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Course: कॉर्पोरेट लेखांकन (सेमेस्टर-5)
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कॉर्पोरेट लेखांकन (सेमेस्टर-5)

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यूनिट-1: कॉर्पोरेट लेखांकन

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- शेयरों के प्रकार और विशेषताएँ समझाइए।

उत्तर:- शेयरों के प्रकार और विशेषताएँ

शेयर (Share) किसी कंपनी की कुल पूंजी का वह छोटा हिस्सा होता है, जो निवेशकों द्वारा खरीदा जा सकता है। जब कोई व्यक्ति किसी कंपनी के शेयर खरीदता है, तो वह उस कंपनी का आंशिक मालिक बन जाता है और उसे कंपनी के लाभांश तथा अन्य अधिकार प्राप्त होते हैं। शेयरधारक कंपनी के निर्णयों में भाग लेने का अधिकार रखता है और उसे लाभांश तथा अन्य लाभ मिलते हैं, लेकिन वह कंपनी के घाटे का भी हिस्सेदार होता है।

कंपनी की पूंजी को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है:

 प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) और सामान्य शेयर (Equity Shares) इन दोनों प्रकार के शेयरों का महत्व, विशेषताएँ और उपयोग अलगअलग होते हैं। नीचे विभिन्न प्रकार के शेयरों और उनकी विशेषताओं को विस्तार से समझाया गया है।

1. सामान्य शेयर (Equity Shares)

सामान्य शेयर, जिन्हें इक्विटी शेयर भी कहा जाता है, किसी कंपनी के मूल पूंजी का वह हिस्सा होते हैं, जिनका स्वामित्व सामान्य शेयरधारकों के पास होता है। ये शेयर कंपनी के मालिकाना हक का प्रतिनिधित्व करते हैं और इन्हें खरीदने वाले लोग कंपनी के असली मालिक माने जाते हैं।

सामान्य शेयरों की विशेषताएँ:

वोटिंग अधिकार (Voting Rights): सामान्य शेयरधारकों को कंपनी की वार्षिक आम बैठक (AGM) में भाग लेने और वोट देने का अधिकार होता है। इसके माध्यम से वे कंपनी के निदेशकों के चुनाव, नीतियों और अन्य निर्णयों में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

1.     लाभांश (Dividend): सामान्य शेयरधारकों को लाभांश दिया जाता है, जो कंपनी के लाभ का एक हिस्सा होता है। लाभांश की दर पहले से निश्चित नहीं होती है; यह कंपनी के लाभ और निदेशक मंडल के निर्णय पर निर्भर करता है।

2.    मूल्य अस्थिरता (Price Volatility): सामान्य शेयरों की बाजार में कीमत अन्य शेयरों की तुलना में अधिक अस्थिर होती है। इसकी कीमत बाजार की स्थिति, कंपनी के प्रदर्शन, और अन्य आर्थिक कारकों पर निर्भर करती है।

3.   अधिकार (Rights Issue): यदि कंपनी अतिरिक्त पूंजी जुटाने के लिए नए शेयर जारी करती है, तो सामान्य शेयरधारकों को पहले नए शेयर खरीदने का अवसर मिलता है। इसे राइट्स इश्यू कहा जाता है।

4.   लाभांश प्राप्ति का अंतिम अधिकार: यदि कंपनी को नुकसान होता है या कंपनी बंद हो जाती है, तो सामान्य शेयरधारकों को अपनी पूंजी का भुगतान सबसे अंत में किया जाता है, जब सभी देनदारियों का भुगतान हो चुका हो।

सामान्य शेयरों का महत्व:

सामान्य शेयर कंपनी के लिए दीर्घकालिक वित्तीय संसाधन प्रदान करते हैं, जिनका उपयोग विकास और विस्तार के लिए किया जा सकता है।

निवेशकों के लिए, सामान्य शेयर एक लाभकारी निवेश होते हैं, क्योंकि इन पर दीर्घकालिक लाभांश और पूंजी वृद्धि की संभावना होती है।

कंपनी के प्रदर्शन में सुधार होने पर सामान्य शेयरधारकों के शेयरों का मूल्य भी बढ़ता है, जिससे उन्हें उच्च लाभ प्राप्त हो सकता है।

2. प्राथमिकता शेयर (Preference Shares)

प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश और परिसंपत्तियों पर प्राथमिकता प्राप्त होती है। इन शेयरों के धारकों को साधारण शेयरधारकों से पहले लाभांश प्राप्त होता है। हालांकि, इन शेयरों में वोटिंग अधिकार नहीं होते हैं, या यदि होते भी हैं तो बहुत सीमित होते हैं।

प्राथमिकता शेयरों की विशेषताएँ:

1.     निश्चित लाभांश (Fixed Dividend): प्राथमिकता शेयरधारकों को एक निश्चित दर पर लाभांश प्राप्त होता है। भले ही कंपनी को लाभ हो या नहीं, कंपनी को प्राथमिकता शेयरधारकों को निश्चित लाभांश देना होता है।

2.    लाभांश प्राथमिकता (Priority in Dividend): प्राथमिकता शेयरधारकों को लाभांश का भुगतान सामान्य शेयरधारकों से पहले किया जाता है। यदि कंपनी को लाभ हो तो सबसे पहले प्राथमिकता शेयरधारकों को लाभांश का भुगतान किया जाता है।

3.   वोटिंग अधिकार (Voting Rights): सामान्यतया प्राथमिकता शेयरधारकों को वोटिंग अधिकार नहीं होते हैं। उन्हें केवल वित्तीय लाभ प्राप्त होता है, लेकिन प्रबंधन में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होता है। हालांकि कुछ मामलों में, यदि लाभांश भुगतान में देरी हो जाती है, तो उन्हें वोटिंग अधिकार दिया जा सकता है।

4.   पुनः मोचन (Redemption): कुछ प्राथमिकता शेयर पुनः मोचनीय होते हैं, यानि कंपनी एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें पुनः खरीद सकती है। इसे रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर्स कहा जाता है।

5.   परिसंपत्ति का दावा (Claim on Assets): यदि कंपनी बंद हो जाती है, तो प्राथमिकता शेयरधारकों को सामान्य शेयरधारकों से पहले परिसंपत्तियों पर दावा प्राप्त होता है। हालांकि, उनके बाद कंपनी के कर्जों का भुगतान किया जाता है।

प्राथमिकता शेयरों का महत्व:

प्राथमिकता शेयर कंपनी के लिए स्थायी पूंजी जुटाने में सहायक होते हैं और इनमें ब्याज का कोई भार नहीं होता।

कंपनी के लिए यह फायदेमंद होता है क्योंकि इससे शेयरधारकों को अपेक्षाकृत निश्चित भुगतान दिया जा सकता है और कंपनी की वित्तीय संरचना स्थिर बनी रहती है।

प्राथमिकता शेयरधारकों के लिए यह सुरक्षित निवेश होता है, क्योंकि उन्हें लाभांश और परिसंपत्तियों में प्राथमिकता मिलती है।

3. अन्य विशेष प्रकार के शेयर

i. संचयी प्राथमिकता शेयर (Cumulative Preference Shares):

इन शेयरों में यदि किसी वर्ष में लाभांश का भुगतान नहीं हो पाता है, तो उसे अगले वर्षों में जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार, अगले वर्षों में कंपनी लाभ अर्जित करती है तो उसे पिछले वर्षों का लाभांश भी संचयी रूप से प्राथमिकता शेयरधारकों को देना पड़ता है।

ii. गैरसंचयी प्राथमिकता शेयर (Non-Cumulative Preference Shares):

इनमें यदि किसी वर्ष में लाभांश का भुगतान नहीं किया जा सका, तो उसे अगले वर्ष के लाभांश में शामिल नहीं किया जाता है। अर्थात् गैरसंचयी प्राथमिकता शेयरधारकों को केवल उसी वर्ष का लाभांश दिया जाता है, जिसमें कंपनी को लाभ हुआ हो।

iii. परिवर्तनीय प्राथमिकता शेयर (Convertible Preference Shares):

ये शेयर एक निश्चित अवधि के बाद सामान्य शेयरों में बदले जा सकते हैं। इस प्रकार के शेयरधारक अपने शेयरों को कंपनी की निर्णय प्रक्रिया में शामिल होने के लिए सामान्य शेयरों में बदल सकते हैं।

iv. गैरपरिवर्तनीय प्राथमिकता शेयर (Non-Convertible Preference Shares):

इनमें परिवर्तन की सुविधा नहीं होती है और ये हमेशा प्राथमिकता शेयर ही बने रहते हैं। इन्हें सामान्य शेयरों में बदला नहीं जा सकता।

v. सहभागी प्राथमिकता शेयर (Participating Preference Shares):

ये प्राथमिकता शेयरधारकों को निश्चित लाभांश प्राप्त करने के बाद कंपनी के शेष लाभ में भी हिस्सा लेने का अधिकार प्रदान करते हैं। ऐसे शेयरधारक सामान्य शेयरधारकों की तरह अतिरिक्त लाभांश का भी लाभ उठा सकते हैं।

vi. गैरसहभागी प्राथमिकता शेयर (Non-Participating Preference Shares):

इनमें प्राथमिकता शेयरधारकों को केवल निश्चित लाभांश का ही अधिकार होता है और वे कंपनी के अतिरिक्त लाभ में हिस्सा नहीं लेते।

शेयरों का महत्व और उपयोग

शेयर किसी कंपनी की वित्तीय संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। शेयरों के माध्यम से कंपनी अपनी पूंजी जुटा सकती है, जिससे उसे विभिन्न योजनाओं में निवेश करने का अवसर मिलता है। शेयरधारक कंपनी के सहमालिक होते हैं और कंपनी की प्रगति और समृद्धि में हिस्सेदार बनते हैं। नीचे शेयरों के महत्व और उपयोग को समझाया गया है:

1.     पूंजी जुटाना (Raising Capital): शेयर कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं, जिसके माध्यम से वह निवेशकों से पूंजी जुटा सकती है। यह पूंजी कंपनी के विकास, विस्तार और परियोजनाओं में निवेश के लिए उपयोग की जा सकती है।

2.    अधिकार प्रदान करना (Ownership Rights): शेयरधारकों को कंपनी में स्वामित्व का हिस्सा प्राप्त होता है, जिससे उन्हें कंपनी के निर्णयों में भाग लेने का अधिकार मिलता है।

3.   वित्तीय स्थायित्व (Financial Stability): शेयर कंपनी की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने में सहायक होते हैं। प्राथमिकता शेयरधारकों को निश्चित लाभांश प्राप्त होता है, जिससे कंपनी की पूंजी संरचना स्थिर बनी रहती है।

4.   अतिरिक्त लाभांश का अवसर (Opportunity for Additional Dividend): सामान्य शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश में अतिरिक्त हिस्सेदारी का अवसर मिलता है, जो उन्हें आकर्षित करता है।

5.   बाजार में स्थिरता (Market Stability): शेयरों की बिक्री और खरीद से बाजार में स्थिरता बनी रहती है, जिससे कंपनी के शेयर मूल्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस प्रकार, शेयरों के विभिन्न प्रकार और उनकी विशेषताएँ कंपनी की वित्तीय संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राथमिकता शेयर और सामान्य शेयर दोनों का अपनाअपना महत्व है, और वे कंपनी के लिए पूंजी जुटाने में सहायक होते हैं। शेयरधारक कंपनी के विकास में साझीदार होते हैं और कंपनी के लाभांश तथा मूल्य में वृद्धि का लाभ उठाते हैं।

 

प्रश्न 2:- प्राथमिकता शेयरों और साधारण शेयरों में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर में अंतर

किसी भी कंपनी की पूंजी जुटाने की प्रक्रिया में शेयरों का विशेष महत्व होता है। ये शेयर कंपनी को पूंजी प्रदान करते हैं, जिससे वह अपने व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा कर सकती है। कंपनी में दो प्रमुख प्रकार के शेयर होते हैं: प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) और साधारण शेयर (Equity Shares) इन दोनों प्रकार के शेयरों का उद्देश्य कंपनी के लिए पूंजी जुटाना होता है, लेकिन इनके धारकों के अधिकार, लाभांश वितरण और अन्य लाभों में कई अंतर होते हैं। नीचे प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर के बीच के मुख्य अंतर को विस्तार से समझाया गया है:

1. प्राथमिकता शेयर (Preference Shares)

प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश और परिसंपत्तियों पर प्राथमिकता प्राप्त होती है। इसका अर्थ है कि उन्हें साधारण शेयरधारकों के मुकाबले पहले लाभांश प्राप्त होता है और कंपनी के परिसमापन की स्थिति में उन्हें पहले भुगतान किया जाता है। इन शेयरों का लाभांश एक निश्चित दर पर निर्धारित होता है।

प्राथमिकता शेयरों की विशेषताएँ:

1.     लाभांश में प्राथमिकता: प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के लाभ का एक निश्चित भाग लाभांश के रूप में पहले मिलता है। लाभांश की यह दर पूर्वनिर्धारित होती है और यह साधारण शेयरधारकों के लाभांश से पहले दिया जाता है।

2.    मतदान अधिकार में सीमितता: आमतौर पर प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के निर्णयों में वोटिंग अधिकार नहीं मिलता है। उन्हें कंपनी के प्रबंधन में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होता, सिवाय विशेष स्थितियों के, जैसे कि जब लाभांश का भुगतान लंबित हो।

3.   परिसंपत्ति पर दावा: कंपनी के दिवाला निकलने या परिसमापन की स्थिति में, प्राथमिकता शेयरधारकों का कंपनी की संपत्तियों पर साधारण शेयरधारकों से पहले दावा होता है। इसका अर्थ है कि उन्हें पहले भुगतान किया जाएगा और उसके बाद ही साधारण शेयरधारकों को कोई भुगतान किया जाएगा।

4.   निश्चित लाभांश: प्राथमिकता शेयरधारकों को एक निश्चित दर पर लाभांश का भुगतान किया जाता है, जो कंपनी के लाभहानि से सीधे प्रभावित नहीं होता।

5.   रिडीमेबल प्राथमिकता शेयर: कुछ प्राथमिकता शेयर रिडीमेबल होते हैं, यानि कि एक निर्धारित अवधि के बाद कंपनी इन शेयरों को पुनः खरीद सकती है। यह सुविधा साधारण शेयरों में उपलब्ध नहीं होती है।

प्राथमिकता शेयरों के प्रकार:

1.     संचयी प्राथमिकता शेयर (Cumulative Preference Shares): इन शेयरों में अगर किसी वर्ष लाभांश का भुगतान नहीं हो पाता है, तो उसे अगले वर्षों में जोड़ा जाता है और तब तक भुगतान किया जाता है जब तक कि सभी पिछले वर्षों का लाभांश भुगतान नहीं हो जाता।

2.    गैरसंचयी प्राथमिकता शेयर (Non-Cumulative Preference Shares): इनमें अगर किसी वर्ष का लाभांश भुगतान नहीं हो पाता है, तो उसे अगले वर्ष के लाभांश में शामिल नहीं किया जाता है। यानि लाभांश भुगतान उस वर्ष के लाभ पर निर्भर करता है।

3.   परिवर्तनीय प्राथमिकता शेयर (Convertible Preference Shares): ये शेयर एक निर्धारित अवधि के बाद साधारण शेयरों में परिवर्तित किए जा सकते हैं। इससे प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के साधारण शेयरधारक बनने का मौका मिलता है।

4.   गैरपरिवर्तनीय प्राथमिकता शेयर (Non-Convertible Preference Shares): ये शेयर साधारण शेयरों में परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं और हमेशा प्राथमिकता शेयर ही बने रहते हैं।

5.   सहभागी प्राथमिकता शेयर (Participating Preference Shares): इन शेयरधारकों को निश्चित लाभांश प्राप्त करने के बाद कंपनी के अतिरिक्त लाभ में भी हिस्सा मिलता है।

6.   गैरसहभागी प्राथमिकता शेयर (Non-Participating Preference Shares): इनमें शेयरधारकों को केवल निश्चित लाभांश का ही अधिकार होता है और वे कंपनी के अतिरिक्त लाभ में हिस्सा नहीं ले सकते।

2. साधारण शेयर (Equity Shares)

साधारण शेयर किसी कंपनी के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन शेयरधारकों को कंपनी के निर्णयों में मतदान का अधिकार होता है और वे कंपनी के असली मालिक माने जाते हैं। हालांकि, साधारण शेयरधारकों को लाभांश में प्राथमिकता नहीं मिलती और इनका लाभांश कंपनी के लाभ पर निर्भर करता है।

साधारण शेयरों की विशेषताएँ:

1.     मतदान का अधिकार: साधारण शेयरधारकों को कंपनी की आम बैठकों में मतदान का अधिकार प्राप्त होता है। ये मतदान निदेशक मंडल के चुनाव, प्रमुख नीतियों में बदलाव और कंपनी के विभिन्न निर्णयों में होता है।

2.    लाभांश प्राप्ति का अनिश्चितता: साधारण शेयरधारकों को निश्चित लाभांश नहीं मिलता है। लाभांश का वितरण कंपनी के लाभ और निदेशक मंडल के निर्णय पर निर्भर करता है। यदि कंपनी को लाभ होता है तो साधारण शेयरधारकों को लाभांश मिलता है, अन्यथा नहीं।

3.   उच्च जोखिम: साधारण शेयरधारकों का लाभ कंपनी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। बाजार में शेयर के मूल्य में उतारचढ़ाव उनके निवेश को प्रभावित करता है, जिससे जोखिम बढ़ता है।

4.   मूल्य में वृद्धि की संभावना: यदि कंपनी का प्रदर्शन अच्छा होता है, तो साधारण शेयरों का बाजार मूल्य भी बढ़ सकता है, जिससे शेयरधारकों को पूंजीगत लाभ मिलता है।

5.   परिसमापन में अंतिम दावा: कंपनी के दिवाला निकलने की स्थिति में साधारण शेयरधारकों का दावा सबसे अंत में होता है। पहले कंपनी की देनदारियों और प्राथमिकता शेयरधारकों का भुगतान किया जाता है, उसके बाद ही साधारण शेयरधारकों को कुछ मिल सकता है।

साधारण शेयरों के प्रकार:

1.     वोटिंग शेयर (Voting Shares): ये साधारण शेयर होते हैं जिनमें शेयरधारकों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है, जिससे वे कंपनी के निर्णयों में भाग ले सकते हैं।

2.    गैरवोटिंग शेयर (Non-Voting Shares): इन शेयरों में साधारण शेयरधारकों को मतदान का अधिकार नहीं होता है, लेकिन उन्हें लाभांश का अधिकार होता है। इस प्रकार के शेयर आमतौर पर कम देखे जाते हैं।

प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर के बीच मुख्य अंतर

अंतर के बिंदु

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares)

