सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन (1700 ई. – 1900 ई.)
परिचय
18वीं और 19वीं शताब्दी का भारत सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल था। इस समय भारतीय समाज रूढ़िवाद, अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता से जकड़ा हुआ था। महिलाओं की स्थिति दयनीय थी, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा उत्पीड़न जैसी कुरीतियाँ समाज में व्याप्त थीं। इस दौर में भारतीय समाज और संस्कृति पर औपनिवेशिक शासन का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने सामाजिक संरचना में कई बदलाव लाए।
यही वह समय था जब समाज सुधारकों और धार्मिक पुनर्जागरण के नेताओं ने इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद जैसे विचारकों ने सामाजिक सुधार आंदोलनों का नेतृत्व किया। इसके साथ ही, विभिन्न धार्मिक संगठनों जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और रामकृष्ण मिशन ने भी समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सामाजिक सुधार आंदोलन
1. समाज सुधारकों की भूमिका
भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए विभिन्न समाज सुधारकों ने अपने विचार और आंदोलन प्रस्तुत किए। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में समानता, शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।
(i) राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज (1828)
राजा राममोहन राय को भारतीय नवजागरण का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने सती प्रथा के उन्मूलन के लिए ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया और 1829 में इसे गैरकानूनी घोषित कराया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और प्रेस की स्वतंत्रता की वकालत की।
उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मूर्तिपूजा का विरोध करना और समाज में समानता लाना था।
उन्होंने पश्चिमी शिक्षा का समर्थन किया और बंगाल में अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया।
(ii) ईश्वरचंद्र विद्यासागर और विधवा पुनर्विवाह (1856)
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने महिलाओं की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया। उनके प्रयासों से ब्रिटिश सरकार ने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) पारित किया।
उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए कई स्कूल स्थापित किए।
बाल विवाह और बहुविवाह के खिलाफ जनजागरण किया।
(iii) ज्योतिराव फुले और सत्यशोधक समाज (1873)
ज्योतिराव फुले ने दलितों और शोषित वर्गों की शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
उन्होंने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी शोषण का विरोध किया।
उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले पहली महिला शिक्षिका बनीं और महिलाओं की शिक्षा के लिए कार्य किया।
(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज (1875)
स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया।
उन्होंने मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और जातिवाद का विरोध किया।
आर्य समाज ने विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा और समानता को बढ़ावा दिया।
(v) स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन (1897)
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को वैश्विक पहचान दिलाई।
उन्होंने 1893 में शिकागो धर्म संसद में भारतीय दर्शन का प्रचार किया।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा कार्यों में संलग्न है।
धार्मिक सुधार आंदोलन
1. धार्मिक पुनर्जागरण और भारतीय समाज
भारत में धार्मिक सुधार आंदोलनों का उद्देश्य समाज को अंधविश्वास और पाखंड से मुक्त करना था। इन आंदोलनों ने भारतीयों को आत्मसम्मान और गौरव का बोध कराया।
(i) ब्रह्म समाज (1828)
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित यह आंदोलन एकेश्वरवाद और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देता था।
यह मूर्तिपूजा का विरोध करता था और धार्मिक ग्रंथों की तर्कसंगत व्याख्या पर बल देता था।
जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।
(ii) आर्य समाज (1875)
स्वामी दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में यह आंदोलन वेदों की ओर लौटो के सिद्धांत पर आधारित था।
इसने मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा और अंधविश्वासों का विरोध किया।
वैदिक शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और स्वराज की भावना को बढ़ावा दिया।
(iii) रामकृष्ण मिशन (1897)
स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित इस मिशन का उद्देश्य सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिकता का प्रसार था।
यह सभी धर्मों की समानता और विश्वबंधुत्व में विश्वास करता था।
(iv) इस्लामी सुधार आंदोलन – अलीगढ़ आंदोलन
सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिम समाज में शिक्षा सुधार के लिए अलीगढ़ आंदोलन शुरू किया।
उन्होंने 1875 में मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की स्थापना की।
इस आंदोलन ने आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया।
सामाजिक सुधार आंदोलनों का प्रभाव
1. शिक्षा का प्रसार
महिलाओं और निम्न जातियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला।
अंग्रेज़ी और आधुनिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिला।
2. महिलाओं की स्थिति में सुधार
सती प्रथा का अंत हुआ।
विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा को स्वीकृति मिली।
बाल विवाह और बहुविवाह के खिलाफ कानून बने।
3. जाति व्यवस्था में परिवर्तन
दलितों और निम्न जातियों को शिक्षा और समानता के अधिकार मिले।
छुआछूत के खिलाफ अभियान चलाए गए।
4. राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा
इन सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज में आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की भावना को बढ़ाया।
स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को प्रेरणा मिली।
निष्कर्ष
18वीं और 19वीं शताब्दी में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज में गहरे बदलाव लाए। इन आंदोलनों ने न केवल महिलाओं, दलितों और वंचित वर्गों को समानता दिलाई, बल्कि आधुनिक शिक्षा, वैज्ञानिक सोच और स्वतंत्रता की चेतना को भी बढ़ावा दिया। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती और विवेकानंद जैसे समाज सुधारकों ने समाज को जागरूक करने और उसे आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह सुधार आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का आधार बने और 20वीं शताब्दी में भारत की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को गहराई से प्रभावित किया।