
2. राजस्व प्राप्ति (Revenue Receipt) – यह नियमित रूप से प्राप्त होने वाली आय होती है, जैसे वेतन या व्यापार से लाभ।
कुछ प्रकार की आय कराधान से मुक्त होती हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
1. कृषि आय
2. भागीदारी फर्म से प्राप्त लाभांश
3. पीएफ (Provident Fund) से निकासी
4. एलआईसी से प्राप्त राशि
5. शिक्षा व छात्रवृत्ति पर प्राप्त आय
आयकर अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को समझने से छात्रों को कर प्रणाली की मूलभूत जानकारी प्राप्त होती है। राजा टोडरमल की कर नीति से लेकर आधुनिक आयकर अधिनियम तक, कर प्रणाली के नियम और अवधारणाएँ बदलती रही हैं, लेकिन उनका मूल उद्देश्य पारदर्शिता और करदाताओं की सुविधा सुनिश्चित करना रहा है।