साधारण शेयर (Equity Shares)

लाभांश वितरण

निश्चित लाभांश प्राप्त होता है

लाभांश की दर निश्चित नहीं होती

वोटिंग अधिकार

आमतौर पर वोटिंग अधिकार नहीं होते

पूर्ण वोटिंग अधिकार होते हैं

परिसंपत्ति पर दावा

परिसमापन के समय प्राथमिकता प्राप्त होती है

परिसमापन के समय सबसे अंत में दावा होता है

रिडीमेबल विशेषता

पुनः खरीदने की सुविधा होती है (कुछ मामलों में)

ऐसी कोई सुविधा नहीं होती

मूल्य अस्थिरता

अपेक्षाकृत स्थिर

बाजार मूल्य में अधिक अस्थिरता होती है

निवेश का प्रकार

सुरक्षित निवेश विकल्प

अधिक जोखिमयुक्त निवेश विकल्प

परिवर्तन क्षमता

कुछ प्राथमिकता शेयर साधारण शेयरों में परिवर्तित हो सकते हैं

परिवर्तनीय नहीं होते

अतिरिक्त लाभांश

अतिरिक्त लाभांश का हिस्सा नहीं मिलता

कंपनी के लाभ के अनुसार अतिरिक्त लाभांश मिल सकता है

मालिकाना हक

आंशिक स्वामित्व, लेकिन नियंत्रण में सीमित

कंपनी का असली मालिकाना हक

निष्कर्ष

प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर, दोनों ही किसी कंपनी की पूंजी संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और इनका उद्देश्य कंपनी के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना होता है। प्राथमिकता शेयरधारकों को निवेश की सुरक्षा और निश्चित लाभांश की सुविधा मिलती है, जिससे उनके निवेश का जोखिम कम होता है। साधारण शेयरधारकों को अधिक जोखिम के साथसाथ कंपनी के लाभ में हिस्सेदारी और मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।

प्राथमिकता शेयर उन निवेशकों के लिए उपयुक्त होते हैं, जो कम जोखिम के साथ निवेश करना चाहते हैं और नियमित लाभांश की अपेक्षा रखते हैं। दूसरी ओर, साधारण शेयर उन निवेशकों के लिए होते हैं जो उच्च जोखिम उठा सकते हैं और कंपनी के विकास से जुड़े लाभों में हिस्सा लेना चाहते हैं। कंपनी के दृष्टिकोण से, दोनों प्रकार के शेयर वित्तीय स्थायित्व को बनाए रखने और विस्तार के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने में सहायक होते हैं।

 

प्रश्न 3:- शेयर पूंजी क्या है? इसके प्रकार और महत्व को समझाइए।

उत्तर:- शेयर पूंजी का परिचय

शेयर पूंजी (Share Capital) किसी भी कंपनी की वित्तीय संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह वह राशि होती है जो कंपनी अपने व्यवसाय को चलाने, विस्तार करने और अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जुटाती है। यह पूंजी शेयरधारकों द्वारा कंपनी में निवेश के रूप में प्रदान की जाती है, जिसके बदले में कंपनी उन्हें शेयर जारी करती है।

शेयर पूंजी किसी कंपनी के लिए एक दीर्घकालिक वित्तीय संसाधन होती है, जिसे कंपनी समय के साथ वापस करने के लिए बाध्य नहीं होती है। यह पूंजी विभिन्न प्रकारों में विभाजित की जाती है, जैसे कि अधिकृत पूंजी, निर्गमित पूंजी, अंशदायी पूंजी, चुकता पूंजी आदि। नीचे हम शेयर पूंजी के प्रकारों और उनके महत्व को विस्तार से समझेंगे।

शेयर पूंजी के प्रकार

1. अधिकृत पूंजी (Authorized Capital)

अधिकृत पूंजी वह अधिकतम राशि होती है जिसे कंपनी कानून के तहत शेयर पूंजी के रूप में जारी कर सकती है। इसे पंजीकृत पूंजी (Registered Capital) भी कहा जाता है। कंपनी की प्रारंभिक स्थिति में अधिकृत पूंजी का निर्धारण किया जाता है और यह कंपनी के अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) में उल्लिखित होती है।

महत्व: अधिकृत पूंजी का महत्व यह है कि यह कंपनी की पूंजी जुटाने की क्षमता को दर्शाता है। इससे यह पता चलता है कि कंपनी कानूनी तौर पर कितने अधिकतम शेयर जारी कर सकती है। अगर कंपनी को भविष्य में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह अधिकृत पूंजी को बढ़ाने के लिए कंपनी कानून के प्रावधानों के तहत अनुमति ले सकती है।

2. निर्गमित पूंजी (Issued Capital)

निर्गमित पूंजी उस राशि को कहते हैं जो कंपनी द्वारा वास्तव में शेयरधारकों को जारी की जाती है। यह अधिकृत पूंजी का एक हिस्सा होता है। कंपनी जब अपनी पूंजी को सार्वजनिक या निजी निवेशकों के लिए खोलती है, तो वह निर्गमित पूंजी के तहत शेयर जारी करती है।

महत्व: निर्गमित पूंजी कंपनी की वास्तविक पूंजी जुटाने की स्थिति को दर्शाती है। यह कंपनी के व्यापार विस्तार के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को जुटाने में सहायक होती है। कंपनी को समयसमय पर जरूरत के अनुसार निर्गमित पूंजी बढ़ाने की भी अनुमति होती है।

3. अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital)

अंशदायी पूंजी वह पूंजी होती है जो निवेशकों द्वारा कंपनी के निर्गमित शेयरों में निवेश के लिए प्रदान की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कंपनी ने 1,00,000 शेयर निर्गमित किए और 80,000 शेयर निवेशकों द्वारा अंशदायी किए गए, तो अंशदायी पूंजी 80,000 शेयरों की कुल राशि होगी।

महत्व: अंशदायी पूंजी कंपनी के प्रति निवेशकों की रुचि और विश्वास को दर्शाती है। यह कंपनी की पूंजी जुटाने की क्षमता को स्पष्ट करती है और यह दिखाती है कि कितने शेयर बाजार में निवेशकों द्वारा स्वीकार किए गए हैं।

4. आहूत पूंजी (Called-up Capital)

आहूत पूंजी वह पूंजी होती है जिसे कंपनी द्वारा अंशदायी पूंजी से मांग के अनुसार बुलाया गया होता है। इसे उस राशि के रूप में समझा जा सकता है जो कंपनी ने शेयरधारकों से वसूली के लिए बुलाई है। अगर कंपनी ने अंशदायी पूंजी का केवल एक हिस्सा बुलाया है, तो शेष पूंजी को बाद में बुलाया जा सकता है।

महत्व: आहूत पूंजी कंपनी के व्यवसाय संचालन के लिए आवश्यक होती है। यह पूंजी कंपनी की वित्तीय जरूरतों के आधार पर वसूली जाती है और कंपनी को इसे बुलाने में पूरी स्वतंत्रता होती है।

5. चुकता पूंजी (Paid-up Capital)

चुकता पूंजी वह पूंजी होती है जो वास्तव में निवेशकों से प्राप्त की गई है। यह आहूत पूंजी का वह हिस्सा होता है जिसे शेयरधारकों ने कंपनी को दे दिया है।

महत्व: चुकता पूंजी कंपनी की वास्तविक प्राप्त पूंजी होती है, जिससे कंपनी अपने व्यापारिक गतिविधियों को चला सकती है। यह पूंजी कंपनी की वित्तीय स्थिरता को दर्शाती है और यह एक महत्वपूर्ण संकेतक होती है कि कंपनी ने कितनी पूंजी वसूल कर ली है।

शेयर पूंजी का महत्व

किसी कंपनी के लिए शेयर पूंजी के महत्व को समझना आवश्यक है क्योंकि यह कंपनी की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है और कंपनी के लिए विभिन्न अवसरों के द्वार खोलती है। निम्नलिखित बिंदुओं में शेयर पूंजी के महत्व को स्पष्ट किया गया है:

1. व्यापारिक विस्तार के लिए पूंजी जुटाना

शेयर पूंजी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके माध्यम से कंपनी को अपने व्यापार का विस्तार करने और नई परियोजनाओं में निवेश करने के लिए पूंजी प्राप्त होती है। इसके बिना कंपनी अपनी विकास योजनाओं को पूरा नहीं कर सकती है।

2. लंबी अवधि की पूंजी

शेयर पूंजी एक दीर्घकालिक पूंजी होती है जिसे कंपनी को समय पर वापस करने की जरूरत नहीं होती है। यह पूंजी तब तक कंपनी के पास रहती है जब तक कंपनी कार्यरत होती है। इसलिए यह कंपनी को एक स्थिर वित्तीय संसाधन प्रदान करती है।

3. निवेशकों का विश्वास

शेयर पूंजी का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह निवेशकों का विश्वास जीतने में सहायक होती है। शेयरधारकों को कंपनी का सहमालिक माना जाता है, जिससे उन्हें कंपनी के लाभ और प्रगति में हिस्सेदारी मिलती है।

4. वित्तीय संरचना में स्थिरता

शेयर पूंजी कंपनी की वित्तीय संरचना को स्थिर बनाए रखने में सहायक होती है। इसका उपयोग देनदारियों को चुकाने के लिए नहीं किया जाता, जिससे कंपनी के पास स्थिर वित्तीय संसाधन बने रहते हैं। इससे कंपनी की आर्थिक स्थिति में स्थिरता बनी रहती है।

5. कंपनी के प्रति जिम्मेदारी

कंपनी के शेयरधारकों के पास कंपनी की सफलता या असफलता में हिस्सेदारी होती है, जिससे वे कंपनी के प्रबंधन और निर्णयों में दिलचस्पी लेते हैं। इससे कंपनी के लिए एक जिम्मेदारी उत्पन्न होती है कि वह शेयरधारकों की उम्मीदों पर खरा उतरे और सही निर्णय ले।

6. बाजार में प्रतिष्ठा

शेयर पूंजी का एक और लाभ यह है कि अधिक पूंजी जुटाने से कंपनी की बाजार में प्रतिष्ठा बढ़ती है। जब कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी होती है, तो यह दर्शाता है कि कंपनी वित्तीय रूप से मजबूत है, जिससे निवेशकों और ऋणदाताओं का भरोसा बढ़ता है।

7. लाभांश वितरण की क्षमता

शेयर पूंजी कंपनी की लाभांश वितरण क्षमता को बढ़ाती है। अगर कंपनी का प्रदर्शन अच्छा है और उसे पर्याप्त लाभ होता है, तो वह अपने शेयरधारकों को लाभांश प्रदान कर सकती है, जिससे शेयरधारकों को निवेश में लाभ होता है।

शेयर पूंजी का कंपनी की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

शेयर पूंजी किसी भी कंपनी की आर्थिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इसके माध्यम से कंपनी अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है और विभिन्न विकास योजनाओं में निवेश कर सकती है। कंपनी की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने वाले मुख्य बिंदुओं को नीचे समझाया गया है:

1. वित्तीय स्थिरता

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी वित्तीय स्थिरता प्राप्त करती है। यह कंपनी की आर्थिक स्थिति को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है और इसे समय पर वापस करने की कोई बाध्यता नहीं होती है।

2. विकास की संभावनाएँ

शेयर पूंजी कंपनी को अपने व्यापार का विस्तार करने और नई परियोजनाओं में निवेश करने की अनुमति देती है। यह निवेशकों को आकर्षित करती है और कंपनी के विकास में योगदान देती है।

3. आर्थिक जोखिम में कमी

चूंकि शेयर पूंजी दीर्घकालिक होती है और इसे ब्याज के रूप में भुगतान नहीं करना पड़ता है, इसलिए यह कंपनी के आर्थिक जोखिम को कम करती है। कंपनी को यह पूंजी वापस करने की बाध्यता नहीं होती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति में स्थिरता बनी रहती है।

4. प्रतिस्पर्धा में बढ़त

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अधिक मजबूत स्थिति में आती है। कंपनी अपनी पूंजी संरचना को मजबूत बना सकती है और बाज़ार में अपने प्रतिस्पर्धियों से अधिक प्रगति कर सकती है।

5. निवेशकों का आकर्षण

शेयर पूंजी से कंपनी का बाजार में आकर्षण बढ़ता है। निवेशक उस कंपनी में निवेश करना पसंद करते हैं, जिसकी वित्तीय स्थिति मजबूत होती है और जो उन्हें लाभांश एवं पूंजीगत लाभ प्रदान कर सकती है।

निष्कर्ष

शेयर पूंजी किसी कंपनी के आर्थिक ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पूंजी कंपनी को उसके व्यावसायिक लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करती है और निवेशकों को भी कंपनी में हिस्सेदारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। विभिन्न प्रकार की पूंजी जैसे कि अधिकृत, निर्गमित, अंशदायी, आहूत और चुकता पूंजी कंपनी की वित्तीय जरूरतों को पूरा करती हैं और इसे एक स्थिर वित्तीय संसाधन प्रदान करती हैं।

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी अपने व्यापार का विस्तार कर सकती है, निवेशकों का विश्वास जीत सकती है, और बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत बना सकती है। इस प्रकार, शेयर पूंजी केवल कंपनी के लिए बल्कि निवेशकों के लिए भी लाभकारी साबित होती है और कंपनी की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाए रखने में सहायक होती है।

 

प्रश्न 4:- शेयर जारी करने की प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।

उत्तर:- शेयर जारी करने की प्रक्रिया

किसी भी कंपनी के लिए पूंजी जुटाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कंपनी अपने व्यापारिक उद्देश्यों को पूरा करने, विस्तार करने, परियोजनाओं में निवेश करने और विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पूंजी की आवश्यकता महसूस करती है। इस पूंजी को जुटाने के लिए कंपनी के पास कई विकल्प होते हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख तरीका है शेयर जारी करना। शेयर जारी करने के माध्यम से कंपनी बाहरी निवेशकों से पूंजी जुटाती है और उन्हें शेयरधारक के रूप में अपने व्यवसाय में हिस्सेदारी प्रदान करती है।

शेयर जारी करने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है और यह विभिन्न प्रकार की निर्गम विधियों के माध्यम से की जा सकती है, जैसे कि सार्वजनिक निर्गम (Public Issue), अधिकार निर्गम (Rights Issue), और निजी प्लेसमेंट (Private Placement) हर एक विधि की प्रक्रिया, लाभ, और उपयुक्तता अलग होती है। नीचे हम शेयर जारी करने की प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं और विधियों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

1. सार्वजनिक निर्गम (Public Issue)

सार्वजनिक निर्गम के माध्यम से कंपनी अपने शेयरों को आम जनता के लिए उपलब्ध कराती है। यह सबसे सामान्य और प्रसिद्ध तरीका है, जिसके माध्यम से कंपनी अपनी पूंजी जुटाती है। सार्वजनिक निर्गम का उद्देश्य निवेशकों को कंपनी में निवेश करने का अवसर प्रदान करना होता है। इसमें शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जाता है और इच्छुक निवेशक इन्हें खरीद सकते हैं।

सार्वजनिक निर्गम की प्रक्रिया:

1.     प्राथमिक बाजार का अध्ययन: सबसे पहले कंपनी यह अध्ययन करती है कि बाजार में पूंजी जुटाने के लिए सही समय कौन सा है और उसकी वित्तीय स्थिति और लक्ष्यों के अनुसार कितना पूंजी जुटाना है।

2.    प्रॉस्पेक्टस (Prospectus) जारी करना: कंपनी अपनी वित्तीय स्थिति, व्यापार योजनाओं, निदेशक मंडल, शेयर मूल्य, और निवेशकों के लिए आवश्यक जानकारी के साथ एक प्रॉस्पेक्टस तैयार करती है। प्रॉस्पेक्टस को सार्वजनिक किया जाता है, जिससे संभावित निवेशक कंपनी के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।

3.   रजिस्ट्रार का चयन: कंपनी निवेशकों से आवेदन प्राप्त करने, शेयरों का आवंटन करने, और अन्य प्रशासनिक कार्यों को संभालने के लिए एक रजिस्ट्रार का चयन करती है।

4.   निवेशकों से आवेदन प्राप्त करना: निवेशक कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों के लिए आवेदन करते हैं। इसके लिए निवेशकों को आवेदन प्रपत्र भरकर कंपनी को प्रस्तुत करना होता है।

5.   शेयरों का आवंटन: कंपनी द्वारा प्राप्त आवेदनों का अध्ययन किया जाता है और उपलब्ध शेयरों के अनुसार उन्हें आवंटित किया जाता है। कुछ मामलों में आवंटन से अधिक आवेदन प्राप्त होने पर आंशिक आवंटन किया जाता है।

6.   शेयरों की सूचीबद्धता (Listing): शेयर आवंटन के बाद, कंपनी अपने शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करती है, ताकि निवेशक इन्हें खुले बाजार में खरीदफरोख्त कर सकें।

सार्वजनिक निर्गम के लाभ:

कंपनी को बड़ी मात्रा में पूंजी प्राप्त होती है।

कंपनी की सार्वजनिक छवि और प्रतिष्ठा बढ़ती है।

शेयरधारकों का आधार व्यापक होता है, जिससे कंपनी को स्थिरता मिलती है।

सार्वजनिक निर्गम के नुकसान:

प्रक्रिया लंबी और महंगी होती है।

कंपनी को नियमित रूप से अपनी वित्तीय स्थिति का खुलासा करना पड़ता है।

सार्वजनिक निर्गम के बाद शेयर मूल्य में अस्थिरता सकती है।

2. अधिकार निर्गम (Rights Issue)

अधिकार निर्गम के माध्यम से कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर खरीदने का विशेष अधिकार प्रदान करती है। इसमें शेयरधारकों को पहले से तय अनुपात में नए शेयरों को खरीदने का अवसर मिलता है, जिससे उनके पास कंपनी में स्वामित्व का हिस्सा बना रहता है।

अधिकार निर्गम की प्रक्रिया:

1.     अधिकार निर्गम का निर्णय: कंपनी का निदेशक मंडल अधिकार निर्गम के माध्यम से पूंजी जुटाने का निर्णय लेता है और इस निर्णय को शेयरधारकों की आम सभा में प्रस्तुत किया जाता है।

2.    अधिकार पत्र (Rights Letter) जारी करना: कंपनी एक अधिकार पत्र जारी करती है, जिसमें प्रत्येक मौजूदा शेयरधारक के पास उपलब्ध अधिकारों की संख्या, शेयर मूल्य, और अंतिम तिथि का विवरण होता है।

3.   अधिकारों की मान्यता: मौजूदा शेयरधारक इन अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं और निर्धारित समय के भीतर नए शेयर खरीद सकते हैं। अगर वे चाहें तो इन अधिकारों को दूसरे निवेशकों को बेच भी सकते हैं।

