भारतीय समाजशास्त्र के अध्ययन में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण विचारक हुए हैं, जिन्होंने न केवल भारतीय समाज को समझने के लिए स्वदेशी पद्धतियों को अपनाया बल्कि पश्चिमी समाजशास्त्र के सैद्धांतिक दृष्टिकोण को भी भारतीय संदर्भ में परखा। इनमें गोविंद सदाशिव घुर्ये (G. S. Ghurye) और दिनेशचंद्र नंदी मजूमदार (D. N. Majumdar) का नाम प्रमुख है।
G. S. Ghurye भारतीय समाजशास्त्र के पितामह माने जाते हैं। उन्होंने जाति व्यवस्था, साधु-संस्कृति, तथा ग्रामीण-शहरी संबंधों पर गहन अध्ययन किया। दूसरी ओर, D. N. Majumdar ने जाति और जनजातीय समाज की समस्याओं पर व्यापक शोध किया और आदिवासी समाज के एकीकरण पर कार्य किया।
इस पाठ में, हम इन दोनों समाजशास्त्रियों के योगदान को विस्तार से समझेंगे और यह जानेंगे कि इन्होंने भारतीय समाज के अध्ययन के लिए कौन-कौन सी सैद्धांतिक और पद्धतिगत विधियाँ अपनाईं।
G. S. Ghurye (1893-1983) भारतीय समाजशास्त्र के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने भारतीय समाज की संरचना, संस्कृति और परिवर्तनशीलता पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने भारतीय समाज के तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं—जाति, भारतीय साधु, और ग्रामीण-शहरी समुदायों—पर व्यापक अध्ययन किया।
घुर्ये ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Caste and Race in India” में जाति व्यवस्था को एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से देखा। उन्होंने जाति को न केवल एक सामाजिक संस्था माना, बल्कि इसे भारतीय समाज की रीढ़ भी बताया। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है:
1. आवासीय प्रतिबंध (Segmental Division of Society): जाति एक बंद वर्ग प्रणाली है, जिसमें जन्म से ही व्यक्ति का स्थान तय हो जाता है।
2. विवाह नियम (Endogamy): जाति के भीतर विवाह को अनिवार्य माना जाता है, जिससे जातियों की शुद्धता बनी रहती है।
3. पवित्रता और प्रदूषण (Purity and Pollution): उच्च जातियाँ शुद्धता बनाए रखने के लिए कुछ कार्यों से बचती हैं, जबकि निम्न जातियों को अशुद्ध माना जाता है।
4. पेशागत विभाजन (Occupation-based Division): प्रत्येक जाति का एक निश्चित परंपरागत पेशा होता है।
5. सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंध: प्रत्येक जाति की धार्मिक परंपराएँ अलग-अलग होती हैं।
घुर्ये ने भारतीय साधुओं का अध्ययन किया और पाया कि यह समूह भारतीय समाज में एक अनूठी भूमिका निभाता है। उन्होंने साधुओं को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया:
1. योगी (Yogis) – वे जो योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की खोज करते हैं।
2. तांत्रिक साधु (Tantric Sadhus) – वे जो तंत्र साधना और गूढ़ विद्या में विश्वास रखते हैं।
3. वैष्णव साधु (Vaishnava Sadhus) – भगवान विष्णु की भक्ति में संलग्न साधु।
4. शैव साधु (Shaiva Sadhus) – भगवान शिव के उपासक जो कड़ी तपस्या करते हैं।
5. अघोरी साधु (Aghori Sadhus) – जो परंपरागत सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं के विपरीत चलते हैं।
घुर्ये के अनुसार, साधु और संन्यासी केवल धार्मिक नेता नहीं हैं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को भी प्रभावित करते हैं।
घुर्ये ने ग्रामीण और शहरी समुदायों के बीच संबंधों का अध्ययन किया और पाया कि ये दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं:
1. ग्रामीण समाज की विशेषताएँ:
· जाति आधारित संरचना
· परंपरागत मूल्य और विश्वास
· कृषि पर निर्भरता
· सामुदायिक जीवन शैली
2. शहरी समाज की विशेषताएँ:
· जातिगत सीमाएँ शिथिल
· औद्योगिकरण और आधुनिकता का प्रभाव
· व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि
· गतिशील सामाजिक संबंध
घुर्ये ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय समाज में परिवर्तन हो रहा है, लेकिन परंपराएँ अभी भी मजबूत बनी हुई हैं।
D. N. Majumdar (1903-1960) एक प्रमुख भारतीय मानवशास्त्री और समाजशास्त्री थे। उन्होंने जाति, जनजातियों, और जनजातीय एकीकरण पर विशेष ध्यान दिया।
D. N. Majumdar ने जाति व्यवस्था को एक गतिशील सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखा। उन्होंने जाति व्यवस्था के निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया:
1. जाति और वर्ग का अंतर – उन्होंने बताया कि जाति जन्म आधारित होती है जबकि वर्ग आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर आधारित होता है।
2. जाति गतिशीलता (Caste Mobility) – भारत में जातियों की कठोर संरचना के बावजूद सामाजिक गतिशीलता संभव है, विशेषकर आधुनिक शिक्षा और आर्थिक बदलावों के कारण।
3. जातिगत राजनीति (Caste Politics) – आधुनिक भारत में जाति केवल सामाजिक व्यवस्था नहीं बल्कि राजनीतिक सत्ता का भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू बन गई है।
D. N. Majumdar ने भारत की जनजातियों पर गहन शोध किया और पाया कि जनजातियाँ अब धीरे-धीरे मुख्यधारा के समाज में एकीकृत हो रही हैं। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया तीन चरणों में होती है:
1. संस्कृतिकरण (Sanskritization) – जब जनजातियाँ हिंदू रीति-रिवाज और परंपराओं को अपनाने लगती हैं।
2. आधुनिकीकरण (Modernization) – जब जनजातियाँ शिक्षा, रोजगार और औद्योगिकीकरण के कारण आधुनिक समाज से जुड़ती हैं।
3. राजनीतिकीकरण (Politicization) – जब जनजातियाँ अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर राजनीति में भाग लेती हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि जनजातीय समाज की कई समस्याएँ हैं, जैसे:
· भूमि का अधिग्रहण और विस्थापन
· आर्थिक पिछड़ापन
· सामाजिक भेदभाव
D. N. Majumdar ने सुझाव दिया कि सरकार को इन समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हुए विकास की योजनाएँ बनानी चाहिए।
G. S. Ghurye और D. N. Majumdar भारतीय समाजशास्त्र के दो प्रमुख स्तंभ हैं। घुर्ये ने जाति, साधुओं और ग्रामीण-शहरी समुदायों पर कार्य किया, जबकि मजूमदार ने जाति और जनजातीय एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया।
इन दोनों समाजशास्त्रियों का योगदान भारतीय समाज की जटिलताओं को समझने में महत्त्वपूर्ण रहा है। इनकी संकल्पनाएँ और अध्ययन आज भी समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।