मध्यकालीन भारत का इतिहास: प्रारंभिक तुर्क और खिलजी वंश
परिचय
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में तुर्कों और खिलजी वंश का विशेष स्थान है। तुर्कों के आगमन ने भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला। 12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान तुर्क आक्रमणों और दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत हुई। तुर्कों के बाद, खिलजी वंश ने प्रशासनिक, आर्थिक और सैन्य सुधारों के माध्यम से सल्तनत को मजबूती प्रदान की।
1. प्रारंभिक तुर्क: भारत में तुर्कों का आगमन और शासन
1.1 तुर्कों का भारत पर आक्रमण
तुर्कों का भारत में प्रवेश मुख्य रूप से महमूद गज़नवी (971-1030 ई.) और मुहम्मद गोरी (1149-1206 ई.) के आक्रमणों के माध्यम से हुआ। तुर्क मध्य एशिया के घुमंतू योद्धा थे, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था और शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किए।
(क) महमूद गज़नवी के आक्रमण (971-1030 ई.)
· महमूद गज़नवी ने 17 बार भारत पर आक्रमण किया।
· सोमनाथ मंदिर (1025 ई.) पर आक्रमण उसकी सबसे प्रसिद्ध विजय थी।
· गज़नवी ने भारतीय संपत्ति को लूटकर अपने साम्राज्य को समृद्ध बनाया, लेकिन उसने भारत में स्थायी शासन स्थापित नहीं किया।
(ख) मुहम्मद गोरी के आक्रमण और दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1175-1206 ई.)
· मुहम्मद गोरी ने भारत में स्थायी शासन स्थापित करने के उद्देश्य से आक्रमण किए।
· 1191 ई. में प्रथम तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने उसे हराया, लेकिन 1192 ई. के द्वितीय तराइन युद्ध में मुहम्मद गोरी विजयी हुआ।
· उसने दिल्ली और अजमेर पर अधिकार कर लिया और कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
· 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद, कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी।
2. गुलाम वंश (1206-1290 ई.) और तुर्की शासन
गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी, जो एक तुर्की गुलाम से सुल्तान बना। इस वंश के शासकों ने भारत में प्रशासनिक ढांचे को विकसित किया।
2.1 प्रमुख शासक
· कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.): उसने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी और कुतुब मीनार का निर्माण शुरू कराया।
· इल्तुतमिश (1211-1236 ई.): उसने सल्तनत को स्थायित्व प्रदान किया, प्रशासनिक सुधार किए और “इक्तादारी प्रणाली” लागू की।
· रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.): भारत की पहली मुस्लिम महिला शासक।
· गयासुद्दीन बलबन (1266-1287 ई.): सुल्तान की सत्ता को मजबूत किया और “दिवान-ए-अर्ज़” जैसी सैन्य सुधार नीतियां लागू कीं।
3. खिलजी वंश (1290-1320 ई.)
3.1 जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296 ई.)
खिलजी वंश की स्थापना 1290 ई. में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने की।
उसने शांति और समावेशी शासन की नीति अपनाई।
3.2 अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)
अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था, जिसने कई प्रशासनिक, सैन्य और आर्थिक सुधार किए।
(क) प्रशासनिक सुधार
सुल्तानत की केन्द्रीय सत्ता को मजबूत किया।
सामंतों की शक्ति को कम किया और प्रशासनिक नियंत्रण बढ़ाया।
(ख) सैन्य सुधार
स्थायी सेना की स्थापना की।
सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था, जिससे उनकी निष्ठा बनी रहती थी।
जासूसी प्रणाली को मजबूत किया।
(ग) आर्थिक और कर सुधार
कृषि उत्पादन और राजस्व व्यवस्था को नियंत्रित किया।
बाजार नियंत्रण नीति लागू की, जिससे वस्तुओं के दाम निश्चित किए गए।
अनाज भंडारण केंद्र बनाए ताकि अकाल के समय जनता को राहत दी जा सके।
(घ) दक्षिण भारत में विजय अभियान
अलाउद्दीन ने मलिक काफूर के नेतृत्व में दक्षिण भारत पर आक्रमण करवाए।
देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुरै पर विजय प्राप्त की।
(ड़) मंगोल आक्रमणों से रक्षा
मंगोल आक्रमणों को सफलतापूर्वक रोका और सीमाओं को सुरक्षित किया।
4. मध्यकालीन भारत पर तुर्कों और खिलजी शासन का प्रभाव
4.1 प्रशासनिक प्रभाव
केंद्रीकृत शासन प्रणाली की स्थापना हुई।
सेना और नौकरशाही को संगठित किया गया।
भूमि कर प्रणाली को प्रभावी बनाया गया।
4.2 सामाजिक प्रभाव
इस्लाम का प्रसार बढ़ा, लेकिन हिंदू समाज संरचनाएं बनी रहीं।
जाति व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव जारी रहे।
4.3 सांस्कृतिक प्रभाव
इस्लामी वास्तुकला, जैसे कुतुब मीनार और अलाई दरवाज़ा, का विकास हुआ।
उर्दू भाषा और साहित्य का विकास हुआ।
4.4 आर्थिक प्रभाव
बाजार नियंत्रण और कर सुधारों ने व्यापार को बढ़ावा दिया।
दक्षिण भारत के राज्यों से सोने और हीरे की लूट हुई।
निष्कर्ष
प्रारंभिक तुर्क शासकों और खिलजी वंश ने भारत में नई शासन व्यवस्था की नींव रखी। तुर्कों ने भारत में इस्लामी शासन को मजबूत किया और प्रशासनिक व सैन्य सुधार किए। खिलजी वंश ने विशेष रूप से बाजार नियंत्रण, कर नीति और सैन्य सुधारों के माध्यम से दिल्ली सल्तनत को स्थिरता प्रदान की।
तुर्कों और खिलजी शासकों के शासन का प्रभाव भारत के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इनके शासन के दौरान भारत में नई प्रशासनिक और सैन्य परंपराएं विकसित हुईं, जो आगे चलकर तुगलक, मुगल और अन्य शासकों के लिए मार्गदर्शक बनीं।