4.   शेयरों का आवंटन: अधिकार निर्गम में आवेदन करने वाले मौजूदा शेयरधारकों को उनके आवंटन के अनुसार नए शेयर जारी किए जाते हैं।

अधिकार निर्गम के लाभ:

कंपनी को मौजूदा शेयरधारकों से पूंजी प्राप्त होती है, जिससे नियंत्रण बनाए रखा जा सकता है।

यह निर्गम प्रक्रिया सरल होती है और कंपनी के लिए कम खर्चीली होती है।

मौजूदा शेयरधारकों को कंपनी के विस्तार में भागीदारी का अवसर मिलता है।

अधिकार निर्गम के नुकसान:

यदि मौजूदा शेयरधारक अधिकार का उपयोग नहीं करते, तो पूंजी जुटाने में कठिनाई हो सकती है।

नए निवेशकों के लिए इसमें सीमित अवसर होते हैं, क्योंकि अधिकार केवल मौजूदा शेयरधारकों को दिए जाते हैं।

3. निजी प्लेसमेंट (Private Placement)

निजी प्लेसमेंट में कंपनी अपने शेयरों को एक निश्चित समूह या संस्थागत निवेशकों को सीधे बेचती है, कि आम जनता को। इस प्रक्रिया में कंपनी तेजी से पूंजी जुटा सकती है, और इसका उपयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब कंपनी को जल्दी पूंजी की आवश्यकता होती है।

निजी प्लेसमेंट की प्रक्रिया:

1.     लक्षित निवेशकों का चयन: कंपनी उन संस्थागत निवेशकों या उच्चनेटवर्थ वाले व्यक्तियों का चयन करती है जिन्हें शेयर जारी करना होता है।

2.    निवेश प्रस्ताव (Investment Proposal) तैयार करना: कंपनी निवेशकों को एक प्रस्ताव भेजती है, जिसमें निवेश की शर्तें, शेयर मूल्य, और अन्य विवरण शामिल होते हैं।

3.   संविदा और समझौते: कंपनी और निवेशकों के बीच एक समझौता होता है, जिसमें निवेश राशि और शेयरों के वितरण की शर्तें शामिल होती हैं।

4.   शेयरों का वितरण: समझौते के अनुसार निवेशकों को शेयर वितरित किए जाते हैं और उन्हें कंपनी के शेयरधारक के रूप में दर्ज किया जाता है।

निजी प्लेसमेंट के लाभ:

कंपनी तेजी से पूंजी जुटा सकती है।

इसमें लागत कम होती है, क्योंकि सार्वजनिक निर्गम की जटिलताएँ और खर्चे कम होते हैं।

यह प्रक्रिया निजी होती है, इसलिए कंपनी को वित्तीय सूचनाएँ सार्वजानिक करने की आवश्यकता नहीं होती।

निजी प्लेसमेंट के नुकसान:

इसमें निवेशकों का आधार सीमित होता है।

यह प्रक्रिया आम जनता के लिए उपलब्ध नहीं होती, जिससे निवेशकों की संख्या कम रहती है।

निजी प्लेसमेंट के माध्यम से जुटाई गई पूंजी सार्वजनिक निर्गम की तुलना में सीमित हो सकती है।

4. कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (Employee Stock Option Plan – ESOP)

कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना में कंपनी अपने कर्मचारियों को रियायती मूल्य पर शेयर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य कर्मचारियों को कंपनी के प्रति समर्पित और प्रेरित करना होता है। इससे कर्मचारियों में कंपनी की सफलता के लिए एक भावनात्मक संबंध बनता है।

ESOP की प्रक्रिया:

1.     योजना का गठन: कंपनी एक ESOP योजना बनाती है और निदेशक मंडल से इसकी स्वीकृति प्राप्त करती है।

2.    कर्मचारियों का चयन: कंपनी अपने कुछ चुने हुए कर्मचारियों को स्टॉक विकल्प देती है, जिन्हें वे एक निश्चित अवधि के बाद खरीद सकते हैं।

3.   ऑप्शन वेस्टिंग अवधि: एक अवधि होती है, जिसे पूरा करने के बाद कर्मचारी अपने विकल्प का उपयोग कर सकते हैं। इसे वेस्टिंग अवधि कहा जाता है।

4.   शेयरों का आवंटन: जब कर्मचारी अपने विकल्प का उपयोग करते हैं, तो उन्हें शेयर जारी किए जाते हैं।

ESOP के लाभ:

कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है और वे कंपनी के लक्ष्यों के प्रति अधिक समर्पित होते हैं।

कंपनी को योग्य कर्मचारियों को बनाए रखने में सहायता मिलती है।

ESOP से कर्मचारियों में कंपनी की हिस्सेदारी होती है, जिससे वे कंपनी की प्रगति में रुचि रखते हैं।

निष्कर्ष

शेयर जारी करने की प्रक्रिया कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे वह अपने विकास और विस्तार के लिए आवश्यक पूंजी जुटा सकती है। विभिन्न निर्गम विधियाँ जैसे कि सार्वजनिक निर्गम, अधिकार निर्गम, निजी प्लेसमेंट, और ESOP कंपनी के लिए अलगअलग परिस्थितियों में उपयोगी हो सकती हैं। हर विधि का अपना लाभ और सीमाएँ होती हैं, और कंपनी को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उचित विधि का चयन करना चाहिए।

 

प्रश्न 5:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर) और पुन: जारी करना (रीइश्यू) क्या होता है? इसके प्रक्रिया और लेखांकन प्रविष्टियाँ लिखिए।

उत्तर:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर) और पुनः जारी करना (रीइश्यू)

किसी भी कंपनी के लिए शेयरधारकों से पूंजी जुटाना एक महत्वपूर्ण कदम होता है। जब निवेशक कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो वे उन शेयरों की पूंजी का भुगतान किश्तों में भी कर सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में, निवेशक समय पर अपनी किश्तों का भुगतान नहीं कर पाते हैं, और ऐसे में कंपनी उन शेयरों को जब्त कर सकती है। इस प्रक्रिया को शेयरों का जब्ती (Forfeiture of Shares) कहते हैं। जब्त किए गए शेयरों को कंपनी बाद में पुनः बाजार में जारी कर सकती है, इसे पुनः जारी (Re-issue) करना कहते हैं। यह लेखांकन प्रक्रिया कंपनी के वित्तीय मामलों को सही ढंग से दर्शाने के लिए महत्वपूर्ण है।

इस उत्तर में हम शेयरों के जब्ती और पुनः जारी करने की प्रक्रिया, इनके कारण, लेखांकन प्रविष्टियाँ, लाभ और हानियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

शेयरों का जब्ती (Forfeiture of Shares)

जब किसी निवेशक द्वारा कंपनी के शेयरों के लिए भुगतान की गई राशि अधूरी होती है, और वह शेष राशि का भुगतान समय पर नहीं करता है, तो कंपनी उन शेयरों को जब्त कर सकती है। शेयरों के जब्ती के बाद, वह निवेशक कंपनी के शेयरधारकों की सूची से हटा दिया जाता है, और उसके द्वारा पहले किया गया भुगतान कंपनी के पास ही रहता है।

शेयरों के जब्ती के कारण

1.     बकाया राशि का भुगतान होना: सबसे मुख्य कारण यह है कि निवेशक ने आवश्यक किश्त का भुगतान समय पर नहीं किया है।

2.    कंपनी की आवश्यकताओं को पूरा करना: कुछ मामलों में, निवेशकों को कुछ शर्तें पूरी करने की आवश्यकता होती है। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो कंपनी उनके शेयर जब्त कर सकती है।

3.   अनुशासनात्मक कार्रवाई: कुछ निवेशकों का व्यवहार कंपनी के नियमों के विरुद्ध होता है, जिससे कंपनी उनके शेयर जब्त कर सकती है।

शेयरों के जब्ती की प्रक्रिया

1.     अधिसूचना भेजना: सबसे पहले कंपनी निवेशक को बकाया राशि का भुगतान करने के लिए एक अधिसूचना भेजती है। इसमें भुगतान की अंतिम तिथि का उल्लेख किया जाता है।

2.    अंतिम चेतावनी: अगर निवेशक निर्धारित तिथि तक भुगतान नहीं करता है, तो उसे अंतिम चेतावनी दी जाती है।

3.   जब्ती का निर्णय: अगर निवेशक अंतिम चेतावनी के बाद भी भुगतान नहीं करता है, तो निदेशक मंडल उसकी हिस्सेदारी को जब्त करने का निर्णय लेता है।

4.   शेयरों का जब्ती आदेश: निदेशक मंडल के निर्णय के बाद शेयरों को जब्त कर लिया जाता है और संबंधित निवेशक को इसके बारे में सूचित कर दिया जाता है।

शेयरों के जब्ती की लेखांकन प्रविष्टियाँ

जब किसी निवेशक के शेयर जब्त किए जाते हैं, तो कंपनी को कुछ विशेष प्रविष्टियाँ करनी होती हैं। यह प्रविष्टियाँ निम्न प्रकार हैं:

1.जब्ती की प्रविष्टि (Forfeiture Entry): जब किसी निवेशक के शेयर जब्त किए जाते हैं, तो उसे पहले किए गए भुगतान के अनुसार प्रविष्टि की जाती है।

शेयर पूंजी खाता डेबिट

शेयर फॉरफीचर खाता क्रेडिट

बकाया राशि खाता क्रेडिट

उदाहरण के लिए, यदि 1,000 शेयर जब्त किए गए हों और प्रत्येक शेयर पर निवेशक ने 6 रुपये का भुगतान किया हो, तो प्रविष्टि कुछ इस प्रकार होगी:

शेयर पूंजी खाता                   डेबिट          10,000 रुपये

शेयर फॉरफीचर खाता        क्रेडिट        6,000 रुपये

बकाया राशि खाता               क्रेडिट        4,000 रुपये

शेयरों का पुनः जारी (Re-issue of Shares)

जब्त किए गए शेयरों को कंपनी पुनः बाजार में जारी कर सकती है। इन शेयरों को मूल मूल्य पर या उससे कम मूल्य पर पुनः जारी किया जा सकता है, लेकिन कंपनी को इन्हें डिस्काउंट पर जारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

शेयरों के पुनः जारी करने की प्रक्रिया

1.     पुनः जारी करने का निर्णय: निदेशक मंडल यह निर्णय लेता है कि जब्त किए गए शेयरों को किस कीमत पर और किस प्रकार पुनः जारी किया जाएगा।

2.    आवेदन की प्रक्रिया: जब्त किए गए शेयरों को पुनः जारी करने के लिए नए निवेशक आवेदन करते हैं। इसके लिए नए शेयरधारक को आवश्यक प्रक्रिया का पालन करना होता है।

3.   शेयरों का आवंटन: आवेदन करने वाले निवेशकों को जब्त किए गए शेयरों का पुनः आवंटन किया जाता है।

4.   पुनः जारी की कीमत का निर्धारण: कंपनी द्वारा शेयरों को पुनः जारी करने की कीमत निर्धारित की जाती है, जो मूल निर्गम मूल्य से कम भी हो सकती है।

पुनः जारी की लेखांकन प्रविष्टियाँ

जब कंपनी जब्त किए गए शेयरों को पुनः जारी करती है, तो कुछ लेखांकन प्रविष्टियाँ करनी होती हैं।

1.पुनः जारी की प्रविष्टि (Re-issue Entry): अगर शेयरों को डिस्काउंट पर पुनः जारी किया गया है, तो इसकी प्रविष्टि निम्नलिखित होगी:

बैंक खाता डेबिट

शेयर फॉरफीचर खाता डेबिट

शेयर पूंजी खाता क्रेडिट

उदाहरण के लिए, अगर 1,000 जब्त किए गए शेयर 8 रुपये प्रति शेयर पर पुनः जारी किए गए हों (मूल मूल्य 10 रुपये), तो प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

बैंक खाता                         डेबिट        8,000 रुपये

शेयर फॉरफीचर खाता   डेबिट        2,000 रुपये

शेयर पूंजी खाता              क्रेडिट       10,000 रुपये

2.शेयर फॉरफीचर खाते का स्थानांतरण: यदि शेयर फॉरफीचर खाते में शेष राशि बच जाती है, तो इसे पूंजी भंडार खाते में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

शेयर फॉरफीचर खाता डेबिट

पूंजी भंडार खाता क्रेडिट

अगर 500 रुपये का शेष शेयर फॉरफीचर खाते में बचा हो, तो प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

शेयर फॉरफीचर खाता      डेबिट           500 रुपये

पूंजी भंडार खाता                 क्रेडिट         500 रुपये

शेयरों के जब्ती और पुनः जारी करने के लाभ और हानियाँ

लाभ:

1.     पूंजी की वसूली: कंपनी जब्ती और पुनः जारी की प्रक्रिया से खोई हुई पूंजी का एक हिस्सा पुनः प्राप्त कर सकती है।

2.    अनुशासन बनाए रखना: जब्ती का डर निवेशकों को समय पर भुगतान करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे अनुशासन बना रहता है।

3.   वित्तीय स्थिति में सुधार: पुनः जारी की प्रक्रिया से कंपनी की वित्तीय स्थिति में सुधार आता है, क्योंकि इससे उसे अतिरिक्त पूंजी मिलती है।

हानियाँ:

1.     शेयरधारकों का असंतोष: जब्ती और पुनः जारी की प्रक्रिया शेयरधारकों के बीच असंतोष पैदा कर सकती है, क्योंकि इससे उनकी हिस्सेदारी कम होती है।

2.    प्रशासनिक खर्च: जब्ती और पुनः जारी की प्रक्रिया में अतिरिक्त प्रशासनिक खर्च आता है।

3.   छवि पर प्रभाव: अगर किसी कंपनी के शेयर बारबार जब्त किए जाते हैं, तो उसकी छवि बाजार में खराब हो सकती है।

निष्कर्ष

शेयरों का जब्ती और पुनः जारी करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो कंपनी को अपनी वित्तीय स्थिति बनाए रखने में सहायता करती है। जब्ती और पुनः जारी की प्रक्रिया से कंपनी को पूंजी वापस प्राप्त करने में मदद मिलती है और वह अपने व्यावसायिक लक्ष्यों को पूरा कर पाती है। कंपनी को इस प्रक्रिया को संभालने में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि उसका प्रभाव निवेशकों पर नकारात्मक पड़े।

इस प्रकार, शेयरों का जब्ती और पुनः जारी करना केवल कंपनी के लिए एक वित्तीय सुरक्षा कवच का काम करता है बल्कि अनुशासन और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक होता है।

 

प्रश्न 6:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन (रिडेम्पशन) की प्रक्रिया को समझाइए और इसके लेखांकन प्रविष्टियाँ लिखिए।

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन (रिडेम्पशन) की प्रक्रिया और लेखांकन प्रविष्टियाँ

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) ऐसे शेयर होते हैं, जिनमें साधारण शेयरों (Equity Shares) की तुलना में कुछ विशेष अधिकार दिए जाते हैं, जैसे कि निश्चित लाभांश और परिसमापन के समय परिसंपत्तियों पर पहले दावा। हालांकि, प्राथमिकता शेयर धारकों को कंपनी के प्रबंधन में मतदान के अधिकार नहीं होते हैं, या बहुत ही सीमित अधिकार होते हैं। प्राथमिकता शेयर आमतौर पर एक निश्चित अवधि के लिए जारी किए जाते हैं, जिसके बाद कंपनी उन्हें मोचन (Redemption) द्वारा वापस ले सकती है।

प्राथमिकता शेयरों का मोचन (Redemption of Preference Shares) का अर्थ है कि कंपनी उन शेयरों को खरीदकर वापस ले रही है और इसके बदले में धारकों को उनका भुगतान कर रही है। इस प्रक्रिया को कंपनियों के लिए कानूनी रूप से सख्ती से पालन करना होता है, और इसके लिए विशेष लेखांकन प्रविष्टियाँ की जाती हैं।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन की आवश्यकता

कंपनियाँ प्राथमिकता शेयरों का मोचन निम्नलिखित कारणों से करती हैं:

1.     पूंजी संरचना में संतुलन लाना: कई बार कंपनियाँ अपनी पूंजी संरचना को पुनः संतुलित करने के लिए प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती हैं ताकि कंपनी के वित्तीय स्थिति में स्थिरता बनी रहे।

2.    ब्याज और वित्तीय व्यय में कमी: प्राथमिकता शेयरों पर निश्चित लाभांश का भुगतान करना होता है। मोचन के बाद कंपनी का यह व्यय समाप्त हो जाता है, जिससे उसका शुद्ध लाभ बढ़ सकता है।

3.   निवेशकों को भुगतान का प्रावधान: कुछ मामलों में, कंपनी के पास अधिशेष पूंजी होती है, जिसे वह प्राथमिकता शेयरधारकों को वापस लौटाकर शेयरों का मोचन करती है।

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करने के तरीके

कंपनियाँ प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लिए विभिन्न तरीके अपनाती हैं। मुख्यतः दो प्रकार के फंड का उपयोग किया जाता है:

1. पूंजी लाभ के माध्यम से मोचन (Redemption from Profits)

इस प्रक्रिया में, कंपनी अपने अर्जित लाभ से प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती है। जब कंपनी इस तरीके का उपयोग करती है, तो उसे एक विशेष पूंजी भंडार (Capital Redemption Reserve) बनाना होता है। यह एक कानूनी प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी की पूंजी संरचना में कोई कमी आए।

2. नया निर्गमन करके मोचन (Redemption from Fresh Issue)

इस तरीके में, कंपनी नए शेयर जारी करके उससे प्राप्त पूंजी से पुराने प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती है। इससे कंपनी की कुल पूंजी संरचना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और उसकी पूंजी संतुलित रहती है। यह तरीका तब उपयोगी होता है जब कंपनी के पास आंतरिक रूप से पर्याप्त लाभ उपलब्ध नहीं होते हैं।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन की प्रक्रिया

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करते समय कंपनी को कुछ महत्वपूर्ण चरणों का पालन करना होता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है:

1.     निर्देशक मंडल का निर्णय: सबसे पहले कंपनी का निदेशक मंडल प्राथमिकता शेयरों के मोचन का प्रस्ताव पारित करता है और यह तय करता है कि मोचन के लिए किस फंड का उपयोग किया जाएगा।

2.    अधिकार प्राप्त करना: मोचन के लिए कंपनी को अपने शेयरधारकों और नियामक संस्थाओं की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है। यह कानूनी औपचारिकता है जो यह सुनिश्चित करती है कि कंपनी के पास पर्याप्त फंड और स्वीकृति है।

3.   कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण: यदि कंपनी अपने अर्जित लाभ का उपयोग कर रही है, तो उसे एक कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व बनाना अनिवार्य होता है। यह एक वैधानिक प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी की पूंजी संरचना में कमी नहीं आए।

4.   फंड आवंटन: कंपनी द्वारा निर्णय के अनुसार फंड का आवंटन किया जाता है और प्राथमिकता शेयरधारकों को उनका भुगतान किया जाता है।

5.   शेयरधारकों को भुगतान: फंड आवंटन के बाद, कंपनी प्राथमिकता शेयरधारकों को उनका भुगतान करती है और उनके शेयरों को रद्द कर देती है।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन की लेखांकन प्रविष्टियाँ

प्राथमिकता शेयरों के मोचन की प्रक्रिया में विभिन्न लेखांकन प्रविष्टियाँ करनी होती हैं, जो कंपनी के वित्तीय लेखों में दर्शाई जाती हैं। यहाँ कुछ मुख्य प्रविष्टियाँ दी गई हैं:

1. कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण

जब कंपनी अपने लाभ का उपयोग कर प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व बनाना आवश्यक होता है।

लेखांकन प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

सामान्य आरक्षित खाता (General Reserve Account) डेबिट

कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व खाता (Capital Redemption Reserve Account)   क्रेडिट

2. प्राथमिकता शेयरों का मोचन

मोचन के समय, प्राथमिकता शेयर पूंजी खाते को डेबिट किया जाता है और बैंक खाते को क्रेडिट किया जाता है, जिससे यह दर्शाया जाता है कि प्राथमिकता शेयरधारकों को भुगतान किया गया है।

लेखांकन प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

प्राथमिकता शेयर पूंजी खाता (Preference Share Capital Account)   डेबिट

बैंक खाता (Bank Account)   क्रेडिट

3. ताज़ा निर्गम (Fresh Issue) के माध्यम से पूंजी जुटाना

यदि कंपनी ताज़ा निर्गम के माध्यम से पूंजी जुटा रही है, तो नए शेयर जारी करने की

प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

बैंक खाता (Bank Account) –     डेबिट

इक्विटी शेयर पूंजी खाता (Equity Share Capital Account)     क्रेडिट

4. कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व में स्थानांतरण

अगर शेयर प्रीमियम के माध्यम से पूंजी जुटाई जाती है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व में स्थानांतरित किया जाता है।

प्रविष्टि इस प्रकार होगी:

शेयर प्रीमियम खाता (Share Premium Account)   डेबिट

कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व खाता (Capital Redemption Reserve Account)   क्रेडिट

प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लाभ और हानियाँ

लाभ:

1.     वित्तीय लागत में कमी: प्राथमिकता शेयरों का मोचन करने से कंपनी को लाभांश का भुगतान नहीं करना पड़ता, जिससे उसकी वित्तीय लागत में कमी आती है।

2.    वित्तीय संरचना में सुधार: मोचन से कंपनी अपनी वित्तीय संरचना को पुनर्गठित कर सकती है और शेयरधारकों का नियंत्रण बनाए रख सकती है।

3.   प्रभावशाली निवेश: कंपनी अधिशेष धन का उपयोग करके पुराने प्राथमिकता शेयरों का मोचन कर सकती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

4.   कंपनी की प्रतिष्ठा में वृद्धि: मोचन से कंपनी के प्रति निवेशकों का विश्वास बढ़ता है, क्योंकि इससे उनकी पूंजी की सुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है।

हानियाँ:

1.     फंड का निकास: मोचन के लिए कंपनी को बड़ी मात्रा में फंड की आवश्यकता होती है, जो उसकी नकदी स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

2.    वित्तीय लचीलापन में कमी: मोचन के बाद, कंपनी के पास उपलब्ध फंड कम हो सकते हैं, जिससे उसकी वित्तीय लचीलापन में कमी सकती है।

3.   प्रक्रिया की जटिलता: मोचन की प्रक्रिया में कई कानूनी और प्रशासनिक औपचारिकताएँ शामिल होती हैं, जो इसे जटिल और समयसाध्य बनाती हैं।

4.   वित्तीय जोखिम: यदि कंपनी अपनी आंतरिक पूंजी का उपयोग कर रही है, तो इससे उसकी वित्तीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

निष्कर्ष

प्राथमिकता शेयरों का मोचन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो कंपनी को अपनी पूंजी संरचना में संतुलन बनाए रखने में सहायता करती है। यह प्रक्रिया कंपनी के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक होती है, लेकिन इसके लिए कंपनी को कानूनी प्रावधानों और लेखांकन मानकों का पालन करना अनिवार्य होता है।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन से कंपनी को वित्तीय लाभ मिलता है और उसकी संरचना में सुधार होता है, लेकिन इसके साथ ही इसे सावधानी से प्रबंधित करना आवश्यक है, ताकि कंपनी की नकदी प्रवाह और वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।

 

प्रश्न 7:- शेयर पूंजी की आवश्यकताओं और सीमाओं के बारे में बताइए।

उत्तर:- शेयर पूंजी की आवश्यकताएँ और सीमाएँ

किसी भी कंपनी के लिए शेयर पूंजी (Share Capital) एक महत्वपूर्ण तत्व होती है। यह वह राशि होती है जिसे कंपनी अपने व्यवसाय के संचालन, विस्तार, और विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए जुटाती है। शेयर पूंजी कंपनी को वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक निवेश का साधन प्रदान करती है। कंपनी के विकास के लिए जितनी पूंजी आवश्यक होती है, उसे जुटाने के लिए कंपनी शेयर जारी करती है और इसके माध्यम से विभिन्न निवेशकों से पूंजी एकत्र करती है।

हालांकि, कंपनी की शेयर पूंजी की संरचना में कुछ आवश्यकताएँ और सीमाएँ होती हैं। इसके अलावा, अधिकतम पूंजी निर्धारित करने और उसे घटाने या बढ़ाने की प्रक्रियाएँ भी कानून द्वारा निर्देशित होती हैं।

शेयर पूंजी की आवश्यकताएँ

शेयर पूंजी की आवश्यकता कई कारणों से होती है। कंपनी अपने व्यवसाय के विकास, विस्तार, और अन्य कार्यों के लिए पूंजी जुटाने हेतु शेयर जारी करती है। कुछ मुख्य आवश्यकताओं को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. व्यवसाय का विस्तार

किसी भी कंपनी के लिए व्यापार का विस्तार एक मुख्य उद्देश्य होता है, जिसके लिए उसे अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। यह पूंजी नए संयंत्रों, मशीनरी, और अन्य आवश्यकताओं में निवेश के लिए काम आती है। शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी आवश्यक वित्तीय संसाधन प्राप्त कर सकती है।

2. परियोजनाओं में निवेश

कंपनी को अपने विभिन्न प्रोजेक्ट्स और योजनाओं के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। नए प्रोजेक्ट्स के माध्यम से कंपनी अपने मुनाफे को बढ़ा सकती है और शेयरधारकों को अधिक लाभ प्रदान कर सकती है। शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी नई परियोजनाओं में निवेश कर सकती है और अपने व्यापार को उन्नति के मार्ग पर ले जा सकती है।

3. ऋण का भुगतान

कंपनी को विभिन्न कारणों से ऋण लेना पड़ सकता है, और उस ऋण का भुगतान भी करना पड़ता है। इस ऋण के भुगतान के लिए कंपनी शेयर पूंजी जुटा सकती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति स्थिर बनी रहती है और वह समय पर अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकती है।

4. वित्तीय स्थिरता बनाए रखना

शेयर पूंजी एक स्थिर वित्तीय साधन होती है जिसे कंपनी को पुनः चुकाने की आवश्यकता नहीं होती है। यह कंपनी को दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है। इस पूंजी के माध्यम से कंपनी को अपने वित्तीय लक्ष्य को पूरा करने में सहायता मिलती है और वह अपने अन्य आवश्यक व्यय को भी पूरा कर सकती है।

5. प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्राप्त करना

अधिक पूंजी के माध्यम से कंपनी बाज़ार में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है। शेयर पूंजी से जुटाई गई पूंजी के माध्यम से कंपनी नई तकनीकों और उत्पादों में निवेश कर सकती है, जिससे वह प्रतिस्पर्धा में बढ़त प्राप्त कर सकती है।

शेयर पूंजी की सीमाएँ

शेयर पूंजी की संरचना में कई सीमाएँ होती हैं। ये सीमाएँ कानूनी प्रावधानों और कंपनी की आंतरिक नीतियों पर आधारित होती हैं। नीचे शेयर पूंजी की मुख्य सीमाओं पर चर्चा की गई है:

1. अधिकतम अधिकृत पूंजी (Authorized Capital)

अधिकृत पूंजी वह अधिकतम राशि होती है जिसे कंपनी अपने अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) के तहत जुटा सकती है। इसे पंजीकृत पूंजी भी कहा जाता है। अधिकृत पूंजी का निर्धारण कंपनी के गठन के समय किया जाता है और यह कंपनी की पूंजी संरचना की ऊपरी सीमा होती है।

अधिकृत पूंजी को बढ़ाना: अगर कंपनी को भविष्य में अधिक पूंजी जुटाने की आवश्यकता महसूस होती है, तो वह अधिकृत पूंजी को बढ़ा सकती है। इसके लिए उसे अपने अनुबंध ज्ञापन में परिवर्तन करना होगा और संबंधित नियामक प्राधिकरण से स्वीकृति लेनी होगी।

अधिकृत पूंजी को घटाना: यदि कंपनी को लगता है कि उसे अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं है, तो वह अधिकृत पूंजी को घटा सकती है। इसके लिए भी उसे अपने अनुबंध ज्ञापन में बदलाव करना होगा और कंपनी अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

2. निर्गमित पूंजी (Issued Capital)

निर्गमित पूंजी वह पूंजी होती है जिसे कंपनी वास्तविक रूप से शेयर के रूप में जारी करती है। यह अधिकृत पूंजी का एक हिस्सा होती है। अगर कंपनी की अधिकृत पूंजी का उपयोग पूरा हो चुका है और उसे और पूंजी जुटाने की आवश्यकता होती है, तो उसे सबसे पहले अधिकृत पूंजी को बढ़ाना होगा।

3. अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital)

अंशदायी पूंजी वह पूंजी होती है जो निवेशकों द्वारा वास्तविक रूप में अंशदान के लिए प्रस्तुत की जाती है। यह निर्गमित पूंजी का वह हिस्सा होता है जिसे निवेशकों ने खरीदने का प्रस्ताव रखा होता है। अंशदायी पूंजी की सीमा निर्गमित पूंजी तक ही होती है।

4. आहूत पूंजी (Called-Up Capital)

आहूत पूंजी वह राशि होती है जिसे कंपनी ने अंशदायी पूंजी से वसूलने के लिए बुलाया होता है। कंपनी को आवश्यकतानुसार अंशदायी पूंजी के एक हिस्से को आहूत करना पड़ता है। यह कंपनी की पूंजी संरचना में एक महत्वपूर्ण सीमा होती है, क्योंकि कंपनी केवल उतनी ही पूंजी बुला सकती है जितनी उसकी जरूरत हो।

5. चुकता पूंजी (Paid-Up Capital)

चुकता पूंजी वह पूंजी होती है जो कंपनी के निवेशकों से वसूली गई होती है। यह आहूत पूंजी का वह हिस्सा होता है जो शेयरधारकों ने कंपनी को दे दिया होता है। चुकता पूंजी का उपयोग कंपनी अपने व्यावसायिक कार्यों को चलाने में कर सकती है।

शेयर पूंजी की सीमा बढ़ाने और घटाने की प्रक्रिया

कंपनी को शेयर पूंजी की अधिकतम सीमा बढ़ाने और घटाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। इसे निम्नलिखित चरणों में समझाया जा सकता है:

1. अधिकृत पूंजी बढ़ाने की प्रक्रिया

सर्वसम्मति प्राप्त करना: सबसे पहले कंपनी के निदेशक मंडल को अधिकृत पूंजी बढ़ाने का प्रस्ताव पारित करना होता है और इस प्रस्ताव को शेयरधारकों की आम सभा में प्रस्तुत किया जाता है।

संविदान संशोधन (Memorandum Amendment): अधिकृत पूंजी में परिवर्तन करने के लिए कंपनी को अपने अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) में संशोधन करना होता है।

नियामक अनुमति: अधिकृत पूंजी बढ़ाने के लिए कंपनी को कंपनी अधिनियम के तहत नियामक प्राधिकरण से स्वीकृति लेनी होती है।

नए शेयरों का निर्गमन: अधिकृत पूंजी बढ़ाने के बाद कंपनी नए शेयर जारी कर सकती है।

2. अधिकृत पूंजी घटाने की प्रक्रिया

सर्वसम्मति प्राप्त करना: अधिकृत पूंजी घटाने के लिए कंपनी के निदेशक मंडल को प्रस्ताव पारित करना होता है और इसे शेयरधारकों की आम सभा में स्वीकृति प्राप्त करनी होती है।

संविदान संशोधन (Memorandum Amendment): कंपनी को अपने अनुबंध ज्ञापन में आवश्यक संशोधन करने होते हैं।

नियामक अनुमति: अधिकृत पूंजी घटाने के लिए कंपनी को नियामक प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त करनी होती है।

शेयर पूंजी की सीमाओं का महत्व

शेयर पूंजी की सीमाएँ कंपनी की वित्तीय स्थिरता और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक होती हैं। इन सीमाओं का महत्व निम्नलिखित है:

1. वित्तीय स्थिरता बनाए रखना

शेयर पूंजी की सीमाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि कंपनी की वित्तीय स्थिति स्थिर बनी रहे। ये सीमाएँ कंपनी को अनियंत्रित तरीके से अधिक पूंजी जुटाने से रोकती हैं, जिससे उसकी वित्तीय स्थिरता बनी रहती है।

2. निवेशकों का विश्वास

शेयर पूंजी की सीमाएँ निवेशकों का विश्वास बनाए रखने में सहायक होती हैं। इससे निवेशकों को यह आश्वासन मिलता है कि कंपनी कानूनी प्रावधानों का पालन कर रही है और उनके निवेश की सुरक्षा का ध्यान रख रही है।

3. नियामक नियंत्रण

शेयर पूंजी की सीमाएँ कंपनी के नियामक नियंत्रण को मजबूत बनाती हैं। अधिकृत पूंजी और अन्य सीमाओं का निर्धारण नियामक संस्थाओं द्वारा किया जाता है, जिससे कंपनियाँ वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में सक्षम होती हैं।

4. कानूनी सुरक्षा

कंपनी अधिनियम के तहत निर्धारित सीमाएँ और प्रक्रियाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि कंपनी किसी भी प्रकार की वित्तीय अनियमितता से बचे और उसका संचालन कानूनी तरीके से हो।

निष्कर्ष

शेयर पूंजी किसी भी कंपनी की वित्तीय संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। कंपनी के लिए यह आवश्यक होता है कि वह शेयर पूंजी जुटाने के दौरान निर्धारित आवश्यकताओं और सीमाओं का पालन करे। इन सीमाओं के अंतर्गत अधिकतम अधिकृत पूंजी, निर्गमित पूंजी, अंशदायी पूंजी, आहूत पूंजी, और चुकता पूंजी शामिल होती हैं।

कंपनी की अधिकृत पूंजी की सीमा का निर्धारण उसके गठन के समय होता है, और इसे बढ़ाने या घटाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक होता है। यह प्रक्रिया कंपनी की वित्तीय संरचना को स्थिर बनाए रखने, निवेशकों के हितों की रक्षा करने, और नियामक अनुशासन बनाए रखने में सहायक होती है।

इस प्रकार, शेयर पूंजी की आवश्यकताएँ और सीमाएँ किसी कंपनी के दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य और उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं।

 

प्रश्न 8:- किसी कंपनी के शेयर मूल्य निर्धारण के कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- कंपनी के शेयर मूल्य निर्धारण के कारक

किसी भी कंपनी का शेयर मूल्य (Share Price) कंपनी की वित्तीय स्थिति और बाज़ार में उसकी प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है। शेयर मूल्य निर्धारण से तात्पर्य उस मूल्य से है, जिस पर शेयरों का व्यापार होता है। यह मूल्य किसी कंपनी के प्रदर्शन, बाज़ार में मांग और आपूर्ति, और अन्य आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। किसी भी निवेशक के लिए यह जानना महत्वपूर्ण होता है कि कंपनी के शेयर का मूल्य किस प्रकार निर्धारित होता है, क्योंकि यह निवेश निर्णयों में अहम भूमिका निभाता है।

शेयर मूल्य निर्धारण पर कई कारक प्रभाव डालते हैं, जैसे कि कंपनी का लाभांश, उसकी वित्तीय स्थिरता, बाज़ार की स्थिति, प्रबंधन की गुणवत्ता, और अर्थव्यवस्था की स्थिति आदि। इस उत्तर में हम इन सभी कारकों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

1. लाभांश नीति (Dividend Policy)

किसी कंपनी का लाभांश वितरण नीति उसके शेयर मूल्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। लाभांश वह राशि है जो कंपनी अपने लाभ का एक हिस्सा अपने शेयरधारकों के साथ साझा करती है। जब कंपनी उच्च दर पर नियमित लाभांश देती है, तो इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और इसका सकारात्मक प्रभाव शेयर मूल्य पर पड़ता है।

नियमित लाभांश: अगर कंपनी नियमित लाभांश देती है, तो निवेशकों को उस कंपनी में निवेश करना सुरक्षित लगता है, और इस कारण शेयर की मांग बढ़ती है, जिससे उसका मूल्य भी बढ़ता है।

लाभांश की वृद्धि: जब कंपनी समयसमय पर लाभांश की दर बढ़ाती है, तो यह दर्शाता है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत है और इसके परिणामस्वरूप शेयर का मूल्य भी बढ़ सकता है।

उदाहरण

जैसे कि अगर एक कंपनी हर साल लगातार अपने शेयरधारकों को लाभांश प्रदान करती है, तो इसके शेयरों का मूल्य निवेशकों के बीच अधिक प्रतिष्ठित और सुरक्षित माना जाता है।

2. कंपनी की वित्तीय स्थिति (Financial Stability of the Company)

कंपनी की वित्तीय स्थिति भी शेयर मूल्य निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक होती है। वित्तीय स्थिरता दर्शाती है कि कंपनी कितनी मजबूत है और आर्थिक चुनौतियों का सामना करने में कितनी सक्षम है। कंपनी की बैलेंस शीट, नकदी प्रवाह, और लाभहानि खाता उसकी वित्तीय स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

उच्च लाभप्रदता: अगर कंपनी का लाभ अधिक होता है, तो इससे उसके शेयर का मूल्य बढ़ता है, क्योंकि निवेशक ऐसे व्यवसायों में निवेश करना पसंद करते हैं जिनका मुनाफा अधिक हो।

कर्ज का स्तर: अगर कंपनी का कर्ज अधिक होता है, तो यह निवेशकों के लिए जोखिम भरा हो सकता है, जिससे शेयर का मूल्य कम हो सकता है।

नकदी प्रवाह (Cash Flow): कंपनी का नकदी प्रवाह अच्छा होने से उसके शेयर मूल्य में स्थिरता बनी रहती है, क्योंकि नकदी प्रवाह दर्शाता है कि कंपनी अपनी वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है।

3. बाज़ार की स्थिति (Market Conditions)

बाज़ार की स्थिति, जिसमें मांग और आपूर्ति शामिल है, शेयर मूल्य पर सीधे प्रभाव डालती है। किसी भी शेयर की कीमत उस पर मांग और उपलब्ध आपूर्ति के संतुलन पर निर्भर करती है।

उच्च मांग: जब किसी शेयर की मांग अधिक होती है, तो उसका मूल्य बढ़ जाता है, क्योंकि निवेशक उसे खरीदना चाहते हैं।

अधिक आपूर्ति: अगर किसी शेयर की आपूर्ति अधिक है, तो उसका मूल्य कम हो सकता है, क्योंकि बाजार में निवेशकों की मांग की तुलना में अधिक शेयर उपलब्ध हैं।

बाजार का रुझान: बाज़ार की वर्तमान स्थिति, जैसे कि तेजी (Bull Market) या मंदी (Bear Market), भी शेयर मूल्य को प्रभावित करती है। तेजी के बाजार में शेयर की कीमतें सामान्यतः बढ़ती हैं, जबकि मंदी के बाजार में कीमतें घटती हैं।

उदाहरण

अगर बाजार में किसी क्षेत्र विशेष में तेजी है, जैसे कि तकनीकी क्षेत्र, तो उस क्षेत्र की कंपनियों के शेयर मूल्य तेजी से बढ़ सकते हैं।

4. आर्थिक परिस्थितियाँ (Economic Conditions)

देश और वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति भी शेयर मूल्य निर्धारण में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। किसी देश की आर्थिक स्थिति, जैसे कि ब्याज दरें, मुद्रास्फीति, और जीडीपी वृद्धि दर, शेयर बाजार को सीधे प्रभावित करती है।

ब्याज दरें: उच्च ब्याज दरों से कंपनियों की लाभप्रदता पर प्रभाव पड़ता है, जिससे शेयर का मूल्य घट सकता है। कम ब्याज दरें कंपनियों के विकास को प्रोत्साहित करती हैं और इसका सकारात्मक प्रभाव शेयर मूल्य पर पड़ता है।

मुद्रास्फीति: बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण कंपनियों के खर्चों में वृद्धि होती है, जिससे उनके मुनाफे में कमी हो सकती है और परिणामस्वरूप शेयर का मूल्य भी घट सकता है।

आर्थिक मंदी: आर्थिक मंदी के समय निवेशक शेयर बाजार से दूर रहते हैं और सुरक्षित निवेश विकल्पों का चयन करते हैं, जिससे शेयर मूल्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

5. प्रबंधन की गुणवत्ता (Quality of Management)

किसी कंपनी का प्रबंधन उसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि कंपनी का प्रबंधन कुशल और ईमानदार होता है, तो यह निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है और शेयर मूल्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

कुशल प्रबंधन: प्रबंधन की कुशलता से कंपनी का विकास और विस्तार होता है, जिससे शेयर की मांग बढ़ती है और उसका मूल्य भी बढ़ता है।

ईमानदारी और पारदर्शिता: यदि प्रबंधन ईमानदार है और कंपनी की वित्तीय स्थिति को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करता है, तो इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।

सक्रिय नेतृत्व: कंपनी के निदेशक मंडल और प्रबंध निदेशक का दृष्टिकोण और उनके निर्णय भी शेयर मूल्य को प्रभावित करते हैं।

6. उद्योग की स्थिति (Industry Conditions)

कंपनी जिस उद्योग में कार्यरत है, उसकी स्थिति और प्रगति भी शेयर मूल्य निर्धारण में योगदान देती है। किसी विशेष उद्योग की स्थिरता, मांग और आपूर्ति, और प्रतिस्पर्धा का स्तर शेयर मूल्य पर प्रभाव डालते हैं।

प्रतिस्पर्धा का स्तर: अगर कंपनी का उद्योग उच्च प्रतिस्पर्धा वाला है, तो कंपनी को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उसके शेयर का मूल्य कम हो सकता है।

उद्योग में वृद्धि की संभावना: यदि कंपनी उस उद्योग में है जो तेजी से बढ़ रहा है, तो उसके शेयर का मूल्य बढ़ सकता है क्योंकि निवेशक उस उद्योग की संभावनाओं को देखते हैं।

सरकारी नीतियाँ: सरकार की नीतियाँ और उद्योग पर लगे कर और प्रोत्साहन भी शेयर मूल्य को प्रभावित कर सकते हैं।

उदाहरण

यदि सरकार किसी उद्योग को सब्सिडी प्रदान करती है या उस पर कर घटाती है, तो उस उद्योग की कंपनियों के शेयर मूल्य में बढ़ोतरी हो सकती है।

7. प्रतिस्पर्धा का स्तर (Level of Competition)

बाज़ार में प्रतिस्पर्धा का स्तर भी शेयर मूल्य पर प्रभाव डालता है। किसी कंपनी की तुलना में यदि अन्य कंपनियाँ अधिक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ रखती हैं, तो इससे शेयर मूल्य में कमी हो सकती है।

प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: अगर कंपनी के पास प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है, जैसे कि विशिष्ट उत्पाद या सेवा, तो इसका सकारात्मक प्रभाव उसके शेयर मूल्य पर पड़ता है।

बाजार में हिस्सेदारी: कंपनी की बाजार में हिस्सेदारी जितनी अधिक होती है, शेयर मूल्य उतना अधिक हो सकता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कंपनी अपने उद्योग में मजबूती से स्थापित है।

8. अन्य बाहरी कारक (Other External Factors)

शेयर मूल्य निर्धारण पर कई अन्य बाहरी कारक भी प्रभाव डालते हैं, जैसे कि राजनीतिक स्थिति, वैश्विक घटनाएँ, और प्राकृतिक आपदाएँ।

राजनीतिक स्थिरता: यदि किसी देश की राजनीतिक स्थिति स्थिर है, तो शेयर बाजार में निवेशक अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं, जिससे शेयर मूल्य में वृद्धि हो सकती है।

वैश्विक घटनाएँ: वैश्विक स्तर पर होने वाली घटनाएँ जैसे कि युद्ध, व्यापार संधियाँ, और अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी शेयर मूल्य को प्रभावित कर सकते हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ: प्राकृतिक आपदाएँ जैसे कि भूकंप, बाढ़ आदि भी बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे शेयर मूल्य घट सकता है।

निष्कर्ष

किसी कंपनी के शेयर मूल्य निर्धारण पर विभिन्न आंतरिक और बाहरी कारकों का प्रभाव होता है। कंपनी की लाभांश नीति, वित्तीय स्थिरता, प्रबंधन की गुणवत्ता, और उद्योग की स्थिति आंतरिक कारक हैं, जो शेयर मूल्य को सकारात्मक या नकारात्मक दिशा में प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, आर्थिक परिस्थिति, बाजार की स्थिति, और बाहरी घटनाएँ भी शेयर मूल्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।

निवेशकों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन सभी कारकों को ध्यान में रखें और निवेश करते समय कंपनी के प्रदर्शन के साथसाथ बाहरी परिस्थितियों का भी विश्लेषण करें। इस प्रकार, शेयर मूल्य निर्धारण को समझना किसी भी निवेशक के लिए आवश्यक है ताकि वह निवेश के सही निर्णय ले सके और संभावित जोखिमों को समझ सके।

 

प्रश्न 9:- किसी कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के संबंध पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:- कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के संबंध

किसी भी कंपनी के लिए उसकी वित्तीय स्थिरता एक महत्वपूर्ण पहलू होता है, जो उसके दीर्घकालिक विकास और व्यापारिक सफलता को सुनिश्चित करता है। वित्तीय स्थिरता से तात्पर्य है कि कंपनी के पास इतनी आर्थिक मजबूती और संसाधन हों कि वह अपने परिचालन खर्चों, देनदारियों, और अन्य वित्तीय दायित्वों को समय पर पूरा कर सके।

शेयर पूंजी (Share Capital) एक कंपनी के आर्थिक ढांचे का मूल आधार होती है, जो कंपनी के स्थायित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटाती है और निवेशकों को शेयरधारक बनाती है। इससे कंपनी के पास स्थायी पूंजी रहती है जिसे वह दीर्घकालिक निवेश और विस्तार कार्यों में उपयोग कर सकती है। इस उत्तर में हम कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के बीच संबंध पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

वित्तीय स्थिरता का अर्थ और महत्व

वित्तीय स्थिरता का अर्थ है कि कंपनी के पास ऐसे वित्तीय संसाधन, योजना और प्रबंधन हो, जो उसे आर्थिक संकटों से निपटने में सक्षम बनाते हैं। एक वित्तीय रूप से स्थिर कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने, नए निवेश करने, और बाजार में अपनी स्थिति को बनाए रखने में सक्षम होती है। कंपनी की वित्तीय स्थिरता निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण होती है:

1.     दीर्घकालिक व्यवसाय की सुरक्षा: वित्तीय स्थिरता से यह सुनिश्चित होता है कि कंपनी दीर्घकालिक अवधि में भी अपनी गतिविधियों को जारी रख सकेगी।

2.    ऋणदाताओं और निवेशकों का विश्वास: जब कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत होती है, तो निवेशक और ऋणदाता उसमें अधिक विश्वास करते हैं, जिससे उसे ऋण और निवेश प्राप्त करना आसान हो जाता है।

3.   विकास और विस्तार की संभावनाएँ: वित्तीय स्थिरता वाली कंपनियाँ अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकती हैं और नए अवसरों का लाभ उठा सकती हैं।

4.   मंदी और संकट का सामना: वित्तीय स्थिरता से कंपनी को आर्थिक मंदी या अन्य वित्तीय संकटों का सामना करने की क्षमता मिलती है।

शेयर पूंजी का अर्थ और महत्व

शेयर पूंजी वह पूंजी है, जिसे कंपनी अपने शेयरधारकों से शेयर जारी करके जुटाती है। यह पूंजी कंपनी की मूल पूंजी संरचना का हिस्सा होती है और इसे वापस चुकाने की आवश्यकता नहीं होती। शेयर पूंजी किसी कंपनी की वित्तीय स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान करती है। शेयर पूंजी के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:

1.     अधिकृत पूंजी (Authorized Capital): यह कंपनी के अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) में पंजीकृत अधिकतम पूंजी होती है, जिसे कंपनी शेयर के रूप में जुटा सकती है।

2.    निर्गमित पूंजी (Issued Capital): यह अधिकृत पूंजी का वह हिस्सा है जिसे कंपनी ने शेयरों के रूप में जारी किया है।

3.   अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital): यह निर्गमित पूंजी का वह हिस्सा है जिसे निवेशकों ने अंशदान के रूप में स्वीकृत किया है।

4.   चुकता पूंजी (Paid-Up Capital): यह वह पूंजी है जिसे शेयरधारकों ने कंपनी को दे दिया है और कंपनी के पास उपलब्ध है।

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी को स्थायी पूंजी मिलती है, जिसका उपयोग वह अपने परिचालन और विस्तार कार्यों में कर सकती है। शेयर पूंजी कंपनी के वित्तीय ढांचे को स्थिरता प्रदान करती है और इसे विविध स्रोतों पर निर्भरता से बचाती है।

कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के बीच संबंध

कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के बीच गहरा संबंध होता है। शेयर पूंजी केवल कंपनी के आर्थिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, बल्कि यह उसकी वित्तीय स्थिरता का आधार भी होती है। निम्नलिखित बिंदुओं में हम समझेंगे कि किस प्रकार कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी एक दूसरे से संबंधित हैं:

1. दीर्घकालिक स्थिरता

शेयर पूंजी कंपनी के लिए दीर्घकालिक पूंजी का स्रोत होती है। चूंकि यह पूंजी कंपनी को वापस नहीं करनी होती है, इसलिए यह कंपनी को दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करती है। इससे कंपनी के पास निरंतर वित्तीय संसाधन बने रहते हैं और वह अपने व्यापार का संचालन और विस्तार कर सकती है। वित्तीय स्थिरता के लिए कंपनी के पास एक निश्चित और स्थायी पूंजी स्रोत होना आवश्यक होता है, और शेयर पूंजी इस आवश्यकता को पूरा करती है।

2. निवेशकों का विश्वास

कंपनी की वित्तीय स्थिरता का संबंध सीधे तौर पर निवेशकों के विश्वास से होता है। जब कंपनी के पास पर्याप्त शेयर पूंजी होती है, तो निवेशक उसमें निवेश करने में अधिक विश्वास करते हैं। इसका कारण यह है कि शेयर पूंजी कंपनी को स्थायी वित्तीय ढांचा प्रदान करती है, जिससे वह आर्थिक संकटों का सामना कर सकती है। निवेशकों का विश्वास बढ़ने से कंपनी के शेयर की मांग बढ़ती है और इसका सकारात्मक प्रभाव शेयर मूल्य पर भी पड़ता है।

3. ऋण लेने की क्षमता

शेयर पूंजी एक मजबूत पूंजी संरचना प्रदान करती है, जिससे कंपनी की ऋण लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। जब कंपनी के पास अधिक शेयर पूंजी होती है, तो वित्तीय संस्थान उसे ऋण देने के लिए अधिक तैयार रहते हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिरता बढ़ती है, क्योंकि वह बाजार में अपनी स्थितियों को बेहतर बना सकती है और आवश्यक परियोजनाओं में निवेश कर सकती है।

4. लाभांश वितरण और वित्तीय स्थिरता

लाभांश वितरण से शेयरधारकों को लाभ मिलता है, और यह लाभांश सीधे कंपनी की शेयर पूंजी पर निर्भर करता है। एक मजबूत शेयर पूंजी वाली कंपनी अपने शेयरधारकों को नियमित और अधिक लाभांश प्रदान करने में सक्षम होती है। इससे शेयरधारकों का कंपनी के प्रति विश्वास बढ़ता है और वे कंपनी के साथ जुड़े रहते हैं। इसके अतिरिक्त, लाभांश की निरंतरता कंपनी की वित्तीय स्थिरता का भी संकेत देती है।

5. बाज़ार में प्रतिस्पर्धा में बढ़त

शेयर पूंजी से कंपनी को व्यवसाय में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलती है। अधिक पूंजी से कंपनी अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकल सकती है और नए उत्पादों, सेवाओं, और बाजारों में निवेश कर सकती है। इसका प्रभाव कंपनी की वित्तीय स्थिति और प्रतिष्ठा पर भी पड़ता है, जिससे उसकी स्थिरता और अधिक मजबूत होती है।

6. अधिकृत पूंजी और वित्तीय लचीलापन

कंपनी की अधिकृत पूंजी उसकी अधिकतम पूंजी जुटाने की सीमा होती है। अधिकृत पूंजी को जरूरत के हिसाब से बढ़ाया जा सकता है, जिससे कंपनी के पास वित्तीय लचीलापन बना रहता है। अगर कंपनी को अपने व्यापार विस्तार के लिए और पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह अधिकृत पूंजी को बढ़ा सकती है और नए शेयर जारी कर सकती है। यह प्रक्रिया कंपनी को दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है।

7. वित्तीय संकट के समय समर्थन

वित्तीय संकट के समय शेयर पूंजी कंपनी के लिए एक समर्थन के रूप में काम करती है। यह कंपनी को आवश्यक संसाधन प्रदान करती है और उसे कर्ज के बोझ से बचाती है। क्योंकि शेयर पूंजी एक स्थायी वित्तीय संसाधन है, कंपनी इसे अपने खर्चों को पूरा करने में उपयोग कर सकती है और वित्तीय संकट से उबर सकती है।

शेयर पूंजी और वित्तीय स्थिरता के अन्य पहलू

1. रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (Return on Investment)

शेयर पूंजी कंपनी की वित्तीय स्थिति को भी निर्धारित करती है। निवेशकों के लिए रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है, जो दर्शाता है कि कंपनी उनके निवेश पर कितना लाभ प्रदान कर रही है। एक मजबूत शेयर पूंजी वाली कंपनी के पास अधिक लाभांश देने की क्षमता होती है, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।

2. शेयर मूल्य में स्थिरता

शेयर पूंजी की मजबूती से कंपनी के शेयर का मूल्य भी स्थिर रहता है। जब निवेशक देखते हैं कि कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी है, तो वे उसमें निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इस प्रकार शेयर पूंजी शेयर के बाजार मूल्य में स्थिरता लाने में सहायक होती है, जो कंपनी की वित्तीय स्थिरता को दर्शाता है।

3. वित्तीय अनुशासन और नियंत्रण

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी वित्तीय अनुशासन को बनाए रख सकती है। एक मजबूत पूंजी संरचना का मतलब है कि कंपनी के पास वित्तीय संसाधनों पर उचित नियंत्रण होता है, जिससे वह अपने आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होती है।

4. कंपनी के व्यवसाय में विश्वास

निवेशकों और ऋणदाताओं का कंपनी में विश्वास उसके व्यवसाय में स्थिरता लाता है। शेयर पूंजी एक ऐसा साधन है, जो कंपनी को निवेशकों के लिए आकर्षक बनाता है और उसे निवेश के लिए एक सुरक्षित विकल्प बनाता है।

निष्कर्ष

कंपनी की वित्तीय स्थिरता और शेयर पूंजी के बीच एक महत्वपूर्ण और परस्पर संबंध होता है। एक मजबूत शेयर पूंजी कंपनी को वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है और उसे आर्थिक संकटों का सामना करने में सक्षम बनाती है। कंपनी के लिए आवश्यक होता है कि वह अपनी पूंजी संरचना को संतुलित बनाए रखे ताकि वह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता प्राप्त कर सके।

शेयर पूंजी के माध्यम से कंपनी अपने विकास और विस्तार की योजनाओं को पूरा कर सकती है और अपने निवेशकों का विश्वास बनाए रख सकती है। इस प्रकार, शेयर पूंजी किसी भी कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण सूचक होती है और इसे वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए सही तरीके से प्रबंधित किया जाना आवश्यक होता है।

 

प्रश्न 10:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन में कानूनी और वित्तीय सीमाओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन में कानूनी और वित्तीय सीमाएँ

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) किसी कंपनी की पूंजी संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। साधारण शेयरों की तुलना में प्राथमिकता शेयरों के धारकों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे कि निश्चित लाभांश और परिसमापन के समय परिसंपत्तियों पर प्राथमिकता का दावा। हालांकि, प्राथमिकता शेयर अक्सर एक निश्चित अवधि के लिए जारी किए जाते हैं, जिसके बाद कंपनी इन्हें मोचन (Redemption) द्वारा वापस ले सकती है।

मोचन का अर्थ है कि कंपनी अपने प्राथमिकता शेयरधारकों को उनका भुगतान कर देती है और इन शेयरों को रद्द कर देती है। प्राथमिकता शेयरों का मोचन कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डाल सकता है, इसलिए इसके लिए कानूनी और वित्तीय सीमाओं का पालन करना आवश्यक होता है।

प्राथमिकता शेयरों का मोचन

कंपनियाँ प्राथमिकता शेयरों का मोचन निम्नलिखित कारणों से करती हैं:

1.     पूंजी संरचना में संतुलन लाना: कई बार कंपनियाँ अपनी पूंजी संरचना को पुनः संतुलित करने के लिए प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती हैं, ताकि उनकी वित्तीय स्थिति में स्थिरता बनी रहे।

2.    ब्याज और वित्तीय व्यय में कमी: प्राथमिकता शेयरों पर निश्चित लाभांश का भुगतान करना पड़ता है। मोचन के बाद कंपनी का यह व्यय समाप्त हो जाता है, जिससे उसका शुद्ध लाभ बढ़ सकता है।

3.   अधिशेष पूंजी का उपयोग: यदि कंपनी के पास अधिशेष पूंजी है और उसे तुरंत निवेश करने की आवश्यकता नहीं है, तो वह प्राथमिकता शेयरधारकों को भुगतान करके उनके शेयरों का मोचन कर सकती है।

4.   ऋण और इक्विटी में संतुलन: मोचन कंपनी को उसकी पूंजी संरचना में इक्विटी और ऋण के अनुपात को सुधारने में मदद करता है।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन में कानूनी सीमाएँ

भारत में प्राथमिकता शेयरों का मोचन कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) के तहत किया जाता है, जिसमें कई कानूनी प्रावधान और शर्तें दी गई हैं। इन कानूनी प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन हों और वह अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन कर सके। निम्नलिखित कानूनी सीमाएँ प्राथमिकता शेयरों के मोचन में आती हैं:

1. मोचन केवल अधिकृत पूंजी के तहत होना चाहिए

प्राथमिकता शेयरों का मोचन केवल उसी अधिकृत पूंजी के तहत किया जा सकता है जो कंपनी के अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) में दी गई है। यदि कंपनी को अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होती है, तो उसे पहले अपने अनुबंध ज्ञापन में संशोधन करके अधिकृत पूंजी को बढ़ाना होगा।

2. केवल फुलपेड शेयर का मोचन किया जा सकता है

कंपनी अधिनियम के अनुसार, केवल पूर्ण चुकता किए गए प्राथमिकता शेयरों का ही मोचन किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि जिन शेयरों का मूल्य पूरी तरह से अदा नहीं किया गया है, उन्हें मोचन के लिए पात्र नहीं माना जाएगा।

3. नए शेयरों के निर्गम द्वारा मोचन

अगर कंपनी नए शेयर जारी करके प्राथमिकता शेयरों का मोचन करना चाहती है, तो उसे कंपनी अधिनियम के तहत नए शेयर जारी करने की प्रक्रिया का पालन करना होता है। इस तरह का मोचन केवल नए इक्विटी शेयर जारी करके किया जा सकता है, जिससे कंपनी की पूंजी संरचना में संतुलन बना रहता है।

4. मोचन के लिए कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण

अगर कंपनी अपने अधिशेष लाभ से प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व (Capital Redemption Reserve) बनाना आवश्यक होता है। इस रिजर्व का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी की पूंजी संरचना में किसी प्रकार की कमी आए। कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण केवल तभी किया जाता है जब कंपनी अपने अर्जित लाभ का उपयोग करके मोचन कर रही होती है।

5. वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करते समय कंपनी को यह सुनिश्चित करना होता है कि उसके पास पर्याप्त नकदी प्रवाह और वित्तीय संसाधन हैं, ताकि वह अपने अन्य दायित्वों को भी पूरा कर सके। मोचन से पहले यह आवश्यक होता है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत हो और उसके पास पर्याप्त नकदी हो।

6. सामान्य सभा की स्वीकृति

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करने के लिए कंपनी को अपने निदेशक मंडल और सामान्य सभा से स्वीकृति प्राप्त करनी होती है। इसके लिए कंपनी अपने सभी शेयरधारकों को सूचित करती है और मोचन के प्रस्ताव को उनकी सहमति से पारित किया जाता है। यह कानूनी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि मोचन प्रक्रिया में सभी संबंधित पक्षों का प्रतिनिधित्व हो।

7. नियामक प्राधिकरण की अनुमति

कई मामलों में, प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लिए कंपनी को नियामक प्राधिकरण जैसे कि सेबी (Securities and Exchange Board of India) से स्वीकृति प्राप्त करनी होती है, विशेषकर तब जब कंपनी सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होती है। यह अनुमति यह सुनिश्चित करती है कि कंपनी सभी कानूनी नियमों का पालन कर रही है।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन में वित्तीय सीमाएँ

कंपनी के लिए प्राथमिकता शेयरों का मोचन करते समय वित्तीय स्थिति का मजबूत होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वित्तीय सीमाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि मोचन के बाद भी कंपनी की वित्तीय स्थिति स्थिर बनी रहे और वह अपने अन्य दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम हो। निम्नलिखित वित्तीय सीमाएँ प्राथमिकता शेयरों के मोचन में ध्यान रखने योग्य हैं:

1. पर्याप्त नकदी प्रवाह

कंपनी के पास प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लिए पर्याप्त नकदी प्रवाह होना चाहिए। नकदी प्रवाह यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी मोचन के बाद भी अपने दैनिक परिचालन कार्यों और अन्य खर्चों का भुगतान करने में सक्षम हो। पर्याप्त नकदी प्रवाह के बिना मोचन करने से कंपनी की वित्तीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

2. लाभ की पर्याप्तता

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करने के लिए कंपनी के पास पर्याप्त लाभ होना चाहिए। यदि कंपनी अपने अर्जित लाभ का उपयोग करके मोचन कर रही है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि लाभ पर्याप्त मात्रा में हो और वह अन्य आवश्यकताओं को भी पूरा कर सके।

3. वित्तीय देनदारियाँ

कंपनी को अपनी सभी वित्तीय देनदारियों का आकलन करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मोचन के बाद वह अपने अन्य ऋणों और दायित्वों को भी समय पर पूरा कर सके। यदि कंपनी की देनदारियाँ अधिक हैं, तो उसे प्राथमिकता शेयरों का मोचन करने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारना चाहिए।

4. कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण

कंपनी अधिनियम के अनुसार, यदि कंपनी अपने लाभ का उपयोग करके प्राथमिकता शेयरों का मोचन करती है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण करना अनिवार्य होता है। इस रिजर्व का उपयोग कंपनी की पूंजी संरचना को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है। कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व की मात्रा उतनी ही होनी चाहिए जितना कि मोचन की गई पूंजी की राशि है।

5. ऋण और इक्विटी का अनुपात

प्राथमिकता शेयरों के मोचन के समय कंपनी को अपने ऋण और इक्विटी के अनुपात का आकलन करना चाहिए। यदि मोचन के बाद कंपनी का ऋणइक्विटी अनुपात असंतुलित हो जाता है, तो इससे उसकी वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

6. ब्याज खर्च में कमी

प्राथमिकता शेयरों का मोचन करते समय कंपनी को यह भी देखना होता है कि मोचन के बाद उसका ब्याज खर्च कम हो रहा है या नहीं। यदि मोचन के बाद कंपनी को अपने लाभांश और ब्याज व्यय में कमी आती है, तो इससे उसकी लाभप्रदता बढ़ सकती है।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लेखांकन प्रविष्टियाँ

प्राथमिकता शेयरों के मोचन के दौरान विभिन्न लेखांकन प्रविष्टियाँ करनी होती हैं। ये प्रविष्टियाँ निम्नलिखित प्रकार से होती हैं:

1. मोचन के समय प्राथमिकता शेयर पूंजी का खाता

जब प्राथमिकता शेयरों का मोचन होता है, तो प्राथमिकता शेयर पूंजी खाते को डेबिट किया जाता है और बैंक खाते को क्रेडिट किया जाता है।

प्राथमिकता शेयर पूंजी खाता (Preference Share Capital Account) डेबिट

 बैंक खाता (Bank Account)  क्रेडिट

2. कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण

अगर कंपनी अपने लाभ का उपयोग करके प्राथमिकता शेयरों का मोचन कर रही है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व बनाना आवश्यक होता है। इस खाते को बनाए रखने के लिए सामान्य आरक्षित खाते को डेबिट किया जाता है।

सामान्य आरक्षित खाता (General Reserve Account) डेबिट

कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व खाता (Capital Redemption Reserve Account)  क्रेडिट

3. नए शेयरों का निर्गम

अगर कंपनी नए शेयर जारी करके पूंजी जुटा रही है, तो बैंक खाते को डेबिट और इक्विटी शेयर पूंजी खाते को क्रेडिट किया जाता है।

बैंक खाता (Bank Account) डेबिट

इक्विटी शेयर पूंजी खाता (Equity Share Capital Account) क्रेडिट

निष्कर्ष

प्राथमिकता शेयरों का मोचन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई कानूनी और वित्तीय सीमाएँ होती हैं। कंपनी को यह सुनिश्चित करना होता है कि वह सभी कानूनी प्रावधानों का पालन कर रही है और मोचन के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं। इसके अलावा, कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व का निर्माण भी अनिवार्य होता है, जो कंपनी की पूंजी संरचना को स्थिर बनाए रखने में सहायक होता है।

कुल मिलाकर, प्राथमिकता शेयरों का मोचन कंपनी की वित्तीय स्थिति और पूंजी संरचना को स्थिर बनाए रखने का एक साधन है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- शेयर की मुख्य विशेषताएँ क्या होती हैं?

उत्तर:- शेयर की मुख्य विशेषताएँ:

शेयर किसी कंपनी की पूंजी का वह हिस्सा होता है, जिसे खरीदकर निवेशक कंपनी का आंशिक स्वामी बन जाता है। शेयर की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. स्वामित्व का हिस्सा: जब कोई व्यक्ति कंपनी के शेयर खरीदता है, तो वह कंपनी का सहमालिक बन जाता है और उसे कंपनी के लाभ का हिस्सा प्राप्त होता है।

2.लाभांश प्राप्ति: शेयरधारकों को कंपनी के लाभ का एक हिस्सा लाभांश के रूप में मिलता है। हालांकि, लाभांश की दर कंपनी की लाभप्रदता और निदेशक मंडल के निर्णय पर निर्भर करती है।

3.वोटिंग अधिकार: साधारण शेयरधारकों को कंपनी की वार्षिक बैठकों में भाग लेने और कंपनी के निर्णयों में वोट देने का अधिकार होता है। इसके माध्यम से वे निदेशकों के चुनाव और नीतिगत निर्णयों में योगदान दे सकते हैं।

4.बाजार में खरीदीबिक्री: शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज पर खरीदा और बेचा जा सकता है। उनके मूल्य में उतारचढ़ाव होता है, जो बाजार की स्थितियों, कंपनी की वित्तीय स्थिति और अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।

5.पूंजी पर दावा: कंपनी के बंद होने की स्थिति में शेयरधारकों का दावा सबसे अंतिम होता है, अर्थात् पहले कंपनी के देनदारों और प्राथमिकता शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है, उसके बाद ही साधारण शेयरधारकों को भुगतान होता है।

इन विशेषताओं के आधार पर, शेयर किसी भी कंपनी के वित्तीय ढांचे का एक आवश्यक हिस्सा होता है और यह निवेशकों को कंपनी की संपत्ति और लाभ में हिस्सेदारी प्रदान करता है।

 

प्रश्न 2:- साधारण शेयर और प्राथमिकता शेयर क्या होते हैं?

उत्तर:- साधारण शेयर और प्राथमिकता शेयर:

साधारण शेयर (Equity Shares):

साधारण शेयर किसी कंपनी के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन शेयरों के धारकों को कंपनी के लाभांश में हिस्सा मिलता है, लेकिन इसकी दर निश्चित नहीं होती और कंपनी के लाभहानि पर निर्भर करती है। साधारण शेयरधारकों को वोटिंग अधिकार मिलता है, जिससे वे कंपनी के निर्णयों में, जैसे निदेशकों के चुनाव और अन्य नीतिगत मामलों में भाग ले सकते हैं। कंपनी के परिसमापन के समय साधारण शेयरधारकों का दावा सबसे अंत में होता है, यानि पहले कंपनी की देनदारियाँ और प्राथमिकता शेयरधारकों का भुगतान किया जाता है।

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares):

प्राथमिकता शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश और परिसमापन पर प्राथमिकता मिलती है। इन्हें निश्चित दर पर लाभांश मिलता है, जो कंपनी के लाभहानि से प्रभावित नहीं होता। हालांकि, साधारणतः प्राथमिकता शेयरधारकों को वोटिंग अधिकार नहीं होता है या सीमित अधिकार होते हैं। अगर कंपनी का परिसमापन होता है, तो प्राथमिकता शेयरधारकों का दावा साधारण शेयरधारकों से पहले होता है। प्राथमिकता शेयरों में विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे संचयी, गैरसंचयी, परिवर्तनीय, और गैरपरिवर्तनीय।

संक्षेप में, साधारण शेयरधारकों को कंपनी में स्वामित्व और निर्णय में भागीदारी का अधिकार मिलता है, जबकि प्राथमिकता शेयरधारकों को लाभांश और परिसंपत्तियों पर प्राथमिकता दी जाती है।

 

प्रश्न 3:- प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर में क्या अंतर है?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर में अंतर:

1.     लाभांश: प्राथमिकता शेयरधारकों को एक निश्चित दर पर लाभांश मिलता है, चाहे कंपनी को लाभ हो या हो। वहीं, साधारण शेयरधारकों को लाभांश तभी मिलता है जब कंपनी लाभ अर्जित करती है, और इसकी दर पूर्वनिर्धारित नहीं होती।

2.    परिसंपत्तियों पर दावा: कंपनी के परिसमापन (बंद होने) की स्थिति में प्राथमिकता शेयरधारकों का दावा साधारण शेयरधारकों से पहले होता है। पहले कंपनी की देनदारियों और प्राथमिकता शेयरधारकों का भुगतान किया जाता है, उसके बाद ही साधारण शेयरधारकों को भुगतान मिलता है।

3.   वोटिंग अधिकार: साधारण शेयरधारकों को कंपनी के महत्वपूर्ण निर्णयों में मतदान का अधिकार मिलता है, जबकि प्राथमिकता शेयरधारकों को सामान्यतया यह अधिकार नहीं होता, या सीमित अधिकार होते हैं। इसका अर्थ है कि प्राथमिकता शेयरधारक कंपनी के प्रबंधन और नीतिगत निर्णयों में सीधा हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

4.   पूंजी वापसी (मोचन): प्राथमिकता शेयरों का मोचन (Redemption) किया जा सकता है, यानि कंपनी एक निर्धारित समय के बाद इन्हें वापस ले सकती है। साधारण शेयरों में यह सुविधा नहीं होती है, वे स्थायी रूप से जारी रहते हैं।

संक्षेप में, प्राथमिकता शेयरधारकों को लाभांश और परिसंपत्तियों पर प्राथमिकता मिलती है, लेकिन वे प्रबंधन में निर्णय लेने में सीधे भाग नहीं ले सकते। साधारण शेयरधारकों को लाभांश की प्राथमिकता नहीं मिलती, लेकिन उनके पास कंपनी के निर्णयों में मतदान का अधिकार होता है।

 

प्रश्न 4:- शेयर पूंजी क्या होती है?

उत्तर:- शेयर पूंजी (Share Capital):

शेयर पूंजी वह पूंजी होती है जिसे कंपनी अपने व्यापार को संचालित करने, विस्तार करने और विकास के लिए आवश्यक धन जुटाने के उद्देश्य से अपने शेयरधारकों से प्राप्त करती है। इसे एक प्रकार की स्थायी पूंजी माना जाता है, क्योंकि कंपनी को इसे अपने शेयरधारकों को वापस करने की आवश्यकता नहीं होती। जब कोई कंपनी अपने शेयर जारी करती है और निवेशक उन शेयरों को खरीदते हैं, तो वे कंपनी में हिस्सेदारी के मालिक बन जाते हैं और शेयरधारक कहलाते हैं।

शेयर पूंजी कई प्रकार की होती है, जैसे अधिकृत पूंजी (Authorized Capital), जो कंपनी की अधिकतम पूंजी है जिसे वह शेयर जारी कर सकती है; निर्गमित पूंजी (Issued Capital), जो उस पूंजी का हिस्सा है जिसे कंपनी ने वास्तव में शेयर के रूप में जारी किया है; अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital), जो निवेशकों द्वारा सब्सक्राइब की गई होती है; और चुकता पूंजी (Paid-Up Capital), जो वह पूंजी है जिसे कंपनी ने वास्तव में अपने शेयरधारकों से प्राप्त किया है।

शेयर पूंजी कंपनी के वित्तीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जिससे कंपनी को व्यापारिक विस्तार और विकास में सहायता मिलती है। इसके माध्यम से निवेशक कंपनी में निवेश करके उसके लाभ और हानि में हिस्सेदारी प्राप्त करते हैं, और कंपनी की पूंजी स्थिरता बनी रहती है।

 

प्रश्न 5:- शेयर पूंजी के प्रकारों के नाम बताइए।

उत्तर:- शेयर पूंजी के प्रकार:

शेयर पूंजी को कंपनी की आवश्यकताओं और पूंजी संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया है। इन प्रकारों को समझने से कंपनी की पूंजी संरचना और वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। शेयर पूंजी के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:

इन प्रकारों के माध्यम से कंपनी अपनी पूंजी संरचना को उचित रूप से प्रबंधित करती है, जिससे वह अपने व्यापारिक लक्ष्यों को पूरा कर सकती है और वित्तीय स्थिरता बनाए रख सकती है।

 

प्रश्न 6:- शेयर जारी करने की कौनकौन सी विधियाँ होती हैं?

उत्तर:- शेयर जारी करने की विधियाँ:

किसी कंपनी के लिए शेयर जारी करना पूंजी जुटाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसके माध्यम से कंपनी निवेशकों से पूंजी प्राप्त करती है, जिसे वह अपने व्यापार के विस्तार, संचालन और अन्य वित्तीय जरूरतों के लिए उपयोग कर सकती है। शेयर जारी करने की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं:

1. सार्वजनिक निर्गम : इस विधि में कंपनी अपने शेयरों को आम जनता के लिए जारी करती है। शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के बाद, निवेशक इन्हें स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से खरीद सकते हैं। यह विधि उन कंपनियों द्वारा उपयोग की जाती है जो बड़े स्तर पर पूंजी जुटाना चाहती हैं। सार्वजनिक निर्गम में प्रॉस्पेक्टस जारी किया जाता है, जिसमें कंपनी की वित्तीय स्थिति और शेयर के विवरण दिए जाते हैं।

2. अधिकार निर्गम : इसमें कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर खरीदने का अधिकार प्रदान करती है। मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर एक निश्चित अनुपात में और रियायती दर पर दिए जाते हैं, ताकि उनका स्वामित्व हिस्सा बना रहे। इस विधि से कंपनी को पूंजी जुटाने में मदद मिलती है और पुराने शेयरधारकों का विश्वास भी बना रहता है।

3. निजी प्लेसमेंट : इसमें कंपनी अपने शेयरों को एक निश्चित समूह, जैसे कि संस्थागत निवेशकों या उच्चनेटवर्थ व्यक्तियों को सीधे बेचती है। इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब कंपनी को त्वरित पूंजी की आवश्यकता होती है और वह सार्वजनिक निर्गम की जटिलता से बचना चाहती है। इसमें प्रक्रिया जल्दी पूरी होती है और यह अपेक्षाकृत कम खर्चीली होती है।

4. कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना : इस योजना के अंतर्गत कंपनी अपने कर्मचारियों को रियायती दर पर शेयर प्रदान करती है। इससे कर्मचारियों को कंपनी में हिस्सेदारी मिलती है और उनकी कार्य के प्रति निष्ठा बढ़ती है।

इन विधियों के माध्यम से कंपनी अपनी पूंजी संरचना को मजबूत कर सकती है और अपने व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा कर सकती है। प्रत्येक विधि के अपने लाभ और उपयोग होते हैं, और कंपनी अपनी आवश्यकताओं के आधार पर उचित विधि का चयन करती है।

 

प्रश्न 7:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर) क्या होता है?

उत्तर:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर):

शेयरों का जब्ती (Forfeiture) वह प्रक्रिया है जिसमें किसी कंपनी द्वारा उसके शेयरधारकों के शेयरों को रद्द या जब्त कर लिया जाता है। यह स्थिति तब आती है जब किसी शेयरधारक ने अपने खरीदे गए शेयरों की पूरी राशि का भुगतान नहीं किया हो और कंपनी द्वारा कई बार चेतावनी दिए जाने के बाद भी बकाया राशि का भुगतान नहीं करता है। इस स्थिति में कंपनी के निदेशक मंडल के निर्णय के अनुसार उस शेयरधारक के शेयर जब्त कर लिए जाते हैं। जब्ती के बाद, उस शेयरधारक का कंपनी पर कोई स्वामित्व या अधिकार नहीं रहता, और उसने पहले जो आंशिक भुगतान किया होता है, वह भी उसे वापस नहीं मिलता है।

जब्ती की प्रक्रिया के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं:

1.     अधिसूचना (Notice): सबसे पहले कंपनी उस शेयरधारक को बकाया राशि का भुगतान करने के लिए एक अधिसूचना भेजती है, जिसमें अंतिम तिथि का भी उल्लेख होता है।

2.    अंतिम चेतावनी: यदि शेयरधारक समय पर राशि का भुगतान नहीं करता है, तो उसे अंतिम चेतावनी भेजी जाती है।

3.   जब्ती का निर्णय: निदेशक मंडल के निर्णय के अनुसार, यदि भुगतान अब भी नहीं किया जाता है, तो शेयरों को जब्त कर लिया जाता है और कंपनी की शेयरधारकों की सूची से उस व्यक्ति का नाम हटा दिया जाता है।

शेयरों का जब्ती कंपनी के लिए आवश्यक हो जाता है जब निवेशक ने अपने दायित्वों का पालन नहीं किया हो। इसके बाद, कंपनी उन जब्त किए गए शेयरों को पुनः जारी (Re-Issue) कर सकती है, जिससे उसे पुनः पूंजी प्राप्त होती है।

 

प्रश्न 8:- शेयरों का पुनः जारी करना (रीइश्यू) किसे कहते हैं?

उत्तर:- शेयरों का पुनः जारी करना (Re-Issue):

शेयरों का पुनः जारी करना या रीइश्यू (Re-Issue) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें किसी कंपनी द्वारा जब्त किए गए (Forfeited) शेयरों को नए निवेशकों को पुनः बिक्री के लिए जारी किया जाता है। जब कोई शेयरधारक अपने खरीदे गए शेयरों की पूरी राशि का भुगतान समय पर नहीं कर पाता है, तो कंपनी उन शेयरों को जब्त कर लेती है। जब्त किए गए ये शेयर कंपनी की संपत्ति बन जाते हैं, जिन्हें कंपनी दोबारा निवेशकों को जारी करके पूंजी जुटा सकती है।

पुनः जारी किए गए शेयरों को मूल अंकित मूल्य (Face Value) पर या उससे कम कीमत पर भी बेचा जा सकता है, लेकिन इसे छूट (Discount) पर जारी करने के कुछ नियम होते हैं। पुनः जारी की गई कीमत का निर्धारण कंपनी की नीतियों और बाजार की स्थितियों पर निर्भर करता है।

रीइश्यू की प्रक्रिया निम्नलिखित होती है:

निर्देशक मंडल का निर्णय: निदेशक मंडल पुनः जारी किए जाने वाले शेयरों की कीमत और शर्तों का निर्धारण करता है।

आवेदन और आवंटन: नए निवेशक इन शेयरों के लिए आवेदन करते हैं और उनकी पात्रता के आधार पर शेयरों का आवंटन किया जाता है।

लेखांकन प्रविष्टियाँ: पुनः जारी किए गए शेयरों के लिए कंपनी द्वारा आवश्यक लेखांकन प्रविष्टियाँ की जाती हैं, ताकि वित्तीय विवरण सही बनाए रखा जा सके।

रीइश्यू के माध्यम से कंपनी अपने खोए हुए वित्तीय संसाधन को वापस प्राप्त कर सकती है, जिससे उसकी पूंजी संरचना पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। यह प्रक्रिया कंपनी की वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में सहायक होती है और जब्त किए गए शेयरों को पूंजी जुटाने का एक साधन बनाती है।

 

प्रश्न 9:- प्राथमिकता शेयरों का मोचन (रिडेम्पशन) क्या है?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों का मोचन (रिडेम्पशन):

प्राथमिकता शेयरों का मोचन (Redemption of Preference Shares) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कंपनी अपने प्राथमिकता शेयरधारकों को उनके शेयरों का भुगतान कर उन्हें वापस लेती है। सामान्यत: प्राथमिकता शेयर एक निश्चित अवधि के लिए जारी किए जाते हैं और उनके शर्तों के अनुसार एक निश्चित अवधि के बाद कंपनी इन्हें वापस लेने का अधिकार रखती है। यह प्रक्रिया प्राथमिकता शेयरधारकों को उनकी पूंजी वापस दिलाने के उद्देश्य से की जाती है, जबकि साधारण शेयरों का मोचन नहीं किया जा सकता।

प्राथमिकता शेयरों के मोचन के मुख्य कारणों में से एक कारण यह है कि इससे कंपनी की पूंजी संरचना संतुलित बनी रहती है और कंपनी अपने ऋणइक्विटी अनुपात को संतुलित रख सकती है। इसके अलावा, कंपनी को इससे भविष्य में लाभांश देने की बाध्यता भी समाप्त हो जाती है, जिससे कंपनी का लाभ बढ़ सकता है।

मोचन के लिए कंपनी को अपने लाभ या नए शेयर निर्गम से पूंजी जुटानी होती है। यदि कंपनी अपने अर्जित लाभ से मोचन करती है, तो उसे कैपिटल रिडेम्पशन रिजर्व (Capital Redemption Reserve) बनाना अनिवार्य होता है, ताकि उसकी पूंजी संरचना स्थिर रहे।

प्राथमिकता शेयरों का मोचन कंपनी की वित्तीय योजना का एक हिस्सा होता है, जिससे वह अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा कर सकती है। इस प्रक्रिया में कंपनी को कानूनी नियमों का पालन करना होता है ताकि निवेशकों के हितों की रक्षा हो सके और कंपनी की वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।

 

प्रश्न 10:- किसी कंपनी के अधिकृत पूंजी (ऑथराइज़्ड कैपिटल) का क्या अर्थ होता है?

उत्तर:- अधिकृत पूंजी (Authorized Capital) का अर्थ:

अधिकृत पूंजी, जिसे पंजीकृत पूंजी (Registered Capital) भी कहा जाता है, वह अधिकतम राशि होती है जिसे एक कंपनी कानूनी तौर पर अपने अनुबंध ज्ञापन (Memorandum of Association) के अनुसार शेयरों के रूप में जारी कर सकती है। यह पूंजी कंपनी के गठन के समय निर्धारित की जाती है और इसे कंपनी रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत किया जाता है। अधिकृत पूंजी का उल्लेख कंपनी के अनुबंध ज्ञापन में किया जाता है और इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनी अपनी पूंजी जुटाने की सीमा का उल्लंघन करे।

उदाहरण के लिए, यदि किसी कंपनी की अधिकृत पूंजी 10 लाख रुपये है, तो इसका मतलब है कि कंपनी इस राशि तक के शेयर जारी कर सकती है, लेकिन इससे अधिक नहीं। यह राशि कंपनी की विकास योजनाओं और पूंजीगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तय की जाती है। हालांकि, यदि कंपनी को भविष्य में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी अधिकृत पूंजी को बढ़ा सकती है। इसके लिए उसे अपने अनुबंध ज्ञापन में संशोधन करना होगा और सभी आवश्यक कानूनी और प्रशासनिक औपचारिकताओं को पूरा करना होगा।

अधिकृत पूंजी का महत्व यह है कि यह कंपनी की पूंजी जुटाने की क्षमता को दर्शाता है और निवेशकों को कंपनी की भविष्य की योजनाओं के बारे में संकेत देता है। यह पूंजी कंपनी की अधिकतम पूंजी संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, और यह निवेशकों और ऋणदाताओं के लिए यह दर्शाती है कि कंपनी के पास कितनी पूंजी जुटाने की क्षमता है।

 

प्रश्न 11:- अंशदायी पूंजी (सब्सक्राइब्ड कैपिटल) क्या होती है?

उत्तर:- अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital) का अर्थ:

अंशदायी पूंजी (Subscribed Capital) वह राशि होती है जो निवेशकों द्वारा कंपनी के जारी किए गए शेयरों में निवेश के लिए स्वीकृत की जाती है। जब किसी कंपनी को पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह अपनी अधिकृत पूंजी के अंतर्गत शेयर जारी करती है। इस प्रक्रिया में निवेशक इन शेयरों को खरीदने के लिए आवेदन करते हैं और उनकी ओर से स्वीकृत राशि अंशदायी पूंजी कहलाती है।

उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी की अधिकृत पूंजी 10 लाख रुपये है और उसने 8 लाख रुपये के शेयर जारी किए हैं, जिनमें से निवेशकों ने 6 लाख रुपये के शेयरों के लिए आवेदन किया है, तो उस 6 लाख रुपये को अंशदायी पूंजी कहा जाएगा। यह पूंजी कंपनी के पूंजी संरचना में एक महत्वपूर्ण तत्व होती है, क्योंकि यह दर्शाती है कि कंपनी ने कुल कितनी पूंजी का सब्सक्रिप्शन प्राप्त किया है।

अंशदायी पूंजी का महत्व यह है कि यह कंपनी की निवेशकों में लोकप्रियता और उसके प्रति निवेशकों के विश्वास को दर्शाती है। यह पूंजी का वह हिस्सा होता है जिसे निवेशकों ने खरीदने के लिए हामी भरी होती है, भले ही उसे अभी पूरी तरह से चुकाया गया हो। इसे एक प्रकार की वचनबद्ध पूंजी भी कहा जा सकता है, क्योंकि कंपनी इसे निवेशकों से वसूली के रूप में प्राप्त करने के लिए अधिकृत होती है।

कुल मिलाकर, अंशदायी पूंजी कंपनी के वित्तीय ढांचे को मजबूती प्रदान करती है और उसकी पूंजीगत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होती है।

 

प्रश्न 12:- शेयर पूंजी की सीमाएँ क्या होती हैं?

उत्तर:- शेयर पूंजी की सीमाएँ:

शेयर पूंजी की सीमाएँ कंपनी के वित्तीय ढांचे और पूंजी संरचना में लगाए गए वे नियम और शर्तें हैं जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कंपनी अपनी अधिकृत पूंजी के दायरे में रहकर ही पूंजी जुटाए। ये सीमाएँ कंपनी के अनुबंध ज्ञापन में पंजीकृत होती हैं और कानूनी रूप से अनिवार्य होती हैं। किसी भी कंपनी के लिए इन सीमाओं का पालन करना आवश्यक होता है ताकि उसके निवेशकों और ऋणदाताओं का विश्वास बना रहे और कंपनी की वित्तीय स्थिरता सुरक्षित रहे।

शेयर पूंजी की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

1.अधिकतम अधिकृत पूंजी: अधिकृत पूंजी का मतलब वह अधिकतम राशि है जिसे कंपनी शेयरों के रूप में जारी कर सकती है। इसे कंपनी की पंजीकृत पूंजी भी कहा जाता है। यदि कंपनी को अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, तो उसे अधिकृत पूंजी को बढ़ाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है, जिसमें कंपनी के अनुबंध ज्ञापन में संशोधन की आवश्यकता होती है।

2.निर्गमित और अंशदायी पूंजी की सीमाएँ: कंपनी अधिकृत पूंजी के अंतर्गत ही निर्गमित और अंशदायी  पूंजी को जुटा सकती है। यह अधिकृत पूंजी के दायरे में होना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कंपनी निवेशकों को अतिरिक्त जोखिम में डालते हुए कानूनी ढांचे में रहकर पूंजी जुटा रही है।

3.पूंजी जुटाने की प्रक्रिया की कानूनी सीमाएँ: कंपनी द्वारा पूंजी जुटाने की प्रक्रिया का पालन नियमों और कानूनों के तहत ही होना चाहिए। इसमें नियामक प्राधिकरणों, जैसे कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), के दिशानिर्देशों का पालन अनिवार्य होता है, खासकर जब कंपनी सार्वजनिक निर्गम के माध्यम से पूंजी जुटा रही हो।

4.वित्तीय संरचना पर निर्भरता: शेयर पूंजी की सीमाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि कंपनी की पूंजी संरचना संतुलित रहे और उसे अपनी पूंजी की जरूरतों के अनुसार पर्याप्त वित्तीय संसाधन मिले। सीमाएँ कंपनी को यह निर्देशित करती हैं कि वह अनावश्यक पूंजी जुटाने के प्रयास करे और केवल उतनी पूंजी जुटाए जितनी उसके विस्तार और संचालन के लिए आवश्यक हो।

इन सीमाओं के माध्यम से कंपनी की पूंजी संरचना को स्थिरता प्राप्त होती है और यह निवेशकों के लिए अधिक सुरक्षित बनती है। इसके अलावा, यह नियम और कानूनी प्रक्रिया कंपनी की वित्तीय जिम्मेदारी और अनुशासन को भी सुनिश्चित करते हैं।

 

प्रश्न 13:- शेयर जारी करते समय कंपनी किनकिन कारकों पर विचार करती है?

उत्तर:- किसी कंपनी के लिए शेयर जारी करना पूंजी जुटाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जिससे वह अपने व्यवसाय का विस्तार और विकास कर सकती है। हालांकि, शेयर जारी करने से पहले कंपनी को कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करना आवश्यक होता है, ताकि उसके निर्णय से निवेशकों का विश्वास बना रहे और उसकी वित्तीय स्थिति स्थिर रहे।

1. पूंजी की आवश्यकता: कंपनी को सबसे पहले यह विचार करना चाहिए कि उसे कितनी पूंजी की आवश्यकता है और इसका उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा। पूंजी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, कंपनी यह तय करती है कि उसे कितने शेयर जारी करने चाहिए।

2.अधिकृत पूंजी की सीमा: कंपनी अपने अनुबंध ज्ञापन में दी गई अधिकृत पूंजी के अंतर्गत ही शेयर जारी कर सकती है। यदि पूंजी की आवश्यकता अधिक हो और अधिकृत पूंजी पर्याप्त हो, तो पहले अधिकृत पूंजी को बढ़ाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है।

3. शेयर का प्रकार: कंपनी को यह निर्णय लेना होता है कि वह साधारण शेयर जारी करेगी या प्राथमिकता  शेयर। यह निर्णय कंपनी की पूंजी संरचना, लाभांश नीति, और शेयरधारकों को प्रदान किए जाने वाले अधिकारों पर निर्भर करता है।

4.बाजार की स्थिति: शेयर जारी करने से पहले बाजार की स्थिति का आकलन करना बहुत जरूरी है। यदि बाजार में स्थिरता है और निवेशक सकारात्मक रुझान दिखा रहे हैं, तो कंपनी को अधिक निवेश मिल सकता है। बाजार में मंदी की स्थिति में शेयर जारी करने से कंपनी के शेयरों का मूल्य कम हो सकता है और निवेशकों का उत्साह भी घट सकता है।

5.मूल्य निर्धारण: कंपनी को यह भी तय करना होता है कि वह शेयरों को किस मूल्य पर जारी करेगी। इसके लिए वह बाजार की मांग, कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन, और भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर उचित मूल्य निर्धारण करती है ताकि शेयर निवेशकों के लिए आकर्षक बनें।

 

6.नियामक अनुपालन: शेयर जारी करते समय कंपनी को सेबी (Securities and Exchange Board of India) और अन्य नियामक प्राधिकरणों के नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करना होता है, विशेषकर यदि वह सार्वजनिक निर्गम कर रही हो।

इन सभी कारकों पर विचार कर के कंपनी शेयर जारी करने का निर्णय करती है, ताकि वह अपने वित्तीय उद्देश्यों को पूरा कर सके और निवेशकों का विश्वास भी बनाए रखे।

 

प्रश्न 14:- अवैतनिक पूंजी (अनपेड कैपिटल) किसे कहते हैं?

उत्तर:- अवैतनिक पूंजी (Unpaid Capital) का अर्थ:

अवैतनिक पूंजी (Unpaid Capital) वह पूंजी होती है जिसे कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों के लिए निवेशकों से अब तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया गया है। जब कंपनी अपने शेयर जारी करती है, तो कई बार वह पूरी राशि को एक साथ नहीं बुलाती, बल्कि इसे किश्तों में वसूलने का निर्णय लेती है। इस तरह की स्थिति में निवेशकों द्वारा पूरी राशि का भुगतान नहीं किया जाता, और जो राशि अभी तक निवेशकों के पास बाकी है, उसे अवैतनिक पूंजी कहा जाता है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी कंपनी ने 10 रुपये प्रति शेयर की दर से शेयर जारी किए हैं, लेकिन कंपनी ने अभी केवल 6 रुपये प्रति शेयर ही बुलाए हैं। इस स्थिति में, शेष 4 रुपये प्रति शेयर अवैतनिक पूंजी कहलाएंगे। यह राशि कंपनी के लिए भविष्य में पूंजी जुटाने का एक स्रोत हो सकती है, क्योंकि जब कंपनी को अधिक पूंजी की आवश्यकता होगी, तो वह इस अवैतनिक राशि को निवेशकों से वसूल कर सकती है।

अवैतनिक पूंजी कंपनी के वित्तीय ढांचे का हिस्सा होती है और इसके पास उस पूंजी को आहूत (बुलाने) करने का अधिकार होता है। इस प्रकार की पूंजी को निवेशकों से वसूलने का लाभ यह है कि कंपनी आवश्यकता के समय पूंजी जुटा सकती है और उसे अतिरिक्त नए शेयर जारी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अवैतनिक पूंजी को समयसमय पर आहूत करने से कंपनी की नकदी प्रवाह की स्थिति में सुधार किया जा सकता है और उसके संचालन में सहूलियत मिलती है।

 

प्रश्न 15:- किसी कंपनी के वित्तीय स्थायित्व में शेयर पूंजी का क्या योगदान होता है?

उत्तर:- किसी कंपनी के वित्तीय स्थायित्व में शेयर पूंजी का योगदान:

किसी भी कंपनी के वित्तीय स्थायित्व में शेयर पूंजी का विशेष योगदान होता है। शेयर पूंजी वह राशि है जिसे कंपनी अपने शेयरधारकों से इक्विटी शेयरों या प्राथमिकता शेयरों के माध्यम से प्राप्त करती है। यह एक स्थायी पूंजी होती है जिसे कंपनी को वापस नहीं करना पड़ता, जिससे कंपनी को एक मजबूत वित्तीय आधार प्राप्त होता है। कंपनी की शेयर पूंजी उसे बाजार में विश्वास और स्थायित्व प्रदान करती है, क्योंकि यह दर्शाती है कि कंपनी के पास एक ठोस पूंजी संरचना है।

शेयर पूंजी के माध्यम से प्राप्त धन का उपयोग कंपनी अपने विभिन्न व्यावसायिक उद्देश्यों, जैसे व्यापार विस्तार, नई परियोजनाओं में निवेश, और उपकरणों एवं परिसंपत्तियों की खरीद में करती है। यह पूंजी कंपनी को बिना ब्याज के दीर्घकालिक वित्तीय संसाधन प्रदान करती है, जिससे उसकी ऋण निर्भरता भी कम रहती है।

इसके अलावा, मजबूत शेयर पूंजी कंपनी के ऋणदाताओं और निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है, क्योंकि वे इसे कंपनी की आर्थिक स्थिरता का संकेतक मानते हैं। जब कंपनी के पास पर्याप्त शेयर पूंजी होती है, तो वह जोखिमों का सामना अधिक आत्मविश्वास से कर सकती है, जिससे उसका व्यवसाय स्थिर रहता है। इस प्रकार, शेयर पूंजी कंपनी की दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य और स्थायित्व को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1:- शेयर क्या होता है?

उत्तर:- शेयर किसी कंपनी में स्वामित्व का एक हिस्सा होता है, जिसे खरीदकर व्यक्ति उस कंपनी का आंशिक मालिक बन सकता है। शेयरधारक कंपनी के लाभ में हिस्सा पाने के हकदार होते हैं और कंपनी के फैसलों में मताधिकार भी रखते हैं। शेयर को स्टॉक मार्केट में खरीदा और बेचा जा सकता है, और इसकी कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है।

प्रश्न 2:- शेयर की दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:- शेयर की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं: (1) स्वामित्व: शेयर धारक कंपनी में स्वामित्व का हिस्सा प्राप्त करता है और कंपनी के लाभ में हिस्सेदारी का हकदार होता है। (2) हस्तांतरणीयता: शेयर को शेयर बाजार में खरीदा और बेचा जा सकता है, जिससे शेयर धारक अपनी आवश्यकता अनुसार उसे बेच सकते हैं।

प्रश्न 3:- प्राथमिकता शेयर किसे कहते हैं?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयर वह शेयर होता है जिसमें शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश में अन्य साधारण शेयरधारकों की अपेक्षा प्राथमिकता मिलती है। यह शेयरधारक पहले लाभांश प्राप्त करते हैं और कंपनी के परिसमापन के समय उनकी देनदारी भी पहले पूरी की जाती है। हालांकि, प्राथमिकता शेयरधारक सामान्यतः कंपनी के फैसलों में मताधिकार नहीं रखते।

प्रश्न 4:- साधारण शेयर किसे कहते हैं?

उत्तर:- साधारण शेयर वह शेयर होता है जिसमें शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश और संपत्ति में प्राथमिकता नहीं मिलती, लेकिन वे कंपनी के फैसलों में मताधिकार रखते हैं। साधारण शेयरधारकों को लाभांश तब मिलता है जब प्राथमिकता शेयरधारकों को उनका लाभांश मिल चुका हो। साधारण शेयरधारक कंपनी के दीर्घकालिक स्वामित्व और विकास में भागीदार होते हैं और उनकी कमाई शेयर बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है।

प्रश्न 5:- प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर में एक मुख्य अंतर बताइए।

उत्तर:- प्राथमिकता शेयर और साधारण शेयर में मुख्य अंतर लाभांश वितरण में होता है। प्राथमिकता शेयरधारकों को लाभांश में प्राथमिकता मिलती है, यानी उन्हें लाभांश साधारण शेयरधारकों से पहले मिलता है। वहीं, साधारण शेयरधारकों को लाभांश तभी प्राप्त होता है जब प्राथमिकता शेयरधारकों को उनकी राशि मिल चुकी हो।

प्रश्न 6:- शेयर पूंजी क्या होती है?

उत्तर:- शेयर पूंजी वह राशि होती है जो कंपनी अपने शेयर जारी करके शेयरधारकों से प्राप्त करती है। इसे कंपनी के कुल पूंजीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। शेयर पूंजी का उपयोग कंपनी की स्थापना, विस्तार और अन्य वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है। यह पूंजी आमतौर पर इक्विटी शेयर और प्राथमिकता शेयर के माध्यम से जुटाई जाती है और कंपनी के स्वामित्व का आधार बनती है।

प्रश्न 7:- अधिकृत पूंजी का क्या अर्थ है?

उत्तर:- अधिकृत पूंजी वह अधिकतम राशि होती है जिसे कंपनी अपने शेयर जारी करके जुटा सकती है। इसे कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ़ एसोसिएशन में निर्धारित किया जाता है और इसेनॉमिनल कैपिटलभी कहा जाता है। यह पूंजी कंपनी द्वारा शेयर जारी करने की सीमा तय करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कंपनी को पूरी राशि जुटानी होगी। अधिकृत पूंजी में कंपनी समय के साथ वृद्धि भी कर सकती है।

प्रश्न 8:- जारी की गई पूंजी किसे कहते हैं?

उत्तर:- जारी की गई पूंजी वह राशि होती है जो कंपनी अपने अधिकृत पूंजी के अंतर्गत शेयर जारी करके शेयरधारकों से प्राप्त करने का प्रस्ताव करती है। यह पूंजी उन शेयरों का मूल्य दर्शाती है जो कंपनी ने निवेशकों को खरीदने के लिए जारी किए हैं। जारी की गई पूंजी हमेशा अधिकृत पूंजी से कम या बराबर होती है और इसका उद्देश्य कंपनी के वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना होता है।

प्रश्न 9:- अंशदायी पूंजी (सब्सक्राइब्ड कैपिटल) क्या होती है?

उत्तर:- अंशदायी पूंजी वह राशि होती है जो निवेशकों ने कंपनी के जारी किए गए शेयरों में से खरीदने के लिए सदस्यता ली है। यह पूंजी उन शेयरों का कुल मूल्य होती है जिन्हें निवेशकों ने खरीदने का प्रस्ताव स्वीकार किया है। यह हमेशा जारी की गई पूंजी से कम या बराबर हो सकती है, क्योंकि यह दर्शाती है कि निवेशकों ने कितने शेयरों को खरीदने का संकल्प लिया है।

प्रश्न 10:- पूरी तरह से चुकता पूंजी का क्या मतलब है?

उत्तर:- पूरी तरह से चुकता पूंजी वह राशि होती है जो अंशदायी पूंजी में से शेयरधारकों ने पूरी तरह से चुका दी है। इसका मतलब है कि जिन शेयरों के लिए निवेशकों ने सदस्यता ली थी, उनकी पूरी कीमत कंपनी को प्राप्त हो चुकी है। पूरी तरह से चुकता पूंजी कंपनी की कुल पूंजी का एक भाग होती है और इसका उपयोग कंपनी के संचालन विस्तार में किया जाता है।

प्रश्न 11:- शेयर जारी करना किसे कहते हैं?

उत्तर:- शेयर जारी करना वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई कंपनी अपनी पूंजी जुटाने के लिए अपने शेयर निवेशकों को बेचती है। इसे कंपनी द्वारा अपनी अधिकृत पूंजी में से कुछ हिस्से को सार्वजनिक या निजी निवेशकों के लिए उपलब्ध कराना भी कहा जाता है। शेयर जारी करके कंपनी निवेशकों को अपने स्वामित्व में भागीदार बनाती है, और यह पूंजी कंपनी के विकास और संचालन में उपयोग होती है।

प्रश्न 12:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर) किस कारण किया जाता है?

उत्तर:- शेयरों का जब्ती (फॉरफीचर) तब किया जाता है जब शेयरधारक द्वारा शेयरों की कीमत की सभी किस्तें निर्धारित समय पर नहीं चुकाई जाती हैं। इस स्थिति में, कंपनी उस शेयरधारक के शेयरों को जब्त कर सकती है और उसे कंपनी के सदस्यता अधिकारों से वंचित कर सकती है। फॉरफीचर के बाद शेयरधारक के स्वामित्व और लाभांश के अधिकार समाप्त हो जाते हैं, और कंपनी उन शेयरों को पुनः जारी कर सकती है।

प्रश्न 13:- शेयरों का पुनः जारी करना (रीइश्यू) किसे कहते हैं?

उत्तर:- शेयरों का पुनः जारी करना (रीइश्यू) वह प्रक्रिया है जिसमें कंपनी जब्त किए गए शेयरों को नए या मौजूदा निवेशकों को फिर से बेचती है। फॉरफीचर के बाद, कंपनी इन शेयरों को पुनः जारी कर सकती है, अक्सर मूल कीमत से कम पर, ताकि पूंजी जुटाई जा सके। रीइश्यू से कंपनी अपने वित्तीय संसाधनों में वृद्धि कर सकती है और यह निवेशकों के लिए नए अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न 14:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन का क्या मतलब होता है?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन का मतलब है कि कंपनी अपने प्राथमिकता शेयरों को तय की गई अवधि या शर्तों के अनुसार शेयरधारकों से वापस खरीद लेती है। मोचन के बाद, शेयरधारक को शेयर की मूल कीमत और किसी भी बकाया लाभांश का भुगतान किया जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर तब होती है जब कंपनी के पास पर्याप्त लाभ या पूंजी हो और वह अपने दायित्वों को कम करना चाहती है। मोचन से प्राथमिकता शेयरधारकों को निवेश से निकासी का अवसर मिलता है।

प्रश्न 15:- शेयर पूंजी के कितने प्रकार होते हैं?

उत्तर:- शेयर पूंजी के मुख्यतः पाँच प्रकार होते हैं: (1) अधिकृत पूंजीकंपनी द्वारा अधिकतम जुटाई जा सकने वाली पूंजी, (2) जारी की गई पूंजीकंपनी द्वारा निवेशकों के लिए जारी किए गए शेयरों की पूंजी, (3) अंशदायी पूंजीनिवेशकों द्वारा सदस्यता ली गई पूंजी, (4) चुकता पूंजीवह पूंजी जो निवेशकों से प्राप्त हो चुकी है, और (5) आव्हान की गई पूंजीकंपनी द्वारा निवेशकों से समयसमय पर मांगी गई पूंजी।

प्रश्न 16:- शेयर जारी करने के दो तरीके बताइए।

उत्तर:- शेयर जारी करने के दो प्रमुख तरीके हैं: (1) पब्लिक इश्यूइसमें कंपनी अपने शेयर सीधे आम जनता को जारी करती है और लोग इन शेयरों की सदस्यता ले सकते हैं। यह सार्वजनिक निर्गम के रूप में किया जाता है। (2) राइट इश्यूइसमें कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को विशेष अधिकार के साथ शेयर जारी करती है, जिससे उन्हें अतिरिक्त शेयर खरीदने का अवसर मिलता है। दोनों तरीकों से कंपनी पूंजी जुटा सकती है।

प्रश्न 17:- प्राथमिकता शेयरों का एक लाभ क्या है?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों का एक प्रमुख लाभ यह है कि इनके धारकों को लाभांश प्राप्त करने में प्राथमिकता मिलती है। इसका अर्थ है कि कंपनी के लाभ का वितरण सबसे पहले प्राथमिकता शेयरधारकों को किया जाता है, भले ही साधारण शेयरधारकों को लाभांश मिले या मिले। इससे निवेशकों को उनकी पूंजी पर निश्चित रिटर्न मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

प्रश्न 18:- साधारण शेयरों का एक नुकसान बताइए।

उत्तर:- साधारण शेयरों का एक नुकसान यह है कि इनके धारकों को लाभांश प्राप्त करने में प्राथमिकता नहीं मिलती है। यदि कंपनी के लाभ में कमी आती है, तो साधारण शेयरधारकों को लाभांश नहीं मिल सकता, जबकि प्राथमिकता शेयरधारकों को पहले भुगतान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, साधारण शेयरों की बाजार कीमतों में उतारचढ़ाव अधिक होता है, जिससे निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ जाता है।

प्रश्न 19:- कंपनी के वित्तीय स्थायित्व में शेयर पूंजी का क्या योगदान है?

उत्तर:- कंपनी के वित्तीय स्थायित्व में शेयर पूंजी का महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि यह कंपनी की स्थायी पूंजी होती है, जिसे वापस नहीं करना होता। शेयर पूंजी से कंपनी अपनी संपत्ति, परियोजनाओं और विस्तार कार्यों में निवेश कर सकती है, जिससे उसकी दीर्घकालिक वित्तीय स्थिति मजबूत होती है। इसके माध्यम से कंपनी ऋण पर निर्भरता कम कर सकती है और वित्तीय जोखिमों को नियंत्रित कर सकती है, जिससे उसका स्थायित्व बना रहता है।

प्रश्न 20:- फॉरफीचर किए गए शेयरों को पुनः जारी करने का एक कारण बताइए।

उत्तर:- फॉरफीचर किए गए शेयरों को पुनः जारी करने का एक प्रमुख कारण यह है कि इससे कंपनी अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बना सकती है। जब्त किए गए शेयरों को पुनः जारी कर कंपनी नए निवेशकों से पूंजी जुटा सकती है, जिससे कार्यशील पूंजी में वृद्धि होती है। यह पूंजी कंपनी के संचालन, विस्तार और अन्य वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में सहायक होती है।

प्रश्न 21:- रीइश्यू का मतलब क्या होता है?

उत्तर:- रीइश्यू का मतलब है कि जब कंपनी फॉरफीचर किए गए शेयरों को पुनः निवेशकों को जारी करती है। फॉरफीचर के बाद जब्त किए गए इन शेयरों को नए या मौजूदा निवेशकों को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जाता है। रीइश्यू से कंपनी को अतिरिक्त पूंजी प्राप्त होती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति में सुधार होता है। रीइश्यू आमतौर पर फॉरफीचर किए गए शेयरों के मूल अंकित मूल्य से कम पर किया जाता है।

प्रश्न 22:- अधिकृत पूंजी में वृद्धि कैसे की जा सकती है?

उत्तर:- अधिकृत पूंजी में वृद्धि कंपनी अपने सदस्यों की सहमति से कर सकती है। इसके लिए कंपनी को अपने निदेशक मंडल और शेयरधारकों की मंजूरी की आवश्यकता होती है। कंपनी को इस प्रस्ताव को अपनी सामान्य बैठक में रखना होता है, जहाँ सदस्यों की सहमति से अधिकृत पूंजी बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है। इसके बाद कंपनी को इस बदलाव की सूचना पंजीयक (Registrar of Companies) को देनी होती है और आवश्यक शुल्क का भुगतान करना होता है।

प्रश्न 23:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन में किनकिन शर्तों का पालन करना आवश्यक है?

उत्तर:- प्राथमिकता शेयरों के मोचन के लिए कंपनी को कुछ शर्तों का पालन करना होता है, जैसे कि कंपनी के पास पर्याप्त मुक्त भंडार या लाभ होना चाहिए, जिससे मोचन किया जा सके। इसके अलावा, कंपनी को अपने लेखा पुस्तकों में निर्धारित पूंजी बनाए रखना आवश्यक है। साथ ही, मोचन के बाद कंपनी को पंजीयक को सूचित करना और नियमानुसार सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है।

प्रश्न 24:- शेयर पूंजी के निर्धारण में कौन से मुख्य कारक होते हैं?

उत्तर:- शेयर पूंजी के निर्धारण में प्रमुख कारकों में कंपनी की वित्तीय जरूरतें, भविष्य की विकास योजनाएँ, बाजार की स्थिति और उद्योग में प्रतिस्पर्धा शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, अधिकृत पूंजी, जारी की गई पूंजी, और निवेशकों से अपेक्षित पूंजी भी ध्यान में रखी जाती है। कंपनी की संरचना और उसके विस्तार के लक्ष्य भी पूंजी निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 25:- जारी की गई पूंजी और भुगतान की गई पूंजी में अंतर क्या है?

उत्तर:- जारी की गई पूंजी वह राशि होती है जो कंपनी ने अपने अधिकृत पूंजी से निवेशकों को शेयरों के माध्यम से जारी की है। जबकि भुगतान की गई पूंजी वह राशि होती है जो निवेशकों ने इन शेयरों के लिए कंपनी को चुकाई है। जारी की गई पूंजी का कुछ हिस्सा अभी चुकता नहीं हो सकता है, जबकि भुगतान की गई पूंजी वही होती है जो पूरी तरह से प्राप्त हो चुकी है।

 

 

 

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